नई दिल्ली। गुजरात (Gujarat ) और हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के दिसंबर में आसन्न विधानसभा चुनावों (assembly elections) से पहले निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने राजनीतिक दलों (Political parties) को मुफ्त के वादे करने से रोकने के लिए तंत्र बनाने की पहल शुरू की है, जिसे वह चुनावों की घोषणा से पहले ही अमली जामा पहना देगा। सूत्रों के अनुसार, संभावना है कि आयोग इन दोनों राज्यों तथा संभवत: जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) में चुनावों की घोषणा अक्तूबर के अंतिम दिनों में कर देगा और घोषणापत्र के विनियमन को इन चुनावों से ही लागू कर दिया जाएगा।
चुनाव घोषणाओं को विनयमित करने के लिए की गई कवायद में आयोग ने विस्तार से सुप्रीम कोर्ट के 24 अप्रैल 2015 के फैसले (एस सुब्रहमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य तथा अन्य) का हवाला दिया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को अधिकृत किया था कि वह घोषणापत्र में मुफ्त के वादों को विनियमित करने के लिए उसे आदर्श चुनाव आचार संहिता (एमसीसी) में शामिल करे। आयोग ने कहा कि चुनावों की बारंबारता भी काफी हो गई है, जिस कारण दलों द्वारा दी गई अपर्याप्त जानकारी से उसके प्रभाव और भी कम हो रहे हैं।
वहीं, बहुचरणीय चुनावों से राजनीतिक दलों को प्रतिस्पर्धात्मक चुनावी वादे करने का मौका मिल रहा है, जिसमें वे यह भी नहीं बताते कि प्रतिबद्ध खर्च पर ऐसे वादों का क्या प्रभाव पड़ रहा है। कई मामलों में राजनीतिक दल ये अपर्याप्त जानकारी भी आयोग को नहीं देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 अगस्त को मुफ्त वादों के विनियमन करने के इस मामले को तीन जजों की पीठ को रेफर कर दिया था। हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि इसमें कुछ निर्णित करने को नहीं है, क्योंकि सुब्रहमण्यम बालाजी केस (2015) में सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त के बारे में फैसला देकर आयोग को इसे एमसीसी में शामिल करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत आयोग को चुनाव संचालन के नियम बनाने शक्ति है।
निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को एक बयान जारी किया। इसमें कहा कि वह चुनावी वादों पर पूर्ण जानकारी ना देने और उसके वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले अवांछनीय प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि मौजूदा एमसीसी में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से पूछा जाता है कि वे अपने वादों के कारण स्पष्ट करें। उनके वित्तीय स्रोत और कमाई बताएं, जिससे वे उन्हें पूरे कर पाएंगे, लेकिन देखा गया है कि यह घोषणा सामान्य और अस्पष्ट सी बन गई हैं, जिससे वोटरों को सही जानकारी के साथ दल या उम्मीदवार को चयन करने का मौका नहीं मिलता।
आयोग ने इस बारे में विमर्श किया। यह सही है कि चुनावी घोषणा पत्र बनाना राजनीतिक दलों का अधिकार है, लेकिन उसमें सही और प्रमाणिक जानकारी एक मानक रूप में मौजूद हो, जिसमें धन और उसके स्रोत की तार्किकता, खर्च की तार्किकता (क्या कुछ योजनाओं में कटौती होगी), प्रतिबद्ध दायित्वों पर उसका प्रभाव, क्या आगे और कर्ज लिया जाएगा। उसकी वित्तीय जिम्मेदारी व बजट प्रबंधन एक्ट (एफआरबीएम) की सीमा पर क्या असर होगा। आयोग ने नया प्रारूप तैयार किया है, जिसे एमसीसी का हिस्सा बनाया जाएगा और इसी प्रारूप पर राजनीतिक दलों को वादों के बारे में जानकारी देनी होगी।
आयोग ने क्या कहा?
– खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होते हैं।
– इससे चुनावी मैदान में असंतुलन पैदा होता है।
– मतदाताओं को सही चयन करने के लिए उचित जानकारी नहीं मिल पाती है।
प्रस्तावित प्रारूप में देनी होंगी ये जानकारियां
वादे किसके लिए होंगे (व्यक्ति, परिवार, समुदाय, बीपीएल या पूरी जनसंखया आदि)
भौतिक कवरेज कितना होगा, संख्या
वादों का वित्तीय प्रभाव
वित्तीय साधनों की उपलब्धता
वादों पर आने वाले अतिरक्त खर्चों को उठाने के लिए वित्तीय साधन तथा उनकी कमाई के तरीके
टैक्स और गैरटैक्स राजस्व में बढ़ोतरी
व्यय की तार्किकता
अतिरिक्त कर्ज
अन्य कोई निश्चित स्रोत
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved