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    महामारीः डरें नहीं, पर सावधानी न छोड़ें!

  • January 02, 2022

    – डॉ. वेदप्रताप वैदिक

    इसमें शक नहीं कि भारत के मुकाबले कोरोना महामारी का प्रकोप अन्य संपन्न देशों में ज्यादा फैला है लेकिन अब उसकी तीसरी लहर उन्हीं देशों में इतनी तेजी से फैल रही है कि भारत को फिर से भारी सावधानी का परिचय देना होगा। फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, ग्रीस, इटली और सायप्रस जैसे देशों में कोरोना, डेल्टा और ओमीक्रोन के रोज नए लाखों मरीज पैदा हो रहे हैं। यह ठीक है कि उनकी मृत्यु-दर पहले जैसी नहीं है लेकिन इन देशों के कई शहरों में मरीजों के लिए पलंग कम पड़ रहे हैं।

    अमेरिका जैसा संपन्न देश, जहां की स्वास्थ्य-सेवाएं विश्वप्रसिद्ध हैं, वहां भी हजारों लोग रोज़ अस्पताल की शरण ले रहे हैं। फिलहाल भारत का हाल इन देशों के मुकाबले बेहतर है लेकिन खतरे की घंटियां यहां भी अब बजने लगी हैं। अकेले दिल्ली शहर में यह आंकड़ा एक हजार रोज को छू रहा है। देश के कई शहरों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन हमारे लोग अब भी सतर्क नहीं हुए हैं। वे पिछले कई माह से घरों में कैद थे, उससे छूटकर अब सैर-सपाटे में लगे हुए हैं।

    कश्मीर में इतने सैलानी इस बार जमा हुए हैं, जितने पहले कभी नहीं हुए। इसी तरह की सूचनाएं और निमंत्रण मुझे देश के सुरम्य शहरों से कई मित्रगण भेज रहे हैं। सबसे ज्यादा छूट तो हमारे नेतागण ले रहे हैं। उनकी सभाओं में लाख-लाख लोग इकट्ठे हो रहे हैं। न तो वे मुखपट्टी रखते हैं और न ही शारीरिक दूरी। यदि यह महामारी फैलेगी तो यूरोप-अमेरिका को भी भारत इस बार पीछे छोड़ देगा।

    हमारे नेताओं की भी बड़ी मजबूरी है। कई प्रांतों के चुनाव सिर पर हैं। यदि वे बड़ी-बड़ी सभाएं नहीं करें तो क्या करेंगे? अखबारों और चैनलों पर अपने विज्ञापन लटकाने में वे करोड़ों रुपये रोज बहा रहे हैं लेकिन वे ‘जूम’ या इंटरनेट के जरिए अपनी सभाएं कैसे करें? उनके ज्यादातर अनुयायी अर्धशिक्षित, ग्रामीण, गरीब और पिछड़े लोग होते हैं। वे इन आधुनिक टोटकों से वाकिफ नहीं हैं। ऐसे में क्या बेहतर नहीं होगा कि हमारा चुनाव आयोग इन चुनावों को थोड़ा आगे खिसका दे? भारत में यदि यह नई महामारी फैल गई तो देश की अर्थ-व्यवस्था और राजनीति, दोनों ही अस्त-व्यस्त हो जाएंगी।

    यह खुशी की बात है कि कुछ प्रांतीय सरकारों ने अभी से कई सख्तियां लागू कर दी हैं। यह अच्छा है लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि जनता खुद अपने पर सख्ती लागू करे। वह आयुर्वेदिक औषधियों, काढ़ों और घरेलू मसालों से अपनी स्वास्थ्य-सुरक्षा में वृद्धि करे और भीड़-भाड़ से बचती रहे। हमारे डाक्टरों और नर्सों के लिए भी परीक्षा की घड़ी फिर से आ रही है। यह सुखद है कि हमारे दवा-विशेषज्ञों ने जो नए कोरोना-टीके और गोलियां बनाई हैं, उन्हें संयुक्तराष्ट्र संघ की मान्यता भी मिल गई है। अब इन नए साधनों से करोड़ों लोगों का इलाज सस्ता, सरल और शीघ्र हो जाएगा। यानी अब डरने की जरूरत नहीं है लेकिन पूरी सावधानी रखने की है।

    (लेखक जाने- माने पत्रकार और स्तंभकार हैं)

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