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    बहुत हो गए वादे और दावे, अब मेरी बारी

  • May 12, 2024


    इंदौर। जिसको जो करना (to do whatever) था कर लिया। क्या-क्या नहीं देखा मैंने बीते दिनों? कोई कह रहा है कि हम जीते तो देखना देश (Country) को कहां से कहां पहुंचा देंगे तो दूसरा उसके तोड़ में ऐसे दावे कर रहा है कि अब और कोई नहीं, केवल उनका ही राज आने वाला है। चुनाव न हुए, मजाक हो गया। फिर ऐसी जुमलेबाजी और फब्तियां (catchphrases and sayings) कि लोग सोच रहे हैं कि ऐसे लोगों के हाथ में देश की चाबी देंगे? जो मूल मुद्दों से दूर हटकर केवल राजनीतिक बयानबाजी कर रहा है।


    खैर किसी ने ऐसी बात नहीं की जो आम आदमी को लगे कि उसके बीच की बात हो और ये लोग वास्तव में उसके लिए सोच रहे हो। गरीब की बात कोई नहीं कर रहा? नेताओं के लिए महंगाई का तो मानों असर है ही नहीं। मध्यमवर्गीय परिवार अपने बच्चे को अपनी हैसियत से ज्यादा पढ़ाता है, लिखाता है। उसके लिए कर्जा लेता है, ताकि जो जिंदगी उसने गुजारी है, उसका बेटा या बेटी उस परिस्थिति में नहीं पहुंचे, लेकिन जब नौकरी की बारी आती है तो वहां ऐसी होड़ मचती है कि थोड़े नंबरों से पीछे रहने वाला सरकार की कुछ नीतियों के कारण उस वर्ग में नहीं आ पाता जो कानून की किताब में छाप दिए गए हैं। बेचारा छोटी-मोटी नौकरी करके अपने मां-बाप का सहारा बनने की कोशिश करता है, लेकिन यहां भी भोगवादी संस्कृति उसका पीछा नहीं छोड़ती और कम बजट या सैलेरी को लेकर वह भी परिवार के साथ न्याय नहीं कर पाता और फिर होता है परिवारों का विघटन। अब आप कहेंगे इन सब बातों से चुनावों का क्या मतलब? लेकिन यही सब होता है हमारा गलत लोगों को चुनने के कारण। जो हमारे नीति-नियंता तो नहीं बन पाते, बल्कि पांच साल अपना भविष्य सुधारने में लग जाते हैं। ऐसे लोगों से अब बचना होगा, क्योंकि आपके दांये हाथ की उंगली में वो ताकत है जो खुद का भविष्य बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है, नहीं तो फिर बाकी दिनों में चाय, पान की दुकान पर नेताओं को दोष देते रहना। ये नहीं समझना कि ‘जब बोया पेड बबूल का तो आम कहां से होय’। दूसरी ओर अखबारों और टीवी चैनलों में राजनीतिक खबरें दिखाने की होड़। ‘तेरी कमीज से मेरी कमीज सफेद कैसे’ की प्रतियोगिता के चलते ज्यादा से ज्यादा बहस दिखाने की होड़। उसमें भी मुद्दे न काम के न धंधे के। फिर भी कुछ चैनलों और अखबारों में सफेद कुर्ते के पीछे क्या है उसको बेनकाब करती तस्वीरें और खबरें। और हो भी क्यों ना? राजनीति तो नेताओं द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है और हमारा पांच साल का भविष्य करने वाला समय। जिस तरह से एक किसान फसल की बुआई करते समय अच्छा बीज वापरता है, ऐसा ही कुछ कल होने वाला है, जब हमें अपने बच्चों या फिर खुद की ही फसल बोना है, जो पांच साल तक काटना होगी। यानी जैसा व्यक्ति चुनेंगे उसी तरह वह काम करेगा और दिल्ली में जाकर इस देश के लिए भी कुछ सोचेगा। प्रदेश के लिए यह आखरी चरण है, जब 8 सीटों पर मुझे वोट देना है और किसी के भी बहकावे में आकर नहीं, बल्कि अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर। क्या हम इतने कमजोर हो गए हैं कि कोई हमें अपनी शक्ति का अहसास दिलाएं। बार-बार ये जताए कि हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत? तो फिर ना किसी के दावे में आना है और ना ही किसी के झूठे वादों में। बटन दबाने के पहले दिल और दिमाग का इस्तेमाल करना और फिर दिल पर हाथ रखकर ऑल इज वेल का फील कराने वाले के सामने का बटन दबा देना। और हां, मतदान करने जाना जरूर, क्योंकि ये मतदान देश का भविष्य
    तय करेगा।
    -एक मतदाता बकौल
    संजीव मालवीय

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