नई दिल्ली। कोरोना महामारी से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के बाद 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है। यह आगामी तिमाहियों में भारत की विकास दर में और सुधार की उम्मीद है। हालांकि, अर्थव्यवस्था के समक्ष भू-राजनीतिक तनाव, डॉलर में मजबूती और उच्च महंगाई जैसे जोखिम भी हैं। फिर भी आर्थिक वृद्धि के सकारात्मक रुझान और बुनियादी गतिविधियों में सुधार आने से देश को वैश्विक स्तर की उन प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में मदद मिलेगी, जिनका आने वाले महीनों में भारत के निर्यात पर बुरा असर पड़ सकता है।
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा, अगर बजट में कुछ ऐसा नहीं होगा, जिसका नकारात्मक असर पड़े तो वर्ष 2023 में सात फीसदी की वृद्धि दर कायम रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उच्च महंगाई के साथ डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट नीति निर्माताओं के लिए परेशानी का सबब रहा। इससे आयात महंगा हुआ और देश के चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़ गया। आने वाले महीनों में भी रुपये पर दबाव बना रहेगा।
भारत के सामने ऊंची ब्याज दरें और महंगाई जैसे जोखिम
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स में सॉवेरन एंड इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग्स के निदेशक एंड्रयू वुड ने कहा, बाजार मूल्य पर जीडीपी में तेज वृद्धि और राजस्व में बढ़ोतरी का भारत को लाभ मिल रहा है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर नरमी, ऊंची ब्याज दरें और महंगाई जैसे जोखिम भी भारत के सामने हैं।
सितंबर तिमाही में भारत की विकास दर सबसे ज्यादा 9.7 फीसदी रही। वहीं, यूरो मुद्रा के चलन वाले क्षेत्रों की विकास दर 3.2 फीसदी रही।
प्रमुख देशों की विकास दर…
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