उज्जैन। संस्था पर्यावरण संरक्षण समिति ने प्लास्टर ऑफ पैरिस से बनी प्रतिमाओं के प्रति चिंता जाहिर करते हुए प्रशासन को अवगत कराया है। पीओपी की प्रतिमा 24 माह तक पानी में डूबे रहने के बाद भी नहीं गलती। ऐसे में पीओपी प्रतिमा निर्माण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। संस्था पर्यावरण संरक्षण समिति के समिति के अध्यक्ष डॉ. विमल गर्ग ने मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय अधिकारी एच.के. तिवारी को कार्यालय जाकर ज्ञापन दिया एवं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा पूर्व में जारी किए गए आदेश के अनुसार पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाने वाले प्राकृतिक पदार्थों से मूर्ति निर्माण एवं मूर्ति विसर्जन हेतु व्यवस्था लागू करने का अनुरोध किया गया।
उन्होंने बताया कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 तथा संशोधित नियमों के अनुरूप विसर्जन के 24 घंटे के अंदर ही प्रतिमा का गल जाना अनिवार्य है लेकिन पीओपी की प्रतिमाएं इतने समय बाद भी पानी में नहीं गलती। इसे लेकर आपने प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति निर्माताओं पर कार्रवाई करने औ उपयोग पर प्रतिबंध लगाने तथा जागरुकता कार्यक्रम चलाने का भी अनुरोध किया। ज्ञापन देते समय सचिव श्रीमती प्रतिमा जोशी, प्रकाश चित्तौड़ा, सुश्री पुष्पा चौरसिया, अरविंद भटनागर, प्रहलाद वर्मा, राजेश जोशी, जी पी मिश्रा आदि उपस्थित थे। डॉ. गर्ग ने बताया कि उन्होंने स्वयं अपने निवास पर मिट्टी की प्रतिमा 2 वर्ष पहले खरीदी और घर में ही विसर्जन किया था। कुछ दिनों बाद उन्होंने देखा तो पता चला प्रतिमा मिट्टी की नहीं प्लास्टर ऑफ पेरिस की थी। हैरानी की बात यह कि 2 वर्षों में आज तक प्रतिमा नहीं गली, बल्कि उसके कुछ रंग भी शेष हैं। समझा जा सकता है कि इस सामग्री से बनी प्रतिमाएं मानव जीवन एवं जल संरचनाओं के लिए कितनी घातक हैं।
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