– बंडारू दत्तात्रेय
विश्व पर्यावरण दिवस (05 जून) पर ही नहीं, पर्यावरण संरक्षण की चिंता हर पल करनी चाहिए। तभी भलाई है। मनुष्य समय रहते नहीं चेता तो प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण में देरी मानवता के सुरक्षित भविष्य के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। आदिकाल से ही पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य का गहरा संबंध रहा है। पिछले कुछ दशकों में भौतिक विकास में अचानक तेजी आई है। यह हमारे पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं हैं। पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट का होना पृथ्वी के लिए गंभीर खतरा है। आज मानव जीवन पृथ्वी पर ही संभव है। इसलिए हमें धरती मां को बचाने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे। इसी उद्देश्य से विश्व पर्यावरण दिवस -2022 मनाने के लिए पर्यावरण बचाओ अभियान का नारा ‘केवल एक पृथ्वी’ दिया गया है। प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण से ही प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सकता है। प्रकृति व पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करना प्राणी मात्र के जीवन में अप्रत्याशित विपत्तियों को आमंत्रित करना है। दशकों से हमने दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली भारी तबाही को बखूबी झेला है। राष्ट्र संघ के ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन द्वारा हाल ही में जारी द ग्लोबल असेसमेंट रिपोर्ट (जीएआर 2022) के अनुसार, पिछले दो दशकों में हर साल 350 से 500 तक की संख्या में मध्यम व बड़े पैमाने की प्राकृतिक आपदाएं घटी हैं। 2030 तक प्राकृतिक आपदा की घटनाओं की संख्या को प्रति वर्ष 560 या प्रतिदिन 1.5 की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।
जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया में ‘पेरिस समझौता’ मील का पत्थर साबित हुआ है । इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को दो से नीचे यानी 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जा रहे कार्यों के लिए बधाई के पात्र हैं। भारत की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 2030 तक 500 गीगावॉट तक पहुंचने का अंदेशा है। हमने इसे कम करने के लक्ष्य तय किए हैं। इसी के तहत कार्बन तीव्रता 2030 तक 45 प्रतिशत और 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना है। शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण के अस्तित्व में आने के बाद से वनीकरण को बढ़ावा दिया गया है। अब तक प्राधिकरण द्वारा 1329.78 करोड़ रुपये की 28 योजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। भूमि सुधार कार्यों में हमें प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, महिलाओं की अधिक भागीदारी और नेतृत्व को प्रोत्साहित करना, सोशल मीडिया और मोबाइल प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रदान किए गए अवसरों का उपयोग करना और सामंजस्य लाना है। भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट-2021 के अनुसार, पिछले दो वर्षों में देश के कुल वन और वृक्ष आवरण में 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ो के अनुसार, पृथ्वी पर प्रति सेकंड एक एकड़ मिट्टी नष्ट हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि 2045 तक हमारे पास खाद्यान्न उत्पादन में भारी कमी होगी। इसलिए हमें मिट्टी को बचाना होगा। यह खुशी की बात है कि ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने अपने ‘मिट्टी बचाओट अभियान के तहत 27 देशों की ऐतिहासिक यात्रा शुरू की है।चूंकि हमारी अर्थव्यवस्था एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। इसलिए हमें जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे न केवल खाद्य उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा।
पर्यावरण संरक्षण एक बहु-क्षेत्रीय कार्य है। हमारे स्कूल और कॉलेज के छात्र पर्यावरण, प्रकृति सरंक्षण व जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए ब्रांड एंबेसडर हैं। प्रत्येक स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में पर्यावरण जागरुकता को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण के लिए छात्रों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वार्षिक कैलेंडर के साथ सक्रिय ‘इको क्लब’ होने चाहिए।विभिन्न वन योजनाओं के तहत वनों के बाहर वृक्षों को बढ़ाना और शहरों में हरित आवरण को बढ़ाना है। इसके लिए 2024-25 के लिए 900 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया है। इससे पहले 2022-23 के लिए केंद्रीय बजट में वन एवं पर्यावरण की योजनाओं के लिए 3,030 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। देश के भौगोलिक क्षेत्र में वर्ष 2014 में से संरक्षित क्षेत्र 4.90 प्रतिशत था। यह अब बढ़कर 5.03 प्रतिशत हो गया है। भारत में जैव विविधता का संरक्षण व पुनर्स्थापना बहुत ही तरीके के साथ किया जाता है। जैव विविधता के लिए राष्ट्रीय स्तर के सत्रह संस्थानों को वाउचर नमूनों को संरक्षित करने के लिए राष्ट्रीय भंडार के रूप में मान्यता दी गई है। पर्यावरण संरक्षण के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। मुझे खुशी हो रही है कि हरियाणा सरकार ने राज्य में लगभग 200 नर्सरी स्थापित की हैं जहां विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए जा रहे हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान 10 हाईटेक नर्सरी विकसित करने का प्रस्ताव है। वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में पर्यावरण और वन क्षेत्र के लिए 530.94 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकार ने पर्यावरण को और अधिक मजबूत और स्वच्छ बनाने के लिए कई उपाय किए हैं।
हालांकि, पर्यावरण संरक्षण में लोगों की भी अपनी भूमिका है। प्रकृति और मौसमी उत्पादों के साथ तालमेल बिठाकर खाने की आदत से पर्यावरण को काफी बढ़ावा मिलेगा। हमें ऐसी खाद्य आदतें विकसित करनी चाहिए जो पर्यावरण के अनुकूल हों और पर्यावरण पर कम दबाव डालें। हमें याद रखना चाहिए कि हमारे पास केवल एक ही पृथ्वी है। आइए हम अपने समय की प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए एक सहकारी, सहयोगी और सहभागी दृष्टिकोण अपनाएं। जलवायु परिवर्तन से लेकर जैव विविधता के संरक्षण और संवर्धन, प्रदूषण को कम करने और कचरे के प्रबंधन से लेकर एक स्थायी खाद्य प्रणाली तक, प्रत्येक को प्रकृति की रक्षा के लिए कार्य करना होगा और अपना योगदान देना होगा ।
(लेखक, हरियाणा के राज्यपाल हैं।)
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