कल शाम से ही राजनीतिक ठियों पर भड़ास निकलने लगी कि क्या हम मर गए थे जो देवास से आयातित नेता को लाकर आईडीए की कुर्सी पर बिठा दिया? हुआ तो वही, जो मोघे को महापौर के टिकट के समय हुआ था और फिर सत्तन गुरू ने टिप्पणी की थी कि एम्पायर ही खुद बैट्समैन बन बैठे। यहां जिनकी नियुक्ति की गई है उनकी जबवादारी एम्पायर के साथ-साथ सिलेक्टरों की भी थी, लेकिन जब से उनके सहित अन्य सिलेक्टरों को पद से हटाकर भाजपा के मुख्य संगठन में शामिल कर लिया था तब से लग रहा था कि इन्हें भी अब पार्टी कोई महत्वपूर्ण पद देगी, लेकिन जिस तरह से चावड़ा को इंदौर विकास प्राधिकरण जैसी महत्वपूर्ण जैसी कुर्सी पर बिठा दिया है वे इंदौर के खाटी भाजपा नेता सपने में भी सोच नहीं सकते थे। भले ही बाकी संगठन मंत्रियों को पूरे प्रदेश में किसी न किसी निगम-मंडल का अध्यक्ष बनाया हो, लेकिन चावड़ा को सीधे फ्रंट बैट्समैन बना दिया है। इंदौर विकास प्राधिकरण जैसी संस्था, जिसके लिए पिछले कई दिनों से शहर के दिग्गज नेता भोपाल से लेकर दिल्ली एक किए हुए थे, उन्हें समझ ही नहीं आया कि ये क्या हो गया? पहली बार में तो वे भी भौचक्क रह गए। कुछ कहने लगे कि हो सकता है कुछ गलत प्रिंट हो गया हो, लेकिन जब सीएम के ट्वीटर अकाउंट पर उन्होंने पढ़ा तो उन्हें अपने आपको यकीं दिलाना ही पड़ा कि वो हो गया है, जिसकी किसी को आशा नहीं थी। कोई कहने लगा कि वे देवास के हैं तो उन्हें देवास विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जा सकता था या फिर कोई और जवाबदारी दी जा सकती थी। एक राजनीतिक ठिये पर एक बड़े नेता को सीधे यह कहते सुना गया कि भाजपा ने अब अपनी लाइन बदल दी है और अब यहां दरी उठाने वाले कार्यकर्ताओं की पूछपरख नहीं है। हम जैसे नेता अब तो भाषण देने और मंच की कुर्सियों की शोभा बढ़ाने के लिए बचे हैं। इनकी इस बात में दूसरे नेताओं ने भी हां में हां मिलाई। कुछ नेता तो यह कहते सुने गए कि अब मंडल नहीं क-मंडल पकड़ लों और निकल जाओ गंगा या नर्मदा किनारे। अब यहां कुछ बचा नहीं है। हमारी पार्टी वास्तव में पार्टी विथ डिफरेंस हो गई है। कई नेताओं ने तो चावड़ा का राजनीतिक भविष्य तक तय कर दिया और कहा कि अब उनको इंदौर की किसी भी सीट से विधायक का चुनाव लड़ा दिया जाए तो उस समय आश्चर्य मत करना। हालांकि दूसरे ही नेता ने इसका खंडन कर डाला और कहा कि अभी जब तक बड़े साब है तब तक ही इनकी चलना है, इसके बाद कोई पूछेगा भी नहीं। मुख्यमंत्री द्वारा की गई 25 राजनीतिक नियुक्तियों में सबसे ज्यादा चावड़ा की ही चर्चा कल होती रही। वैसे भाजपा में विरोध नाम का शब्द ही नहीं है और जिसने इस शब्द को अपनी डिक्शनरी में शामिल किया, उसका क्या हश्र हुआ ये यहां के नेता भलीभांति जानते भी हंै और समझते भी हैं। वे चुप हंै और अपनी जुबां नहीं खोल रहे हैं। अंदर ही अंदर घुट रहे हैं कि ये क्या हो गया? कुछ इसलिए चुप हैं कि उन्हें नगर निगम चुनाव में महापौर की कुर्सी नजर आ रही हैं, क्योंाकि इसके अलावा कुछ बचा नहीं है। ये ही पॉलीटिक्स है प्यारे, यहां जो होता है उसकी आहट नहीं होती और जिसकी चर्चा चलती है वो कभी नहीं होता
-संजीव मालवीय
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