मुंबई। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की बगावत से सीएम उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार पर ही नहीं बल्कि शिवसेना के लिए भी बड़ा संकट खड़ा हो गया है, शिवसेना से बागी हुए एकनाथ शिंदे के साथ 40 विधायक असम के गुवाहाटी पहुंच गए हैं। इस तरह उद्धव से ज्यादा एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना विधायक खड़े नजर आ रहे हैं, ऐसे में शिवसेना दो फाड़ होती है तो दलबदल कानून का भी खतरा नहीं होगा। इस तरह से उद्धव के हाथों से महाराष्ट्र की सत्ता के साथ-साथ शिवसेना की बागडोर भी एकनाथ शिंदे छीन सकते हैं?
शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की अगुवाई में उद्धव ठाकरे के खिलाफ जिस तरह बगावत हुई है, उसके चलते सिर्फ सरकार पर ही नहीं बल्कि पार्टी पर भी खतरा मंडराने लगा है। शिवसेना के करीब 40 विधायक महाराष्ट्र से पहले गुजरात गए और अब असम के गुवाहाटी पहुंच गए हैं। ये विधायक वो हैं जो उद्धव ठाकरे सरकार से नाराज हैं।
ऐसे में ये बागी नेता महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार को गिराने के लिए बीजेपी का समर्थन कर सकते हैं. बीजेपी ने उद्धव सरकार के ‘अल्पमत’ में आने का दावा किया है, लेकिन खुद सरकार के गठन के मुद्दे पर फिलहाल वेट एंड वॉच के मूड में है।
उद्धव से ज्यादा शिंदे के साथ हैं शिवसेना के विधायक
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 56 विधायक जीतकर आए थे, जिनमें से एक विधायक का निधन हो चुका है। इसके चलते 55 विधायक फिलहाल शिवसेना के हैं, एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके साथ 40 विधायक हैं। ऐसे में ये सभी 40 विधायक अगर शिवसेना के हैं तो फिर उद्वव ठाकरे लिए संकट काफी बड़ा है, इस तरह से एकनाथ शिंदे अगर कोई कदम उठाते हैं तो दलबदल कानून के तहत कार्रवाई भी नहीं होगी।
दरअसल, दलबदल कानून कहता है कि अगर किसी पार्टी के कुल विधायकों में से दो-तिहाई के कम विधायक बगावत करते हैं तो उन्हें अयोग्य करार दिया जा सकता है, इस लिहाज से शिवसेना के पास इस समय विधानसभा में 55 विधायक हैं। ऐसे में दलबदल कानून से बचने के लिए बागी गुट को कम के कम 37 विधायकों (55 में से दो-तिहाई) की जरूरत होगी जबकि शिंदे अपने साथ 40 विधायकों का दावा कर रहे है, ऐसे में उद्धव ठाकरे के साथ 15 विधायक ही बच रहे हैं। इस तरह उद्धव से ज्यादा शिंदे के साथ शिवसेना के विधायक खड़े नजर आ रहे हैं।
आखिर है क्या दल-बदल कानून ?
1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों के एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने से कई राज्यों की सरकारें गिर गईं थी. ऐसे में 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार दल-बदल कानून लेकर आई, संसद ने 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची में इसे जगह दी, दल-बदल कानून के जरिए विधायकों और सांसदों के पार्टी बदलने पर लगाम लगाई गई। इसमें ये भी बताया गया कि दल-बदल के कारण इनकी सदस्यता भी ख़त्म हो सकती है।
हालांकि, सांसदों/विधायकों के समूह को दल-बदल की सजा के दायरे में आए बिना दूसरे दल में शामिल होने (विलय) की इजाजत है। इसके लिए किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहते हैं तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी. महाराष्ट्र में ऐसी ही स्थिति बनती दिख रही है, शिवेसना के दो तिहाई विधायक अब एकनाथ शिंदे के साथ हैं, जिसके चलते उद्धव ठाकरे के पाल से गेंद निकल चुकी है। ऐसे में उद्धव के हाथों से सरकार ही नहीं बल्कि उनकी पार्टी भी निकलती नजर आ रही।
एकनाथ शिंदे के हर कदम पर बीजेपी की नजर
एकनाथ शिंदे ने 40 विधायकों के साथ बगावत करने के बाद उद्धव सरकार अल्पमत में आई है, बीजेपी भी यह बात बार बार कह रही है, एकनाथ शिंदे ने एयरपोर्ट पर ही दावा किया कि उनके साथ शिवसेना के 40 विधायक यहां पर मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि हम बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व को आगे बढ़ाएंगे. वहीं, शिवसेना नेता संजय राउत ने सियासी उथल-पूथल के बीच विधानसभा भंग करने के संकेत दिए हैं, हालांकि, उद्धव सरकार अगर विधानसभा भंग करने की सिफारिश करती है तो जरूरी नहीं है कि राज्यपाल उसे स्वीकार करे।
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