– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार को अनेक लोग सहज रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहे। वह यह तथ्य स्वीकार करने को तैयार नहीं कि नरेन्द्र मोदी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। आमजन के बीच उनकी विश्वसनीयता शिखर पर है। अनेक प्रदेशों में भी भाजपा को मोदी के नेतृत्व का लाभ मिलता है। योगी आदित्यनाथ भी व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में नरेन्द्र मोदी की तरह हैं। दोनों में समाज सेवा और संन्यास का अलग-अलग समन्वय दिखाई देता है। इसमें परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं है। विपक्ष इनसे मुकाबले का तरीका ही नहीं समझ सका।
यही कारण है कि यह पार्टियां अपनी पराजय पर आत्मचिंतन करने से बचती हैं। किसी प्रदेश में सरकार बन गई तो इसे अपनी लोकप्रियता बताते हैं। भाजपा को जनादेश मिला तो ईवीएम की खैर नहीं। कुछ वर्षों से यही चल रहा है। इस शोधग्रंथ में एक नया अध्याय जुड़ा है। वह है- उत्तर प्रदेश में पोस्टल बैलेट के आधार पर पूरे चुनाव की सीटों का आकलन करना। यह आंकड़ा 300 प्लस तक पहुंच गया। कहा गया कि भाजपा चालाकी और बेईमानी से जीत गई, जबकि बैलेट पोस्टल पर पुरानी पेंशन बहाली और 300 यूनिट फ्री बिजली वादे का असर हुआ। कहा गया कि पोस्टल बैलट में समाजवादी पार्टी गठबंधन को करीब 51 प्रतिशत वोट मिला। इस हिसाब से कुल तीन सौ चार सीटों पर सपा गठबंधन की जीत चुनाव का सच बयान कर रही है। वैसे भी प्रदेश के मतदाताओं ने सपा की ढाई गुना सीटें बढ़ाकर अपना रुझान जता दिया है। बैलेट पोस्टल की सुविधा सरकारी सेवा के लोगों को मिलती है। इनमें भी उन लोगों ने उत्साह दिखाया िजन्हें पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिल रहा है।
अनेक लोगों ने सोशल मीडिया पर अभियान चलाया। कहा गया कि राष्ट्रवाद, कानून व्यवस्था, विकास आदि के मुद्दे अगले चुनाव में देखे जाएंगे। इस बार केवल पुरानी पेंशन बहाली के वादे पर वोट करना है। दो सौ फ्री यूनिट बिजली वादे से सरकार बनने के उदाहरण हैं। उत्तर प्रदेश में तो तीन सौ यूनिट फ्री बिजली का वादा किया गया था। इन वादों को गेंम चेंजर कहा जा रहा था। सत्तारूढ़ भाजपा वादों की इस झड़ी में पीछे रह गई थी। लेकिन पुरानी पेंशन बहाली से गरीब, किसान, व्यापारी व निजी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों का कोई मतलब नहीं था। इस संबन्ध में आमजन के अनुभव भी सुखद नहीं होते। उन्हें अपने उचित कार्यों के लिए भी अक्सर परेशानी का सामना करना पड़ता है। किंतु पोस्टल बैलेट का प्रयोग करने वालों के लिए पुरानी पेंशन बहाली के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। इसके बाद भी अनेक लोगों ने निजी हितों की जगह समाज व प्रदेश के हित को वरीयता दी। उनको इसी प्रकार की राजनीति करने वाले लोग पसंद हैं।
वैसे भी भाजपा को छोड़ कर देश के प्रायः सभी दल व्यक्ति व परिवारवादी हैं। अन्य प्राथमिकता इसके बाद ही प्रारंभ होती है। वह अपनी इस कमजोरी को छिपाना चाहते हैं। इसके लिए पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों आदि की दुहाई देते हैं। इस परम्परागत राजनीति से ऊपर उठने का इनके पास कोई विजन नहीं है। जबकि लोग जागरूक हो चुके हैं। वह असलीयत को देखते और समझते हैं। गरीबों और किसानों आदि के हित में सभी सरकारों का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रहता है। करोड़ों की संख्या में कल्याणकारी योजनाओं से लाभांवित होने वाले लोग है। इनके ऊपर जाति मजहब और लोकलुभावन समीकरण ज्यादा महत्व नहीं रखते। मुकाबले में एकमात्र दल था। इसलिए उसकी सीटें बढ़ानी स्वभाविक थी। लेकिन बेशुमार वादों के बावजूद उसे सत्ता से दूर रखने का मतदाताओं ने निर्णय लिया। इस पराजय पर आत्मचिंतन की आवश्यकता थी। लेकिन फिर ईवीएम और बेईमानी की बात हुई।
