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    धर्मांतरण का सहारा लेकर अपने धर्म का अस्तित्व बचाने का हो रहा है प्रयास

  • July 06, 2021

    – डॉ. नीलम महेंद्र

    उत्तर प्रदेश के ताजा घटनाक्रम से विषय की संवेदनशीलता इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि अब तक अधिकतर गरीब मजलूम और कम पढ़े लिखे लोग ही धर्मांतरण का शिकार होते थे लेकिन इस बार धर्मांतरण करने वाले लोगों में पढ़े लिखे डॉक्टर, इंजीनियर और एमबीए तक करे हुए नौजवान हैं।

    कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश में लगभग एक हजार लोगों के धर्मांतरण का मामला सामने आया था। खबरों के अनुसार इन लोगों में मूक बधिर बच्चों से लेकर युवा और महिलाएं भी शामिल हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि धर्म बदलने वाले इन लोगों में ज्यादातर पढ़े लिखे युवा थे। सरकारी नौकरी करने वाले से लेकर बी.टेक कर चुके शिक्षक और एमबीए पास युवक से लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर, एमबीबीएस डॉक्टर तक इसमें शामिल हैं।

    दिलचस्प बात यह है कि ये सब उस प्रदेश में हुआ जहां धर्मांतरण के खिलाफ 2020 में ही एक सख़्त कानून लागू कर दिया गया था। लेकिन हमारे देश में धर्मांतरण की समस्या केवल एक प्रदेश तक सीमित नहीं है। झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल जैसे देश के कई राज्यों में धर्मांतरण के मामले आए दिन सामने आना एक साधारण बात है। सत्य तो यह है कि हमारे देश में धर्मांतरण की समस्या काफी पुरानी है। यही कारण है कि इस विषय में महात्मा गांधी कहते थे कि, “मैं विश्वास नहीं करता कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का धर्मांतरण करे। दूसरे के धर्म को कम करके आँकना मेरा प्रयास कभी नहीं होना चाहिए। मेरा मानना है कि मानवतावादी कार्य की आड़ में धर्म परिवर्तन रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।”

    दरसअल कभी मानवता के नाम पर तो कभी गरीबी और लाचारी का फायदा उठाकर, कभी बहला फुसलाकर तो कभी लव जिहाद के धोखे से हमारे देश में बड़ी तादाद में लोगों का धर्मांतरण कराया जाता रहा है। किंतु उत्तर प्रदेश के ताजा घटनाक्रम से इस विषय की संवेदनशीलता इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि अब तक अधिकतर गरीब मजलूम और कम पढ़े लिखे लोग ही धर्मांतरण का शिकार होते थे लेकिन इस बार धर्मांतरण करने वाले लोगों में पढ़े लिखे डॉक्टर, इंजीनियर और एमबीए तक करे हुए नौजवान हैं।

    यहाँ कुछ कथित उदारवादी यह तर्क दे सकते हैं कि धर्म अथवा पंथ एक निजी मामला है और हर किसी को अपना धर्म चुनने का अधिकार है। इसलिए धर्मांतरण पर आपत्ति करना व्यर्थ की राजनीति है। तो प्रश्न यह उठता है कि मूक और बधिर बच्चे भी क्या उनकी इस परिभाषा के दायरे में आते हैं? प्रश्न यह भी कि अगर कोई एक व्यक्ति अपना धर्म अथवा पंथ बदलता है तो वो उसका निजी मामला हो सकता है लेकिन जब लगभग एक हज़ार लोग धर्मांतरण करें तो भी क्या वो निजी मामला रह जाता है? एक व्यक्ति की आस्था बदलना उसका निजी मामला हो सकता है लेकिन एक हज़ार लोगों की आस्था में परिवर्तन निजी मामला कतई नहीं हो सकता। क्योंकि आस्था में परिवर्तन के साथ जिस धर्मांतरण को अंजाम दिया जाता है वो कहानी का अंत नहीं शुरुआत होती है। शुरुआत होती है एक सिलसिले की। एक सुनियोजित षड्यंत्र की जो शुरू तो होता है नाम बदलने के साथ लेकिन व्यक्तित्व और विचार भी बदल देता है। जब कोई आदित्य अब्दुल्ला बनता है या बनाया जाता है तो सिर्फ नाम ही नहीं खान-पान और पहचान भी बदल जाती है। उपासना पद्धति ही नहीं बदलती उसके त्योहार और उसकी आस्था भी बदल जाती है।

