भोपाल। राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा है कि ज्ञान वह खजाना है, जिसे कोई छीन नहीं सकता, नष्ट नहीं कर सकता है। हाथ में जो होता है, उसे दूसरा छिन एवं नष्ट कर सकता है, पर जो दिमाग में है, वह सदैव साथ रहता है। उन्होंने कहा कि पुस्तकालय वह मंदिर है, जहाँ ज्ञान के देवता निवास करते हैं। ई-ग्रंथालय, ज्ञान के देवता को हर व्यक्ति तक पहुँचाने का प्रयास है। राज्यपाल पटेल बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के सभागार में ई-ग्रंथालय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कृत्रिम मेधा पर पुस्तक अधिग्रहण पंजी पर डिजिटली प्रविष्टि करके प्राप्त कर ग्रंथालय का शुभारम्भ किया।
राज्यपाल पटेल ने कहा कि पुस्तकालय अध्यक्ष का कार्य मात्र व्यवसाय नही है, यह राष्ट्र निर्माण के मिशन में अत्यंत महत्वपूर्ण जि़म्मेदारी है। सामान्यत: किसी भी व्यवसाय के कार्य निपुणता की समीक्षा उसी व्यवसाय से सम्बंधित लोग करते हैं, किन्तु पुस्तकालय अध्यक्ष के कौशल और कार्य क्षमता की समीक्षा प्रत्येक विषय से सम्बंधित पाठक करता है। पुस्तकालय अध्यक्ष का कार्य जटिल है, जो पाठकों के लिए ज्ञान प्राप्ति के पथ का प्रदर्शक और मार्गदर्शक होता है। आवश्यकता है कि ग्रंथालय का प्रबंधन और संचालन कार्य संगठनात्मक उत्कृष्टता और तकनीकी गुणवत्ता के साथ किया जाये; क्योंकि पुस्तकालय दुनिया को जानने के दरवाजे की चाबी होते हैं। ई-ग्रंथालय परियोजना ही वह चाबी है जो उच्च शिक्षा के छात्र-छात्राओं के लिए देश-दुनिया के ज्ञान के भण्डार को खोल देगी।
राज्यपाल पटेल ने कहा कि व्यक्तित्व के विकास के लिए पढ़ाई से बेहतर कोई और साधन नहीं है, इसी लिए मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त किताबों को ही माना गया है। किताबें जीवन के उतार-चढ़ाव से परिचित कराती हैं। पुस्तके कठिन समय में मित्र, मार्गदर्शक और दार्शनिक के रूप में सदैव पाठक के साथ खड़ी रहती हैं। किसी भी राष्ट्र की ताकत और तरक्की का आधार ज्ञानवान नागरिक होते हैं। ज्ञान का पथ शिक्षा है। पुस्तकें ज्ञानवान बनाने का साधन हैं।
राज्यपाल पटेल ने कहा कि संचार क्रांति के युग में ज्ञान के प्रसार का प्रभावी तरीका ई-पुस्तकालय है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा मातृ भाषा में शिक्षा की जो पहल की है, उसे सफल बनाने में ई-ग्रंथालय महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। आवश्यकता है कि आधुनिक संचार माध्यमों और तकनीक का उपयोग कर पुस्तकालयों को दूरस्थ और वंचित वर्गों तक पहुँचाया जाए। उन्होंने अपेक्षा की है कि कार्यशाला का चिंतन, ज्ञान के द्वारा वंचितों और अपेक्षाकृत पिछड़ों को विकास की मुख्य धारा में शामिल कराने के प्रयासों को मज़बूत बनाएगा।
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