कहा गया कि जनता ने सपा को भाजपा का विकल्प मान लिया है। जबकि यह तब सच होता जब सपा को बहुमत मिलता। इस चुनाव में उसे एक मात्र विपक्षी अवश्य माना गया। फिलहाल वह कांग्रेस और बसपा की विकल्प अवश्य बनी है। लेकिन इस आधार पर पांच वर्ष बाद का निष्कर्ष नहीं निकल सकता। पांच वर्ष बाद मतदाता सरकार व मुख्य विपक्षी पार्टी के कार्यों के आधार पर निर्णय करेंगे। कम मत के अंतर से जीत-हार की बातें भी दिल बहलाने के लिए होती हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा नब्बे सीटों पर मामूली अंतर से हारी थी। इस आधार पर वह यह नहीं कह सकती कि वहां के लोगों ने उसे तृणमूल कांग्रेस का विकल्प मान लिया है। सच्चाई यह थी कि तृणमूल कांग्रेस को बहुमत मिला। उसने सरकार बनाई। भाजपा को पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी के रूप में अवश्य माना गया। उत्तर प्रदेश में भाजपा पर छल प्रपंच से चुनाव जीतने का आरोप लगाना निराधार है। कांग्रेस और बसपा लड़ ही नहीं सकी। ऐसे में सपा की सीटें और मत प्रतिशत बढ़ा। इसके पहले बसपा और सपा को पूरे बहुमत से सरकार चलाने का अवसर मिला था। योगी सरकार के कार्यकाल में दो वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना का प्रकोप रहा। इससे अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। अनेक विकास कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा। इसके बाद भी भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। परिस्थितियों को देखते हुए यह सफलता भी कम नहीं है।
लेकिन ईवीएम को लेकर फिर वही अंदाज सामने है। मतलब भाजपा ईवीएम से विजयी होती है। गैर भाजपा पार्टियां अपनी लोकप्रियता और नैतिक राजनीति से परचम फहराती है। ममता बनर्जी, कुमार स्वामी कमलनाथ, अशोक गहलोत, हेमंत सोरोन आदि लोकप्रयिता से मुख्यमंत्री बने। योगी आदित्यनाथ की वापसी पर ईवीएम को कोसा जा रहा है। आमजन इस दोहरे मापदंड को देख और समझ रहा है। सच्चाई को सहज रूप में स्वीकार करना चाहिए। तीन सौ यूनिट बिजली का वादा बहुत लोक लुभावन था। लेकिन बिजली की आपूर्ति का मुद्दा भी चर्चा में रहा। यह किसी पार्टी के कहने की बात नहीं थी। इसका लोगों को प्रत्यक्ष अनुभव रहा है। करोड़ों गरीबों को अनेक योजनाओं का सीधा लाभ मिला। करीब 45 लाख गरीबों को आवास मिला। पांच साल पहले तक यूपी में किसान सरकारों की प्राथमिकता से बाहर था,लेकिन आज वह राजनीति के एजेंडे में शामिल है। किसानों के उत्थान के लिए,उनकी आय में दोगुना वृद्धि के लिए लगातार कदम उठाए गए हैं। सरकार ने दो करोड़ इकसठ लाख शौचालय बनाकर तैयार किए। इसका लाभ 10 करोड़ लोगों को मिला है। जिला मुख्यालयों में 10 घंटे बिजली और तहसील मुख्यालय पर 22 घंटे बिजली की सुविधा दी जा रही है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 18 घंटे बिजली पहुंचाने का काम सरकार कर रही है।
किसान व गरीब कल्याण, लाखों करोड़ के निवेश,अवस्थापना सुविधाओं का विस्तार, पांच एक्सप्रेस-वे पर कार्य,स्वास्थ्य आदि तमाम और क्षेत्रों में भी पिछली सरकारों के रिकार्ड को बहुत पीछे छोड़ दिया गया है। राज्य सरकार की कार्यपद्धति में बदलाव से आय भी बढ़ी है। शीघ्र ही स्टेट जीएसटी से होने वाली आय एक लाख करोड़ रुपये की सीमा को पार कर लेगी। राज्य सरकार ने अब तक गन्ना किसानों को करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये के गन्ना मूल्य का भुगतान कराया है। कोरोना काल में भी सभी 119 चीनी मिलें संचालित की गईं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अन्तर्गत प्रदेश के दो करोड़ बयालीस लाख किसानों को लाभान्वित किया गया है। इसके लिए राज्य को भारत सरकार से प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। व्यापार का वातावरण बना है और प्रदेश देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में दूसरे स्थान पर आ गया है। आज प्रदेश में तेजी के साथ निजी निवेश हो रहा है। निजी क्षेत्र में अब तक तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है। इसके माध्यम से 45 लाख युवाओं को रोजगार और नौकरी के साथ जोड़ा गया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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