    अभी कुछ दिनों पहले ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश में सामने आया था जब एक महिला की मृत्यु के बाद उसके बेटे ने हिंदू रीति रिवाज से उसका अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था क्योंकि उसने धर्मांतरण कर लिया था। जाहिर है इस प्रकार की घटनाएं समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। यही कारण है कि इस विषय में स्वामी विवेकानंद का कहना था कि एक हिंदू का धर्मांतरण केवल एक हिंदू का कम होना नहीं, बल्कि एक शत्रु का बढ़ना है। और शायद उनके इस कथन का उत्तर प्रदेश के इस मामले से बेहतर कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। क्योंकि इस मामले को देखें तो घटना का मुख्य आरोपी उमर गौतम खुद धर्मांतरण से पुर्व श्याम प्रसाद सिंह गौतम था जिसने लगभग एक हज़ार लोगों के धर्मांतरण को अंजाम दिया। इस व्यक्ति का एक तथाकथित वीडियो सामने आया है जिसमें वो स्वीकार कर रहा है कि कैसे वो खुद धर्मांतरण करके श्याम प्रसाद सिंह गौतम से मौलाना उमर गौतम बना और कैसे उसने एक हज़ार लोगों का धर्मांतरण करके न जाने कितने ही सौरभ शर्मा को मोहम्मद सूफियान बनाया है।

    इसे क्या कहा जाए कि भारत में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के नाम पर जिस धर्मांतरण को अंजाम दिया जा रहा है उसी धर्मांतरण को इस्लामी देशों में गैर कानूनी माना जाता है। यह जानना रोचक होगा कि इस्लामी कानून पालन करने वाले कई इस्लामी देशों जैसे सऊदी अरब, सूडान, सोमालिया, जोर्डन, इजिप्ट में पंथ परिवर्तन गैर कानूनी है और इसके लिए सख्त सज़ा का प्रावधान है। मालदीव में तो अगर कोई मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति अपना पंथ बदलता है तो उसकी नागरिकता ही समाप्त हो सकती है।

    कहने को भारत में भी धर्मांतरण रोकने के लिए कानून है जो गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड समेत देश के नौ राज्यों में लागू है। ओडिशा में तो यह 1967 से लागू है। लेकिन धर्मांतरण रोकने में यह कानून कितना कारगर है इस प्रकार की घटनाएं खुद इस बात की गवाही दे देती हैं। गवाही के साथ इस प्रकार की घटनाएं स्थिति की गंभीरता की ओर भी इशारा करती हैं। यह वाकई में चिंताजनक है कि स्वामी विवेकानंद और गाँधी जी जैसे व्यक्तित्व जिस विषय की गंभीरता को सालों पहले हमारे सामने ला चुके थे वो विषय आज पहले से भी अधिक गंभीर हो चुका है। स्पष्ट है कि कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है उसे कठोरता से लागू करना महत्वपूर्ण है।

    लेकिन जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार धर्मांतरण के भी दो पक्ष हैं। यह पक्ष तो हम सभी के सामने है कि किस प्रकार लोगों को बहला फुसलाकर हिंदू धर्म से उनका धर्मांतरण कराया जाता है। किंतु इसका दूसरा पक्ष यह है कि जिस हिंदू धर्म से लोगों का धर्मांतरण कराया जाता है वो हिंदू धर्म इस धरती का सबसे पुराना और सनातन धर्म है। उस सनातन धर्म के निशान विश्व के हर कोने में आज भी मौजूद हैं। रूस से लेकर रोम तक और अफ्रीका से लेकर इंडोनेशिया जहां आज विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी है, तक के देशों के इतिहास में सनातन धर्म कभी उनकी संस्कृति का हिस्सा थी। इससे बड़ी बात क्या होगी कि विश्व का सबसे बड़ा अंगकोर वट मंदिर भारत में नहीं अपितु कंबोडिया में 162.6 हेक्टेयर भूमि में स्थित है और विश्व में दूसरा सबसे बड़ा मंदिर स्वामी नारायण अक्षरधाम यूएस में है। कहने का तात्पर्य यह है कि यह सनातन धर्म के प्रति विश्व भर के लोगों का एक नैसर्गिक आकर्षण है। यही कारण है कि विश्व के विभिन्न भागों से लोग शाँति की खोज में इसी सनातन धर्म की शरण में आते हैं। सनातन धर्म को धर्मांतरण का सहारा नहीं लेना पड़ता। स्टीव जॉब्स, सिल्वेस्टर स्टेलोन, मार्क जुकरबर्ग, जूलिया रॉबर्ट्स जैसे हज़ारों लोग अपनी उसी नाम और पहचान के साथ सनातन धर्म को अपना सकते हैं। इसके लिए उन्हें ना तो अपना नाम बदलना पड़ता है। तो समझा जा सकता है कि जिन पंथों को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए धर्मांतरण का सहारा लेना पड़ रहा है वो असलियत में कितनी कमजोर नींव पर खड़े हैं।

    (लेखिका वरिष्ठ पत्रकार एवँ स्तम्भकार हैं)

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