नई दिल्ली । एलन मस्क(elon musk) के नेतृत्व में अमेरिकी सरकार (US Government)के “डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी” (Department of Government Efficiency) ने लागत कटौती(Cost Reduction) को लेकर कई कदम उठाए हैं। कहा जा रहा है कि इन कदमों से भारतीय आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इन्फोसिस, विप्रो और अन्य पर असर पड़ सकता है। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि इन कटौतियों के कारण भारतीय कंपनियों की वृद्धि और राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर तब जब वैश्विक स्तर पर पहले से ही मंदी और अनिश्चितता का माहौल है।
भारतीय आईटी कंपनियां इस साल पहले से ही कठिन दौर से गुजर रही हैं और अब विश्लेषकों का मानना है कि वित्त वर्ष 2026 में भी अपेक्षित सुधार संभव नहीं दिख रहा है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह निराशावादी दृष्टिकोण एक्सेंचर की हालिया तिमाही रिपोर्ट के बाद आया है, जिसमें विवेकाधीन (डिस्क्रेशनरी) खर्च और कुल मांग में कमजोरी का संकेत दिया गया है।
आईटी इंडेक्स में 15.3% की गिरावट
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय आईटी इंडेक्स में इस साल अब तक 15.3% की गिरावट दर्ज की गई है और यह जून 2022 के बाद सबसे खराब तिमाही की ओर बढ़ रहा है। इस दौरान टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस और एचसीएल टेक जैसी बड़ी कंपनियों के शेयरों में 11.2% से 18.1% तक की गिरावट आई है।
एक्सेंचर की रिपोर्ट में क्या कहा गया?
वैश्विक आईटी सेवा कंपनी एक्सेंचर को भारतीय आईटी उद्योग के लिए एक प्रमुख संकेतक माना जाता है। इसने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा कि विवेकाधीन परियोजनाओं पर खर्च “सीमित” हो गया है और ग्राहकों के बजट में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं देखी जा रही है। एक्सेंचर की सीईओ जूली स्पेलमैन स्वीट ने अमेरिकी प्रशासन की नीतियों का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा, “नई सरकार संघीय खर्च को अधिक कुशल बनाने के प्रयास में है, जिसके कारण कई नई खरीद प्रक्रियाएं धीमी हो गई हैं। इससे हमारी बिक्री और राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।”
अमेरिकी बाजार में अनिश्चितता और व्यापार तनाव
अमेरिकी बाजार भारतीय आईटी कंपनियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन हाल ही में अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ और वैश्विक व्यापार तनाव ने अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट अमित चंद्रा के मुताबिक, “पिछले दो महीनों में जो कुछ हुआ है, उसने वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही को लेकर अनिश्चितता बढ़ा दी है, जिससे आईटी कंपनियों की रिकवरी प्रभावित हो सकती है।”
कोटक और सिटी रिसर्च की चेतावनी
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषकों ने कहा कि “वित्त वर्ष 2025 में मांग में सुस्ती और बड़े सौदों की धीमी गति से 2026 में राजस्व वृद्धि सीमित रह सकती है।” इसके अलावा, जनरेटिव एआई (Gen AI) के शुरुआती चरणों का प्रभाव भी कंपनियों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।
सिटी रिसर्च ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2026 में भारतीय आईटी कंपनियों की राजस्व वृद्धि सिर्फ 4% रहेगी, जो वित्त वर्ष 2025 के समान ही होगी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय आईटी कंपनियों का अमेरिका की हालिया नीतियों से सीमित सीधा प्रभाव पड़ेगा, लेकिन इसके चलते अन्य क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
बैंकिंग और हेल्थकेयर क्षेत्र में सुधार के संकेत
कुछ विश्लेषकों के अनुसार, बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा (BFSI) और हेल्थकेयर क्षेत्र में सुधार के संकेत मिले थे, लेकिन हालिया अनिश्चितताओं के चलते कई कंपनियां “रुको और देखो” की नीति अपना रही हैं। इससे आईटी कंपनियों की ग्रोथ पर असर पड़ सकता है।
इस बीच, मस्क की DOGE पहल को समर्थन भी मिल रहा है। समर्थकों का कहना है कि यह संघीय खर्च को नियंत्रित करने का एक जरूरी कदम है, जो अमेरिका के बढ़ते कर्ज को कम करने में मदद कर सकता है। लेकिन भारतीय आईटी क्षेत्र के लिए यह एक दोधारी तलवार साबित हो सकता है, क्योंकि लागत कटौती से जहां कुछ अवसर पैदा हो सकते हैं, वहीं मौजूदा परियोजनाओं पर जोखिम भी बढ़ सकता है। विश्लेषकों ने निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी है। उनका कहना है कि आने वाले महीनों में स्थिति और स्पष्ट होगी, जब DOGE की नीतियों का पूरा प्रभाव सामने आएगा। तब तक, भारतीय आईटी कंपनियों को अपनी रणनीति में लचीलापन लाने और नए अवसरों की तलाश करने की जरूरत होगी।
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