नई दिल्ली । पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ अगले हफ्ते आठवें दौर की कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता में पिघलने की संभावना है। पिछली सैन्य वार्ता में दोनों देशों ने एक दूसरे को टॉप सीक्रेट ‘रोडमैप’ दिए हैं, जिस पर दोनों देशों का शीर्ष नेतृत्व मंथन कर रहा है। आठवें दौर की होने वाली सैन्य वार्ता में इसी पर फोकस किये जाने की संभावना है। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने भी पिछले दिनों स्वीकार किया है कि भारत और चीन सीमा गतिरोध को हल करने के लिए वार्ता कर रहे हैं और यह दोनों देशों के बीच की ‘गोपनीय’ बात है।
दोनों देशों के बीच 21 सितम्बर को छठे दौर की वार्ता में भारत ने चीन पर दबाव बनाने के लिए 12 अधिकारियों की टीम भेजी थी। यह पहला मौका था, जब इस वार्ता में सेना के साथ-साथ विदेश मंत्रालय को भी शामिल करके राजनयिक तौर से चीन पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच मास्को में हुई बैठक के बाद यह पहला मौका था, जब दोनों देशों के कोर कमांडर आमने-सामने बैठे थे। वार्ता की शुरुआत में ही भारत की ओर से स्थिति साफ कर दी गई कि वो एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे और अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। भारत की तरफ से साफ़ कहा गया कि चीन को सीमा पर उन सभी जगह से पीछे जाना होगा, जहां-जहां वह आगे आया है।
इस बैठक में भी चीन ने टकराव खत्म करने के लिए एक प्रस्ताव दिया था, जिसे भारत ने एक सिरे से खारिज कर दिया था। इस प्रस्ताव में चीन की तरफ से भी पैन्गोंग झील के दक्षिण किनारे की अहम चोटियों पर भारतीय सैनिकों की तैनाती का मसला उठाया गया। इस पर भारत के अधिकारियों ने चीन की बात यह कहकर सिरे से ख़ारिज कर दी कि ये पहाड़ियां भारतीय क्षेत्र में ही हैं, भारत ने एलएसी पार करके किसी पहाड़ी को अपने नियंत्रण में नहीं लिया है। भारत ने साफ कर दिया कि डिसइंगेजमेंट होगा तो पूरी एलएसी पर होगा। ऐसी स्थिति में चीनी सेना को पैन्गोंग झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर 4-8 के पीछे जाना पड़ता लेकिन चीनी सेना इसके लिए तैयार नहीं हुई थी। बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच मॉस्को वार्ता में तय हुए पांच बिन्दुओं के आधार पर एक दूसरे से ‘रोडमैप’ मांगा गया।
12 अक्टूबर को हुई सातवें दौर की सैन्य वार्ता ‘फिर मिलेंगे’ के वादे के साथ खत्म हुई। इसी बैठक में चीन और भारत ने एक दूसरे को टॉप सीक्रेट ‘रोडमैप’ सौंपा। बैठक के बाद जारी हुए दोनों देशों की सेनाओं के साझा बयान में कहा गया कि चर्चा के दौरान दोनों देशों में एक दूसरे की स्थिति को लेकर आपसी समझ बढ़ी है। वार्ता में भारत और चीन के बीच इस बात पर सहमति बनी कि जल्द से जल्द सैनिकों के पीछे हटने के लिए दोनों पक्षों को स्वीकार्य समाधान निकालने के लिए संवाद बनाए रखा जाएगा। बयान में यह भी कहा गया कि दोनों पक्षों ने सैन्य और राजनयिक चैनलों के माध्यम से संवाद और संचार बनाए रखने के लिए सहमति व्यक्त की। साथ ही दोनों पक्ष मतभेद बढ़ाने की बजाय बनी सहमतियों को ईमानदारी से लागू करने और संयुक्त रूप से सीमा क्षेत्रों में शांति की रक्षा करने के लिए सहमत हुए हैं।
इस वार्ता का नेतृत्व करने वाले सेना की 14वीं कॉर्प के लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने यह टॉप सीक्रेट ‘रोडमैप’ सेना के उच्चस्तरीय अधिकारियों को सौंप दिया है जिस पर शीर्ष सैन्य, राजनीतिक, कूटनीतिक और चाइना स्टडी ग्रुप मंथन कर रहा है। इसी तरह भारत के प्रपोजल पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) भी अपने देश के राजनैतिक नेतृत्व से इस पर सलाह-मशविरा कर रही है। दोनों देशों के बीच आठवें दौर की कमांडर-स्तरीय वार्ता 26-29 अक्टूबर तक होने की संभावना है लेकिन चीन की तरफ से अभी तक तारीखों की पुष्टि नहीं की गई है। इससे पहले भी कई बार चीन ने निर्धारित बैठक से 12-14 घंटे पहले तारीखों की पुष्टि की है। हालांकि भारतीय पक्ष ने उन्हें बताया है कि कम से कम 36 से 48 घंटे पहले वार्ता की तारीखों की पुष्टि करनी होगी। कुल मिलाकर टॉप सीक्रेट ‘रोडमैप’ पर अगली मीटिंग में ही दोनों देश अपना-अपना कार्ड खोलेंगे।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 अक्टूबर को एक ऑनलाइन सम्मेलन के दौरान कहा कि भारत और चीन सीमा गतिरोध को हल करने के लिए वार्ता कर रहे हैं और यह दोनों देशों के बीच की गोपनीय बात है। चीन के साथ चल रही वार्ता के नतीजे के बारे में विशेष तौर पर पूछे जाने पर विदेश मंत्री ने कहा, ‘चर्चा चल रही है और यह कार्य प्रगति पर है।’ जब ब्लूमबर्ग इंडिया इकोनॉमिक फोरम में उनसे सीमा की स्पष्ट स्थिति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘वार्ता चल रही है और यह दोनों देशों के बीच की गोपनीय बात है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं सार्वजनिक रूप से बहुत ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं। मैं निश्चित रूप से इसके लिए पहले से कोई अनुमान नहीं लगाना चाहता हूं।’
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