– प्रहलाद सबनानी
यह सनातनी संस्कार ही हैं जो भारत के नागरिकों को छोटी छोटी बचतें करना सिखाते हैं। भारतीय परम्पराओं के अनुसार हमारे बुजुर्ग हममें बचत की प्रवृत्ति बचपन में ही यह कहकर विकसित करते हैं कि भविष्य में आड़े अथवा बुरे वक्त में पुराने समय में की गई बचत का बहुत बड़ा सहारा मिलता है। भारतीय परिवारों में तो गृहणियां घर खर्च के लिए उन्हें प्रदान की गई राशि में से भी बहुत छोटी राशि की बचत करने का गणित जानती हैं एवं वक्त आने पर अपने परिवार के सदस्यों को उक्त बचत की राशि सौंपकर संतोष का भाव जागृत करती हैं।
आजकल के आर्थिक दौर में केवल धन का अर्जन करना ही काफी नहीं है बल्कि अर्जित धन का कुछ भाग बचत के रूप में सही स्थान पर सुरक्षित निवेश करना भी जरूरी है। यदि कमाए गए धन को बचत के रूप में निवेश नहीं किया जाता है तो उस राशि का बाजार में मूल्य, मुद्रास्फीति के चलते कम होते होते भविष्य में शून्य हो जाता है। अतः बचत के रूप में निवेश की गई राशि पर इतनी आय तो अवश्य होनी चाहिए कि वह मुद्रास्फीति की दर से अधिक हो ताकि बचत की राशि का बाजार मूल्य कम से कम उतना तो बनाए रखा जा सके। अर्थात, पैसे से पैसा कमाना आना चाहिए।
भारत सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक इस दृष्टि से लगातार प्रयास करते रहते हैं कि देश के नागरिक अपनी बचतें बढ़ाएं ताकि उनका एवं उनके बच्चों सहित परिवार के अन्य सदस्यों का आर्थिक भविष्य, बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि को सुरक्षित बनाया जा सके। मुख्य रूप से इसी कारण के चलते समय समय पर केंद्र सरकार द्वारा अपनी विभिन्न बचत योजनाओं पर ब्याज की दरों को मुद्रास्फीति की दर का ध्यान रखते हुए बढ़ाया अथवा घटाया जाता है। हाल ही के समय में केंद्र सरकार ने अपनी विभिन्न बचत योजनाओं पर ब्याज दी दरें बढ़ा दी हैं। केंद्र सरकार के डाक विभाग द्वारा संचालित विभिन्न छोटी बचत योजनाएं, जिन पर ब्याज दरें बढ़ाईं गई हैं, उनके नाम हैं – डाकघर बचत खाता, 5 वर्षीय डाकघर आवर्ती जमा, डाकघर मासिक आय योजना, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, किसान विकास पत्र, सुकन्या समृद्धि योजना, 15 वर्षीय पीपीएफ खाता, महिला सम्मान बचत प्रमाण पत्र, पीएमकेयर फार चिल्ड्रन योजना।
भारत में तो बचत वैसे भी पसीने की कमाई मानी जाती है। अतः इसे सोच समझकर ही निवेश करना चाहिए। एक तो यह सुरक्षित निवेश होना चाहिए, दूसरे इस निवेश पर लगातार आय होती रहे। हां, निवेश पर अधिक आय के मामले में लोभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा निवेश की गई राशि ही डूब जाती है। लोभ एवं लाभ में बहुत बारीक अंतर होता है। तीसरे, निवेशित की गई राशि को आवश्यकता पड़ने पर सरल तरीके से वापस प्राप्त किया जा सके अर्थात तरलता की स्थिति बनी रहनी चाहिए। केंद्र सरकार की उक्त छोटी बचत योजनाओं में निवेश एकदम सुरक्षित रहता है, इस निवेश पर आय लगातार अर्जित होती रहती है एवं तरलता की स्थिति भी बनी रहती है। हां, कुछ योजनाओं में लॉक इन पीरियड अवश्य रहता है एवं केवल इस अवधि के समाप्त होने के पश्चात ही बचत की राशि का आहरण किया जा सकता है।
वर्तमान समय में भारत के नागरिकों में वित्तीय साक्षरता बढ़ी है, जिसके चलते वे अपनी बचतों पर अधिक आय अर्जित करने की दृष्टि से बैंकों में सावधि जमा योजनाओं में अपनी बचत का निवेश करने के साथ साथ म्यूचूअल फण्ड एवं पूंजी बाजार (शेयर मार्केट) में भी अपनी बचत का निवेश करने लगे हैं। इन क्षेत्रों में बचत की राशि निवेश करने पर कुछ जोखिम तो अवश्य रहता है परंतु तुलनात्मक रूप से आय अच्छी हो जाती है। इस सम्बंध में नागरिकों में जागरूकता बढ़ रही है। वे अपनी बचतों को विभिन्न योजनाओं में निवेश करने लगे हैं। बचत भी अलग अलग योजनाओं में की जानी चाहिए ताकि यदि कोई योजना किसी कारण से असफल साबित हो तो आपका पैसा अन्य ओजनाओं में सुरक्षित रहे। म्यूचूअल फण्ड भी विभिन्न प्रकार के एवं अलग अलग वित्तीय संस्थानों द्वारा जारी होने चाहिए, ताकि यदि किसी एक वित्तीय संस्थान में आर्थिक समस्या खड़ी हो तो नागरिकों का पूरा पैसा इस एक ही संस्थान में नहीं डूबे।
