भोपाल। भाजपा ने मप्र में विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज कर दी है। प्रदेश में इस समय क्या स्थिति है इसे लेकर पार्टी तीन स्तरों पर फीडबैक ले रही है। इसमें यह पता लगाया जा रहा है कि क्या पार्टी चुनावों के लिए तैयार है? इन सर्वे में मिले फीडबैक के आधार पर ही पार्टी की चुनावी रणनीति तैयार होगी।
पार्टी के सूत्रों के अनुसार एक फीडबैक सर्वे राज्य स्तर पर हो रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी की एक एजेंसी से यह सर्वे कराया जा रहा है। दूसर सर्वे केंद्रीय नेतृत्व करा रहा है। एक गुजराती कंपनी को यह जिम्मा सौंपा गया है। तीसरा फीडबैक सर्वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के जमीनी स्तर पर सक्रिय स्वयंसेवकों के बीच कराया जा रहा है। इसमें यह देखा जा रहा है कि पार्टी की जमीनी स्थिति क्या है? साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ आम लोगों तक मिल पा रहा है या नहीं। इसके साथ ही पार्टी के प्रादेशिक नेतृत्व और विधायकों के प्रति असंतोष को भी परखा जा रहा है। इन फीडबैक सर्वे के नतीजे तय करेंगे कि चुनावों से पहले पार्टी सरकार और संगठन में किस तरह के बदलाव करती है।
गुजरात और हिमाचल से मिले सबक
गुजरात में पार्टी ने आमूलचूल परिवर्तन किए। हिमाचल में भी ऐसा ही हुआ। इसके बाद क्या स्थिति बनी है, उसके नतीजे सामने हैं। इन्हें भी नजीर मानकर पार्टी फैसले लेगी। इसके लिए फीडबैक सर्वे बुनियादी डेटा का काम करेंगे। दरअसल, गुजरात में पन्ना कमेटी और पन्ना प्रमुखों की डिजिटल सेना ने पार्टी को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, 20 साल या अधिक समय तक विधायक रहे नेताओं को टिकट न देने का नुकसान हिमाचल में उठाना पड़ा। वहां, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने बगावत की और इसका लाभ कांग्रेस को मिला। इस वजह से भाजपा की कोशिश है कि मध्यप्रदेश में ऐसे नेताओं पर नजर रखना, जो टिकट कटने पर परेशानी का सबब बन सकते हैं।
2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती पार्टी
भाजपा 2018 में अति-आत्मविश्वास में थी। इसका खामिजाया उसे भुगतना पड़ा था। इस वजह से पार्टी एंटी-इनकम्बेंसी को नकारकर बम्पर जीत चाहती है, जैसी गुजरात में उसे मिली है। इसके लिए जरूरी बदलाव फीडबैक सर्वे के आधार पर किए जाएंगे। मंत्रिमंडल फेरबदल या विस्तार से लेकर टिकट वितरण तक इन फीडबैक सर्वेक्षणों का महत्व रहने वाला है। इस वजह से पार्टी नेतृत्व का फोकस बना हुआ है।
विकास यात्राओं से मिला फीडबैक उत्साह बढ़ाने वाला
शिवराज सरकार ने फरवरी में करीब 20 दिन विकास यात्राएं निकाली। प्रशासनिक अमला गांव-गांव पहुंचा और हितग्राहियों को जोडऩे की कोशिश की। इस दौरान भाजपा सूत्रों के मुताबिक करीब 70 जगहों पर विरोध भी हुआ। यह विरोध स्थानीय मुद्दों, नेताओं और राजनीति की वजह से हुआ। इसका भी आकलन शीर्ष स्तर पर किया गया है। साथ ही जोड़े गए हितग्राहियों को पार्टी अपना ब्रांड एम्बेसेडर बनाकर काम करना चाहती है। इन्हें पन्ना समितियों में जगह देकर डिजिटल आर्मी का सदस्य बनाना भी पार्टी के एजेंडे में है।
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