नई दिल्ली। आसमान छूती महंगाई पर काबू पाने के लिए दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत दरें बढ़ाने के रूप में आक्रामक रुख अख्तियार किया है। हालांकि, सख्ती से वैश्विक अर्थव्यवस्था के मंदी के दलदल में फंसने का खतरा बढ़ गया है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक के चेयरमैन जेरोम पॉवेल का कहना है कि यह कोई नहीं जानता कि ब्याज दरों के बढ़ने से मंदी आएगी। यदि ऐसा होता है तो यह कितनी महत्वपूर्ण होगी, इसका भी पता नहीं है। पावेल ने कहा कि उधारी की आसान नीति की संभावना कम है क्योंकि फेड लगातार चार दशकों में महंगाई का सबसे ज्यादा सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमें महंगाई को पीछे छोड़ना होगा।
उधर, विश्लेषकों ने कहा कि शायद अमेरिका की यह अंतिम वृद्धि दर होगी क्योंकि यदि आप पिछली नीति को भी देखें तो पहली तिमाही के लिए अनुमान 6 फीसदी से कम है और उसके बाद चीजों में सुधार हुआ है, खासकर महंगाई के मोर्चे पर। बुधवार को अमेरिकी फेडरल ने ब्याज दर में 0.75 फीसदी का इजाफा किया। इसके बाद बृहस्पतिवार को कई देशों ने ब्याज दरें बढ़ा दीं। सभी देश एक तरफ से महंगाई को काबू पाने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाने की योजना जारी रखे हैं।
आरबीआई भी कर सकता है 0.50% तक इजाफा
आरबीआई भी महंगाई को रोकने के लिए मई से लेकर अब तक तीन बार में 1.40% दरें बढ़ा चुका है। इसकी मौद्रिक नीति समिति की बैठक 28 से 30 सितंबर के बीच होगी। ऐसा अनुमान है कि रेपो दर में 0.35 से 0.50% तक की बढ़ोतरी कर सकता है। इसके साथ ही तमाम तरह के कर्ज महंगे हो जाएंगे। ऐसा होता है तो त्योहारी मौसम में खरीदारी पर असर होगा। इसका महंगाई का लक्ष्य 6% से नीचे है, लेकिन यह लगातार इस लक्ष्य से ऊपर ही बनी है।
मुद्राओं में भारी गिरावट
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