किसी भी देश की आर्थिक वृद्धि के लिए देश के नागरिकों में बचत की आदत विकसित होना बहुत आवश्यक है। एक आर्थिक सिद्धांत के अनुसार देश के सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिशत वृद्धि के चार गुना तक बचत दर होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि भारत में 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल करना है तो बचत की दर 32 प्रतिशत होना चाहिए। इस सिद्धांत को क्रमिक पूंजी उत्पादन अनुपात कहा जाता है। इस दृष्टि से भी केंद्र सरकार विभिन्न बचत जमा योजनाओं पर आकर्षक ब्याज दर प्रदान करने का प्रयास करती है। छोटी छोटी बचतें देश के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में सहायक होती हैं। देश में यदि निवेश को बढ़ाना है तो बचत को तो बढ़ाना ही होगा। इसीलिए केंद्र सरकार बैंकों के अतिरिक्त विभिन्न अन्य निवेश संस्थानों पर भी नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करती है ताकि आम जनता के बचत के रूप में किए गए निवेश सुरक्षित रह सकें। भारत में अन्य देशों की तुलना में बचत की दर बहुत आकर्षक रही है। जब भारत में आर्थिक वृद्धि दर 9 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, उस समय पर बचत की दर लगभग 37 प्रतिशत थी। साथ ही, बचत की दर अधिक होने से बाजार में तरलता कम होती है और तरलता के कम होने से मुद्रा स्फीति की दर भी नियंत्रण में बनी रहती है। दूसरे जमाराशि के बचत के रूप में बैंकों अथवा अन्य आर्थिक संस्थानों में आ जाने से उस राशि का उत्पादन कार्यों में उपयोग सम्भव होता है, इससे देश के आर्थिक विकास को बल मिलता है।
अपनी कुल आय का लगभग 25 से 30 प्रतिशत भाग बचत के रूप में निवेश किये जाने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने में सहायक सिद्ध होगा। युवा नागरिकों द्वारा बचत के रूप में लम्बे समय के लिए निवेश किये जाने चाहिए, इससे इस प्रकार के निवेश पर चक्रवृद्धि दर से आय अर्जित की जा सकती है। जबकि वृद्ध नागरिकों को लम्बे समय के निवेश के स्थान पर सुरक्षित निवेश करना चाहिए एवं इस निवेश में तरलता भी बनी रहनी चाहिए। अधिक जोखिम लेने से आय तो अधिक होती है, परंतु मूल राशि डूबने का डर भी बना रहता है अतः निवेश करते समय सुरक्षा का ध्यान रखना भी आवश्यक है।
अन्य देशों के नागरिकों में, विशेष रूप से विकसित देशों में, बचत की आदत नहीं होती है। पश्चिमी दर्शन पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता है। इसके विपरीत भारतीय नागरिक छोटी से छोटी बचतों पर भी बहुत भरोसा करते हैं। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने भारत में गरीब वर्ग के नागरिकों को बैकों से जोड़ने के लिए जनधन योजना प्रारम्भ की थी। इस योजना के अंतर्गत अभी तक लगभग 50 करोड़ बचत खाते विभिन्न बैकों में खोले जा चुके हैं एवं छोटी छोटी बचतों को जोड़कर लगभग 2 लाख करोड़ रुपय् से अधिक की राशि इन खातों में जमा की जा चुकी है। भारत ने इस संदर्भ में पूरे विश्व को ही राह दिखाई है। यह बचत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों को कल का मध्यम वर्ग बनाएगी, इससे देश में विभिन्न उत्पादों का उपभोग बढ़ेगा तथा देश की आर्थिक उन्नति की गति भी तेज होगी। यह भारतीय सनातन संस्कारों के चलते ही सम्भव हो पाया है। भारत में परिवार अपने खर्चों को संतुलित करते हुए भविष्य के लिए बचत आवश्यक समझते हैं।
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