नई दिल्ली । लगातार तीसरे साल (For the Third Consecutive Year) आज (Today) ईद और अक्षय तृतीया (Eid and Akshaya Tritiya), दोनों त्योहार (Both Festivals) एक साथ मनाए जा रहे है (Are being Celebrated Together) । अक्षय तृतीया तो पूर्व निर्धारित थी, पर हिजरी कैलेंडर के शव्वाल महीने का आखिरी रोजा शुक्रवार को हुआ । शाम को चांद दिदार हुआ और आज ईद उल फितर मन रही है ।
पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने कहा है कि उत्सव मनाने के लिए अल्लाह ने कुरान में पहले से ही 2 सबसे पवित्र दिन बताए हैं। जिन्हें ईद-उल-फितर और ईद-उल-जुहा कहा गया है। इस तरह ईद मनाने की परंपरा शुरू हुई। माना जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी। इस खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया, इसलिए इसी दिन को मीठी ईद के तौर पर मनाते हैं। कहा जाता है कि पहली बार ईद-उल-फितर 624 ईस्वी में मना था।
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया पर दान देने का विशेष महत्व है। इस दिन किया गया दान अक्षय पुण्य देने वाला होता है, वहीं इस्लाम में भी मीठी ईद के मौके पर दान यानी जकात देने का रिवाज है। कुरान में जक़ात अल-फि़त्र को जरूरी बताया गया है। इसे हर मुसलमान का फर्ज कहा गया है। जो कि जरूरतमंद लोगों के लिए निकाला जाता है। मुस्लिम अपनी संपत्ति को पाक रखने के लिए सालाना बचत का एक हिस्सा जकात के तौर पर जरूरतमंद लोगों को देते हैं। कुछ मुस्लिम देशों में जकात इच्छा से दिया जाता है, वहीं कुछ जगहों पर इसे जरूरी माना है। परंपरागत रूप से इसे रमजान के आखिरी में और लोगों को ईद की नमाज पर जाने से पहले देते हैं। ईद-उल-फितर के दिन नमाज पढक़र खुदा का शुक्रिया अदा किया जाता है कि उन्हें रमजान में रोजे रखने की ताकत मिली। साथ ही जीवन में सादगी, इंसानियत, दूसरों की मदद करने और ईमान पर चलने के जज्बे के साथ जिंदगी जीने की ताकत मिले। सभी की सलामती और अमन के लिए इस मौके पर मस्जिदों में दुआ होती है।
वर्ष के श्रेष्ठतम दिनों में से एक वैशाख शुक्लपक्ष तृतीया जिसे हम सभी अक्षय तृतीया के नाम से जानते हैं । वेद वाक्य है कि, ‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वही अक्षय है। सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया, बसंत पंचमी और विजयदशमी सार्वभौमिक रूप से वर्ष के श्रेष्ठतम मुहूर्त हैं। इन मुहूर्तो में किए गए किसी भी तरह के शुभ-अशुभ कार्य का फल निष्फल नहीं होता। अर्थात यदि आप अच्छे कर्म करते हैं तो उसका फल भी अच्छा ही मिलता है। अप्रियकर्म कर्म करते हैं तो वह भी उसी रूप में उम्र भर आपका पीछा करता रहेगा, क्योंकि यह तिथि अक्षुण्ण फल देने वाली है। आपके कर्म शुभ हों या अशुभ उसका परिणाम जीवन पर्यंत मिलता रहेगा। तभी शास्त्रों में कहा गया है कि इन मुहूर्तो में हर प्राणी को अपने कार्य के प्रति चैतन्य रहना चाहिए।
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