महंगा हो रहा मेडिक्लेम…मेडिकल इंश्योरेंस पर सर्वाधिक 18 प्रतिशत लग रहा टैक्स…
इंदौर, बजरंग कचोलिया। जनता के स्वास्थ्य की चिंता के चलते एक तरफ सरकार आयुष्मान कार्ड (Aayushman Card) का लाभ देने व नि:शुल्क इलाज कराने पर जोर दे रही है, जबकि दूसरी तरफ मेडिक्लेम इंश्योरेंस पर अभी भी सर्वाधिक 18 प्रतिशत टैक्स (Tax) लग रहा है, जिससे आम आदमी के लिए अब भी मेडिक्लेम (Mediclaim) लेना महंगा ही साबित हो रहा है।
कोरोना संक्रमण के बाद सरकार ने गाइड लाइन जारी कर सरकारी व निजी सभी तरह के कर्मचारियों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस अनिवार्य किया था। सूत्रों की मानें तो वायरस बढ़ोतरी के बाद मेडिक्लेम का धंधा जमकर फला-फूला, किंतु उसके घटने के बाद मेडिक्लेम इंश्योरेंस की डिमांड फिर कम होने लगी है। वर्तमान में करीब एक दर्जन निजी कंपनियां मेडिक्लेम का कारोबार कर रही हैं। इनमें स्टार हेल्थ, रेलीगेयर, एचडीएफसी अग्रो, ओरिएंटल, भारती एक्सा, मैक्स बूपा, आईसीआईसीआई लोंबार्ड, टाटा एआईजी, सिग्ना टीटीके इत्यादि शामिल हैं। उपभोक्ता किसी बीमारी से ग्रस्त होने पर महंगे इलाज के खर्च से बचने के लिए यदि पॉलिसी भी लेना चाहे तो इन पर लगने वाला सर्विस टैक्स महंगाई के इस दौर में उसका पूरा बजट बिगाड़ देता है। जैसे लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसियों में साढ़े 4 प्रतिशत ही सर्विस टैक्स लगता है, लेकिन मेडिक्लेम पॉलिसियों पर यह दर 18 प्रतिशत है। इस हिसाब से किसी मेडिकल पॉलिसी की टोटल प्रीमियम 10 हजार रुपए सालाना है तो उसमें 1800 रुपए तो टैक्स के ही लग रहे हैं। टैक्स की यह राशि सरकार के हिस्से में जा रही है। इसका न तो उपभोक्ता को फायदा मिलता है और न इंश्योरेंस कंपनी को। इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि इन पॉलिसियों का वास्तव में आम जनता को फायदा दिलाना है तो सरकार को टैक्स खत्म करना चाहिए। बीमा एजेंट मनीष अग्रवाल का कहना है कि जितना जोर सरकार आयुष्मान भारत में फ्री इलाज पर दे रही है, यदि उसका एक फीसदी जोर भी सस्ते मेडिक्लेम पर दे तो उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा और सरकार को भी अनावश्यक खर्च से राहत मिलेगी, जो उसे मुफ्त की योजनाओं में बांटना पड़ती है। निष्कर्ष यह है कि सरकार लोगों के स्वास्थ्य की चिंता तो कर रही है, लेकिन मेडिकल इंश्योरेंस पर कोरोना काल के बाद भी भारी-भरकम टैक्स हटाने को तैयार नहीं है।
क्लेम ने तोड़ी कंपनियों की कमर
अमूमन हेल्थ इंश्योरेंस से ग्राहक की तुलना में बीमा कंपनियों को ही ज्यादा फायदा होता है, लेकिन कोविड-19 का कहर जमकर टूटा तो इंश्योरेंस कंपनियों की कमर भी टूट गई, क्योंकि हेल्थ कंपनियों के पास क्लेम भी जमकर आए और कंपनियों की तिजोरियां खाली होने लगीं। एक समय कोरोना कवच के नाम पर धड़ाधड़ पॉलिसियां बेचने वाली कंपनियों में से आज बमुश्किल कुछ ही कंपनियां कोरोना कवच प्लान बेच रही हैं।
ग्राहकों की रुचि घटाता है वेटिंग पीरियड का फंडा
यदि कोई मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी आज की तारीख में भी ली जाए तो वह एक माह बाद ही प्रभावशील होगी, यानि 31 दिन का वेटिंग पीरियड है। मसलन जितेंद्र कुशवाह ने आज कोई मेडिक्लेम पॉलिसी ली तो वह 31 दिन तक लागू नहीं होगी। इस बीच यदि उसमें कोरोना या अन्य बीमारी के लक्षण नजर आए तो बीमा कंपनी यह कहकर इंश्योरेंस देने से इनकार कर सकती है कि जानकारी छिपाकर पॉलिसी ली गई है। पॉलिसी का फायदा एक माह बाद किसी तरह की बीमारी होने पर ही मिलेगा। जानकारों का कहना है कि भले ही अधिकांश इंश्योरेंस कंपनी बिना मेडिकल टेस्ट के ऑनलाइन व ऑफलाइन पॉलिसी बेचती है, लेकिन वेटिंग पीरियड पूरा होने के बाद ही पॉलिसी के लाभ मिलते हैं। आमतौर पर इसी अड़ंगे के कारण उपभोक्ता की मेडिक्लेम के प्रति रुचि कम रहती है।
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