भोपाल। मप्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण प्रदेश के पर्यटन स्थल वीरान पड़े हैं। ऐसा ही एक पर्यटन स्थल है झाबुआ का हाथीपावा। दो साल पहले ईको टूरिज्म के लिए झाबुआ वन विभाग ने हाथीपावा को चुना था। इसका खाका तैयार कर सरकार को भेजा गया था लेकिन मामला मंत्रालय में अटका हुआ है। आदिवासी कला व संस्कृति विश्व स्तर पर हर किसी को आकर्षित करती है। राजस्थान के जैसलमेर जैसे रेगिस्तान वाले क्षेत्र पर्यटन के माध्यम से पैसों की खेती कर रहे हैं, लेकिन मप्र की खूबसूरत वादियों में पर्यटन से होने वाली आय के नाम पर सूखे के सिवाय कुछ नहीं है। यहां की विशेषताएं पर्यटन के लिए भरपूर संभावनाएं उत्पन्न करती हैं, लेकिन पर्यटकों के लिए कोई सुविधा नहीं होने से पर्यटन को यहां बढ़ावा ही नहीं मिल रहा है।
हाथीपावा आकर्षण का केंद्र
हाथीपावा की खूबसूरत वादियां पर्यटकों को हमेशा पुकारती हैं। न तो इस क्षेत्र का कोई प्रचार हो रहा है और न ही पर्यटन को ध्यान में रखते हुए यहां कोई काम आगे बढ़ा है। जैसलमेर की तरह यहां अस्थायी टेंट लगाते हुए पर्यटकों को रखा जाए और आदिवासी खानपान, लोकनृत्य, कला आदि का समागम हो तो पर्यटक तुरंत खिंचे चले आएंगे। धरमपुरी डैम से जुड़ा क्षेत्र चारों तरफ सुंदरता बिखेर रहा है। यहां पर्यटन के दृष्टिकोण से विकास करने की आवश्यकता है। देवल फलिये का प्राचीन शिव मंदिर व वन जैसे क्षेत्र भरपूर संभावनाओं से भरे हुए हैं। गौरवशाली इतिहास के साथ यहां का आकर्षण भी हरदम पर्यटकों को पुकारता है। झाबुआ से सटा देवझिरी तीर्थ को नर्मदा मैया का प्रकटीकरण स्थल माना जाता है। शहरी जनता के लिए आस्था का केंद्र है तो ग्रामीण जनता के लिए वही हरिद्वार, काशी व प्रयाग है। ग्रामीण अपने दिवंगत स्वजनों की अस्थियों तक का विसर्जन इसी स्थान पर करते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इसके धार्मिक महत्व को देखते हुए विकास करने को कहा था। वजह यह थी कि वे व उनकी पत्नी इस स्थान को निहारने के बाद अभिभूत हो गए थे। मुख्यमंत्री के निर्देश का भी कोई पालन सार्थक रूप में दिखा नहीं है।
भोपाल में फाइल अटकी
हाथीपावा को ईको टूरिज्म का दर्जा मिला था। वहां के विकास को लेकर योजना बनाते हुए भोपाल भेजी गई थी। अभी तक फाइल भोपाल में ही अटकी है। वन विभाग के एसडीओ प्रदीप कछावा ने बताया कि भोपाल से अभी तक किसी तरह की कोई स्वीकृति नहीं मिली है।
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