भोपाल। मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष एवं मध्य प्रदेश महापौर संघ की पूर्व अध्यक्ष विभा पटेल ने कहा कि आदरणीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नगरीय निकायों की चिंता है तो उसे अधिकार संपन्न बनाए। सिर्फ भाषण देने से काम नहीं चलेगा। व्यवहार में भी दिखना चाहिए। अभी महापौर का स्मार्ट सिटी एवं मेट्रो प्रोजेक्ट पर सीधा नियंत्रण नहीं है। न ही विकास योजना निर्माण में उसकी भागीदारी है। केंद्र एवं राज्य सरकार की कई योजनाओं के क्रियान्वयन में स्थानीय निकाय की भागीदारी नहीं रखी गई है जबकि इसके क्रियान्वयन में निकाय की मदद ली जाती हैं। ऐसी अनेकों विसंगतियां हैं। इनको दूर करने पर मुख्यमंत्री को तुरंत निर्णय लेना चाहिए।
विभा पटेल ने कहा कि भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर, सतना और जबलपुर में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए नगर निगम की बजाय मप्र अर्बन डेवलपमेंट कंपनी (एमपीयूडीसी) के मातहत स्थानीय कंपनी का गठन किया गया है। इसमें महापौर के स्थान पर नगर निगम कमिश्नर को वित्तीय और प्रशासनिक समेत अन्य सभी फैसले लेने का अधिकार सौंपा गया है। इस प्रस्ताव को मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय संचालन समिति ने मंजूरी दी है।
विभा पटेल ने कहा कि हैरत वाली बात तो ये भी है कि मप्र अर्बन डेवलपमेंट कंपनी के 50 प्रतिशत शेयर एमपीयूडीसी के और 50 प्रतिशत नगर निगम के हैं। कंपनी के पास स्मार्ट सिटी की डिटेल डिजाइनिंग, प्लानिंग, स्ट्रक्चरिंग, दूसरे विभागों से तालमेल, डीपीआर बनाना, विभिन्न मंजूरी, जमीन का मालिकाना हक प्राप्त करना व इसे बेचना, निर्माण करना व मॉनिटरिंग, प्रोजेक्ट का इंप्लीमेंट करने जैसे कई अधिकार हैं। कंपनी के पास केंद्र व राज्य सरकार से मिलने वाले 1000 करोड़ के फंड के इस्तेमाल के साथ ही कर्ज लेने आदि की भी शक्ति है। नगर निगम परिषद को जो अधिकार हैं, उनका इस्तेमाल भी यह कंपनी कर रही हैं।
विभा पटेल ने कहा कि संविधान के 74वें संशोधन में नगरीय निकायों को सशक्त करने के उद्देश्य से सरकार के तीसरे स्तंभ के रूप में स्थान दिया गया है। नगरीय प्रशासन में महापौर और महापौर परिषद को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। जिनकी स्मार्ट सिटी में कोई भूमिका निर्धारित नहीं है।ये व्यवस्था तो 74 वें संविधान संशोधन की मंशा के भी खिलाफ हैं। विभा पटेल ने कहा कि कुछ ऐसा ही हाल मेट्रो प्रोजेक्ट का है। इसको लेकर व्यवहारिक विषयों में नगरीय निकास की भूमिका है लेकिन उसकी भागीदारी नहीं रखीं गई है। इसी तरह ग्लोबल समिट से भी नगरीय निकाय को दूर रखा जाता है जबकि व्यवस्था में उसकी भूमिका रहती हैं। श्रीमती विभा पटेल ने कहा कि स्मार्ट सिटी और मेट्रो जैसे प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में महापौर को सीधा हस्तक्षेप करने का अधिकार मिलना चाहिए क्योंकि वे वास्तविक स्थिति से रुबरु होते हैं। लेकिन इनकी राय को अहमियत नहीं दिए जाने का अर्थ सिर्फ राजनीतिक और आला अफसरों की मनमर्जी हैं। इस व्यवस्था में बदलाव किया जाना चाहिए।
विभा पटेल ने कहा कि अभी हालत ये है कि स्वायत संस्था होने के बाद भी नगरीय निकायों में प्रशासन की सीधी दखलअंदाजी होने से नगर निगम, नगर पालिकाएं, नगर पंचायतें अपने विवेक अनुसार काम नहीं कर पाती हैं। जिला प्रशासन समेत आवास एवं पर्यावरण विभाग से उसका तालमेल नहीं होता है। इसका असर विकास योजनाओं के क्रियान्वयन पर पड़ता है। वैसे भी 74वें संविधान (संशोधन) अधिनियम के तहत शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया हैं। नगरों में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने व उसे सक्रिय बनाने के लिए 1992 में संविधान का 74वाँ संविधान संशोधन संसद ने पारित कर एक कानून बनाया। ये 1 जून 1993 से देशभर में लागू हुआ। इसका मकसद था स्थानीय निकाय अपने कर्तव्यों के निर्वहन एवं उनके क्रियान्वयन पर विशेष बल होने के कारण वे नागरिकों को जन सुविधाओं उपलब्ध कराने में अधिक समर्थ हो सके हैं। अब भी समय है। मुख्यमंत्री को चाहिए वे नगरीय निकाय को सशक्त बनाने की ऐसे विषयों पर तुरंत निर्णय लें।
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