मुरैना। प्रख्यात गांधीवादी एवं चम्बल के शांतिदूत डा. एसएन सुब्बाराव (Eminent Gandhian and Chambal peacemaker Dr. SN Subbarao) अब हमारे बीच नहीं रहे। वह कुछ समय से जयपुर के सबाई मानसिंह अस्पताल (Sabai Mansingh Hospital) में स्वास्थ लाभ ले रहे थे। आज तडक़े 4 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। यहां से उन्हें जयपुर के आचार्य विनोवा भावे ज्ञान केन्द्र में ले जाया गया। यहां उनका पार्थिव शरीर दर्शनार्थ रखा गया। देश सेवा व स्वतंत्रता का जज्बा सुब्बाराव जी में 13 वर्ष की उम्र में ही पैदा हो गया। वह भारत छोड़ों आंदोलन से जुड़ गये। स्वतंत्रता पश्चात चम्बल घाटी में शांति पैदा करने के लिये आ गये। वर्ष 1972 के दौरान देश हुये सबसे बड़े आत्म समर्पण में उनकी प्रमुख भूमिका रही। मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश से जुड़ी चम्बल घाटी में 13 से 16 अप्रैल 1972 एतिहासिक दिन थे जब 572 बागियों ने मुरैना-जौरा में गांधी जी के चित्र से समक्ष अपने हथियार डाल दिये थे। देश भक्ति का जज्बा कूट-कूटकर भरा होने के कारण युवाओं एक जुटता के साथ देश प्रेम की प्रेरणा अंतिम समय तक देते रहे।
भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री पुरुस्कार से नवाजा था। स्वदेशी आंदोलन के तहत आरंभ से ही अपने खेत अपने घर में उत्पाद से रोजगार व जीवन यापन के सिद्धांत को अपनाया। उनके द्वारा स्थापित गांधी सेवा आश्रम जौरा में आज भी खादी का निर्माण, शहद का उत्पादन, बर्मी कम्पोस्ट की इकाईयां इस बात की गवाही दे रहीं हैं कि उन्हें स्वदेशी से प्रेम था। आज दोपहर में उनका पार्थिव शरीर जयपुर से मुरैना के लिये रवाना हो चुका है। उनके अनुयाइयों का एक बडा काफिला देर शाम मुरैना पहुंचेगा। यहां सर्किट हाउस पर उनका पार्थिव शरीर मुरैना के लोगों के दर्शनार्थ रखा जायेगा। देर रात गांधी सेवा आश्रम जौरा के लिये रवाना होंगे। कल 28 अक्टूबर को उनका अंतिम संस्कार शाम 4 बजे आश्रम परिसर में ही होगा। इसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष अशोक सिंह के आने की संभावना है।