नई दिल्ली। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के पांचवें दिन युद्ध में और तेज़ी देखी गई। हालांकि यह अलग बात है कि एक ओर जहां लड़ाई जारी थी वहीं बेलारूस में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों के बीच बातचीत हुई। यह बैठक पांच घंटे तक चली। लेकिन यमन के विनाशकारी युद्ध (disastrous war) पर अब तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। यूनाइटेड नेशन (united nation) इसे दुनिया का सबसे खराब मानवीय संकट बताता रहा है लेकिन यह संकट लगातार बढ़ता जा रहा है।
यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट बताती है कि 80 फीसद यमनी लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है। करीब 1.3 करोड़ लोग भुखमरी से जूझ रहे हैं। एक लाइन में कहा जाए तो सऊदी और ईरान (Saudi and Iran) के बीच जारी छद्म युद्ध में यमन तबाह हो चुका है। आठ सालों से अधिक से जारी हिंसक संघर्ष में अब तक दस हजार से अधिक लोग मारे गए हैं और 40 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। सिर्फ जनवरी 2022 में 650 से अधिक नागरिक मारे गए हैं या घायल हुए हैं।
जानकारी के मुताबिक सालों की लड़ाई के बाद उत्तरी यमन और दक्षिणी (Yemen and Southern) यमन 1990 में संयुक्त यमन बनाने को राजी हुए। इससे शांति की उम्मीद बढ़ी लेकिन शांति आई नहीं। देश अभी भी गृहयुद्ध में फंसा हुआ है। दरअसल यमन के एकीकरण ने देश के उत्तर और दक्षिण हिस्सों में सक्रिय ताकतों को शांत नहीं किया। हूती विद्रोहियों सहित (including Houthi rebels) सरकार विरोधी ताकतों ने एकीकृत सरकार को चुनौती देना जारी रखा। फिर आया साल 2011। जब यमन के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला सालेह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह जनता के बीच विलेन बन गए थे। उन पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी को बढ़ावा देने जैसे कई आरोप लग रहे हैं।
ये वही वक्त था जब अरब दुनिया में अरब स्प्रिंग आया था। सालेह के जाने के बाद उनके डिप्टी अब्दराबुह मंसूर हादी ने काम संभालने की कोशिश की लेकिन वह भी नाकाम रहे। 2014 आते-आते हादी को लगने लगा कि वह भी सत्ता से हटा दिए जाएंगे। ऐसे में हूती विद्रोहियों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया और दोनों पक्षों के बीच सशस्त्र संघर्ष छिड़ गया। यमन सुन्नी-बहुसंख्यक सऊदी अरब के लिए एक रिंग बन गया, जो आधिकारिक सरकार का समर्थन करता है। दूसरी ओर शिया बहुल ईरान यमन में हूती विद्रोहियों का समर्थन करता है। संघर्ष जारी रहा और हूतियों ने यमन के उत्तर और राजधानी सना के अधिकतर हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया। इसके बाद हादी को यमन के दक्षिणी इलाके में भागना पड़ा। बाद में वह जान बचाने के लिए सऊदी अरब पहुंच गए।
मार्च 2015 में संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और अमेरिका सहित नौ देशों के गठबंधन ने यमन में सैन्य हस्तक्षेप किया। इस गठबंधन का मकसद फिर से हादी को सत्ता में काबिज करना था। सैन्य गठबंधन ने सैन्य कार्रवाई से पहले कहा था कि यह युद्ध हफ्तों में खत्म हो जाएगा लेकिन 7 साल बीतने के बाद यमन की हालात और खराब हो चुकी है। सऊदी गठबंधन का कहना है कि विद्रोहियों को ईरान उकसा रहा है और मदद कर रहा है लेकिन तेहरान इन आरोपों को खारिज करता रहा है।
अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों को भी यमन में जारी अराजकता के कारण खाद-पानी पहुंचाया है। अल-कायद और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी गुटों ने भी यमन के कुछ इलाकों पर कब्जा किया हुआ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक हूती विद्रोही यमन के करीब 80 फीसद इलाकों को नियंत्रित करते हैं। जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद उम्मीद जगी कि यमन का संकट खत्म हो सकता है लेकिन मार्च 2021 में हूतियों ने युद्धविराम के लिए अमेरिका समर्थित सऊदी प्रस्ताव को खारिज कर दिया। हूती विद्रोहियों ने कहा कि सऊदी गठबंधन पहले यमन से नाकेबंदी हटाए और सना हवाई अड्डे को फिर से खोले, फिर कोई बात होगी। लेकिन बात बनी नहीं।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हूती को एक विदेशी आतंकी संगठन के तौर पर नामित किया था लेकिन बाइडेन सरकार ने इस फैसले को एक साल पहले उलट दिया था। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अमेरिका के इस कदम से हिंसा और बढ़ रही है। यूनाइटेड नेशंस दोनों पक्षों को बातचीत से समझौता करने के लिए युद्धविराम में लाने की कोशिश कर रहा है लेकिन लड़ाई अभी भी बंद नहीं हुई है। ऐसे में यूनाइटेड नेशंस सहित दुनिया के ताकतवर देशों को यमन पर तरीके से ध्यान देने की जरूरत है कि जल्द से जल्द संघर्ष खत्म हो सके।
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