नई दिल्ली: दिल्ली शराब घोटाला मामले में बड़ा खुलासा हुआ है. शराब नीति से जुड़े 4 हजार से अधिक ईमेल दिल्ली सरकार को आए हैं, जिसे जनता ने भेजा था. हालांकि जनता के सुझाव को नीति में लागू नहीं किया गया था. ईडी के जांच से पता चला है कि आबकारी नीति पर आप द्वारा जनता की राय मांगी गई थी. ईडी ने पिछले महीने अपनी जांच और चार्जशीट में खुलासा किया है कि किराए पर ली गई पीआर कंपनियों ने दिल्ली सरकार को एक्साइज पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए लगभग 4,000 ईमेल भेजे थे.
सीबीआई भी इसी तर्ज पर मामले की जांच कर रही है और दोनों एजेंसियों की जांच में समानता हो सकती है. ईडी ने खुलासा किया कि दानिक्स अधिकारी सी अरविंद ने जांच एजेंसी को बताया था कि मनीष सिसोदिया ने उन्हें “विशेष तरीके” से उत्पाद शुल्क नीति का मसौदा तैयार करने के लिए कहा था. जांच के मुताबिक होलसेल फायदा 12 फीसदी तय किया गया. लेकिन इस पर कोई बैठक नहीं हुई. अचानक से साल 2021 के मार्च के मध्य में मनीष सिसोदिया को सी अरविंद ने अरविंद केजरीवाल के आवास पर बुलाया. जहां सत्येंद्र जैन भी मौजूद थे.
मनीष सिसोदिया ने सी अरविंद को एक डॉक्यूमेंट सौंपा, जिसमें होलसेल मार्जिन का जिक्र किया गया था. साथ ही सी अरविंद से यह भी कहा गया कि डॉक्यूमेंट के आधार पर ही नीति तैयार करने को कहा गया. ठीक इसी तरह पॉलिसी बनाने के लिए 4 हजार ईमेल भेजे गए थे. चार्जशीट के मुताबिक “जांच में यह खुलासा हुआ है कि बिनॉय बाबू ISWAI द्वारा किराए पर ली गई मीडिया एजेंसियों के माध्यम से अधिकारियों को 4,000 ईमेल भेजने की साजिश का हिस्सा थे. इनमें से अधिकांश ईमेल ईमेल आईडी बनाकर भेजे गए थे. ताकि कुछ को आम जनता द्वारा सरकारी अधिकारियों को भेजे जाने के रूप में पेश किया जा सके.”
ईडी ने कहा कि ऐसा इसलिए था क्योंकि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पुरानी नीति व्यवस्था के मौजूदा खुदरा विक्रेता के पक्ष में नहीं थी. किराए पर ली गई दो एजेंसियों ने 3,000 ईमेल आईडी बनाई और 1,000 अन्य ईमेल आईडी को कई सोर्स से भेजा. उन्होंने मसौदा प्रारूप तैयार किए और विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के पक्ष में दिल्ली सरकार को 4,000 ईमेल भेजे. विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के पक्ष में दिल्ली सरकार को 4,000 ईमेल भेजे. सरकार की बैठक में तीन मंत्री थे, जिनमें मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और कैलाश गहलोत थे. इनमें से दो पहले हिरासत में हैं. ईडी की चार्जशीट में निम्नलिखित उदाहरण दिए गए हैं, जहां जनता की राय को स्वीकार नहीं किया गया था.
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