नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) देश की सबसे शक्तिशाली(powerful जांच एजेंसी बन गई है, जिस पर आपराधिक न्याय प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधान लागू नहीं होते। वह किसी को भी, कभी भी, कहीं भी, गिरफ्तार (Arrested) कर सकती है। उसकी संपत्ति जब्त कर सकती है, छापेमारी कर सकती है।
ईडी के केसों में यह जिम्मेदारी भी अभियुक्त की है कि वह बताए कि उसके पास कथित धन कहां से आया। जबकि सामान्य अपराधों में अपराध को सिद्ध करने का भार पुलिस पर होता है कि वह अपराध (Crime) को सबूतों के साथ कोर्ट में साबित करे।
ईडी अधिकारियों को पूछताछ में दिया गया बयान धारा 50 के तहत कोर्ट में स्वीकार्य है। क्योंकि ईडी को पुलिस नहीं माना गया है। जबकि सामान्य अपराधों में पुलिस को दिया गया बयान साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 (पुलिस के समक्ष इबालिया बयान को सिद्ध नहीं करना) के तहत कोर्ट में स्वीकार्य नहीं माना जाता है।
क्यों मिले यह अधिकार?
आपराधिक कानून के जानकारों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आर्थिक अपराधों, ड्रग्स तस्करी से अर्जित धन, अंतरराष्ट्रीय और समुद्रपारीय इलेक्ट्रॉनिक लेनेदेन हवाला, आतंकवाद और रंगदारी जैसे उच्च तकनीकी अपराधों के आलोक में है। ये अपराध कंप्यूटर के एक माउस क्लिक पर हो जाते हैं जिन्हें पकड़ना काफी दुरूह कार्य है। इनके सबूत माइक्रो सेकंड में मिटाए जा सकते हैं या गायब किए जा सकते हैं। ऐसे में भारी मात्रा में पैसे की जब्ती होने पर उसे यदि उसे सिद्ध करने का काम ईडी पर आया तो यह ईडी कभी सिद्ध नहीं कर पाएगी।
वहीं, हवाला की रकम का कोई रिकार्ड नहीं होता न ही उसका कोई दस्तावेज होता है। खुद को अपराधी बताने या अपने खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं करने की अनुच्छेद 20.3 के तहत संविधान में मिली सुरक्षा को भी इस कानून में रियायत दी गई है। ईडी अधिकारियों को पुलिस अधिकारी भी नहीं माना गया है।
फैसलों के आधार पर दी थी चुनौती
याचिकाकर्ताओं ने संविधान (Constitution) के इन सुरक्षा गारंटियों और गिरफ्तारी, अपराध सिद्ध करने का भार, एफआईआर की सूचना देने का अधिकार के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आधार पर ही इसके प्रावधानों को चुनौती दी थी। पीएमएलए एक विशेष कानून है। कोर्ट ने पीएमएलए के उद्देश्य को इस कानून की सख्ती के अनुरूप पाया और कहा है कि है उसकी तुलना सीआरपीसी, 1973 के साथ नहीं की जा सकती। सीआरपीसी तभी सामने आएगी जब गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के अंदर अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।
आगे क्या?
-तीन जजों की पीठ ने पीएमएलए कानून 2002 में किए गए संशोधनों को 2018 में वित्त विधेयक की तरह से पास करने का मामला सात जजों की बेंच को भेज दिया।
-अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि अपीलीय न्यायाधिकर में रिक्तियां भरी जाएं ताकि बिना किसी रुकावट के पीड़ित व्यक्तियों को सुलभ न्याय सुनिश्चित हो सके।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved