इंदौर। नगर निगम अभी तक इस मुगालते में था कि वह ठेकेदारों द्वारा फर्जी बिल भुगतान में हड़पे रुपयों में से जीएसटी की जमा कराई गई लगभग 18 करोड़ रुपए की राशि विभाग से हासिल कर लेगा। मगर अब पता चला कि शातिर अफसरों-कर्मचारियों और ठेकेदारों ने जिन अधिकांश फर्मों के जरिए इस महाघोटाले को अंजाम दिया उनमें से अधिकांश का उन्होंने रजिस्ट्रेशन ही कैंसल करवा लिया था, जिसके चलते जीएसटी जमा कराने का भी कोई सवाल ही नहीं उठता। वहीं पिछले दिनों जो चार नई फर्में अग्रिबाण ने उजागर की थी उनमें भी साढ़े 4 करोड़ रुपए से अधिक के भुगतान का खुलासा हुआ है। इन फर्मों में एनएनएंडए, अल्पा, मातोश्री और मेट्रो के नाम शामिल हैं, जिनकी 75 फाइलों की जांच अब ड्रैनेज शाखा द्वारा की जा रही है। दूसरी तरफ निगम ने जो एफआईआर एमजी रोड थाने पर दर्ज की थी उससे संबंधित फाइलें भी पुलिस ने तलब की है, जिसमें से 16 मूल फाइलें निगम ने थाने भिजवा दी और 28 फाइलें भी सौंपी जा रही है। दरअसल निगम का यह भी कहना है कि जिन 20 फाइलों की चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी उनमें भी सभी मूल फाइलें तो मौजूद हैं, सिर्फ एक ही फाइल और उसके साथ लेखा खातों के जो दस्तावेज थे वे ही चोरी हुए।
अग्रिबाण ने पिछले दिनों नई फर्मों के साथ-साथ यह भी खुलासा किया था कि इनके कर्ताधर्ताओं ने बेशकीमती सम्पत्तियां भी खरीदी हैं, जिसमें चर्चित बर्खास्त बेलदार असलम खान के भाई, मां, अन्य रिश्तेदारों और कर्मचारियों के नाम की फर्में भी शामिल हैं, जिसमें कास्मो कंस्ट्रक्शन, डायमंड इंटरप्राइजेस, मेट्रो, एवन, अल्फा के नाम सामने आए। असलम के भाई मोहम्मद एहतेशाम उर्फ ऐजाज खान ने कुछ समय पूर्व ही 5 करोड़ रुपए से अधिक कीमत का पेट्रोल पम्प भी देपालपुर के ग्राम झलारा में खरीदा। इसमें ईश्वर इंटरप्राइजेस के मौसम व्यास को भी पुलिस ने कल गिरफ्तार कर लिया। पेट्रोल पम्प की जो रजिस्ट्री करवाई गई उसमें मौसम व्यास बतौर गवाह मौजूद है और उसके साथ विकास चौहान का भी नाम जुड़ा है। दूसरी तरफ एक और चौंकाने वाली जानकारी यह सामने आई कि जिन फर्मों ने निगम खजाने से करोड़ों रुपए फर्जी बिलों को प्रस्तुत कर हड़प लिए उनमें से अधिकांश ने अपने रजिस्ट्रेशन कैंसल करवा रखे हैं। दरअसल सीपीडब्ल्यूडी में ये रजिस्ट्रेशन होते हैं और उसकी वेबसाइट पर सेल्फ कैंसिलेशन में जाकर चैक करने पर पता चलता है कि न्यू कंस्ट्रक्शन, ग्रीन, कंस्ट्रक्शन सहित कई फर्मों के रजिस्ट्रेशन कैंसल हैं।
चूंकि यह फर्में अस्तित्व में ही नहीं रही, बावजूद इसके निगम की ऑडिट और फिर लेेखा शाखा ने इन फर्मों के खातों में करोड़ों का भुगतान कर डाला। निगम के अपर आयुक्त सिद्धार्थ जैन का कहना है कि यह भी जानकारी सामने आई कि इन फर्मों ने जीएसटी की राशि भी जमा नहीं की है। उसकी जानकारी हालांकि वाणिज्यकर विभाग से मांगी गई है। दूसरी तरफ विभाग का कहना है कि वह अब जीएसटी के फर्जी रजिस्ट्रेशन और बोगस बिलों को जारी होने से रोकने के लिए बिजली कम्पनी से डाटा मांग रहा है। साथ ही अब जीएसटी रजिस्ट्रेशन के साथ ताजा बिजली बिल की कॉपी भी लगाना पड़ेगी। दूसरी तरफ कांग्रेस ने इस महाघोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। कल शहर कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष देवेन्द्रसिंह यादव और वरिष्ठ नेता राजेश चौकसे, गिरधर नागर, अनिल यादव, सन्नी राजपाल व अन्य ने नारेबाजी करते हुए ज्ञापन सौंपा और भाजपा पर इन घोटालेबाजों को संरक्षण देने के आरोप भी लगाए, क्योंकि पिछले 20 सालों से नगर निगम में भाजपा की परिषद ही मौजूद है और वर्तमान महापौर, उनकी परिषद सहित पूर्व के भी कर्ताधर्ता जिम्मेदार हैं कि उनकी नाक के नीचे कैसेलम्बे समय तक यह महाघोटाला चलता रहा? वहीं निगमायुक्त शिवम वर्मा से पूछने पर उन्होंने बताया कि शासन की एसआईटी ने 15 साल का जो रिकॉर्ड भुगतान का मांगा है उसे तैयार कर जल्द सौंप दिया जाएगा। इसमें स्थापना व्यय से लेकर नगर निगम द्वारा किए गए भुगतान और अन्य मदों के अलावा सिर्फ ठेकेदारों को 2010 से लेकर 2024 तक जो भुगतान निगम खजाने से हुआ है उसका ब्योरा तैयार किया जा रहा है। साथ ही आयुक्त ने यह भी कहा कि इस घोटाले से संबंधित सभी आवश्यक जानकारियां भी पुलिस के साथ साझा की जा रही है। चूंकि नगर निगम ने ही शुरुआत में 5 फर्मों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी और उसके बाद पुलिस की जांच और हमारी विभागीय जांच के चलते जिन नई फर्मों का पता चला उनमें से कुछ के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर संबंधित ठेकेदारों और निगम कर्मचारियों के खिलाफ भी प्रकरण दर्ज कर लिए हैं और उनसे संबंधित फाइलें भी पुलिस को सौंपी जा रही है।
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