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सबसे छोटे दिन का पृथ्वी ने बनाया नया रिकार्ड, 24 घंटे में इतना कम था 29 जुलाई का दिन

July 31, 2022

नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि बीते 29 जुलाई को पृथ्वी ने सबसे छोटा दिन का नया रिकॉर्ड (new record) बनाया है। यह दिन 24 घंटे से 1.59 मिली सेकंड कम था। जब से वैज्ञानिकों(scientists) ने पृथ्वी के घूमने की गति मापने के लिए परमाणु घड़ियों का उपयोग करना शुरू किया है, तब से अब तक का यह सबसे छोटा दिन है। परमाणु घड़ी से पृथ्वी के घूमने की गणना 1973 में शुरू हुई।

वैज्ञानिक (Scientist) बताते हैं कि दिन की लंबाई वह समय है, जो पृथ्वी को अपनी धुरी पर एक बार घूमने में लगता है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर 86,400 सेकंड यानी 24 घंटे लगते हैं।

क्या तेज हो गई है पृथ्वी के घूमने की गति
जब दिन की लंबाई बढ़ रही होती है, तो पृथ्वी अधिक धीमी गति से घूम रही होती है। जब दिन छोटे हो रहे होते हैं, तो पृथ्वी अधिक तेजी से घूमती है। कुछ वर्ष पहले तक यह माना जाता था कि 1973 से शुरू हुई पृथ्वी के घूमने की गति की गणना के बाद से पृथ्वी धीरे से घूम रही है।



इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम सर्विस (आईईआरएस) के अनुसार अभी इसकी रफ्तार सामान्य से थोड़ी तेज दर्ज की गई है। परमाणु घड़ियों के उपयोग के बाद से पृथ्वी ने अपने 28 सबसे छोटे दिन रिकॉर्ड किए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा धीरे-धीरे पृथ्वी के घूमने की गति को बदल रहा है। इसका गुरुत्वाकर्षण खिंचाव सूर्य के चारों ओर स्थित पृथ्वी के घूमने की धुरी को थोड़ा अंडाकार बनाता जा रहा है।

2020 में 1.47 मिलीसेकंड कम था दिन
इससे पहले 19 जुलाई 2020 को सबसे छोटा दिन रिकॉर्ड किया गया था। यह दिन 24 घंटे से 1.47 मिलीसेकंड कम था। 2021 में पृथ्वी तेजी से घूमती रही, हालांकि 2021 में वर्ष का सबसे छोटा दिन 2020 की तुलना में आंशिक रूप से लंबा था। अब, 2022 में पृथ्वी फिर से तेजी से घूमने लगी हैं। 26 जुलाई को दिन की लंबाई -1.50 मिलीसेकंड कम दर्ज की गई।

आगे क्या?
क्या दिन की लंबाई घटती रहेगी, या हम पहले ही न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुके हैं? निश्चित रूप से कोई नहीं जानता। हालांकि, वैज्ञानिक डॉ. जोतोव का कहना है कि 70 प्रतिशत संभावना है कि हम न्यूनतम स्तर पर हैं। इससे और छोटे दिन होने की संभावना बेहद कम है।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक
पृथ्वी के घूमने की गति तेज होने के कारणों पर वैज्ञानिकों के मत अलग-अलग हैं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह ग्लेशियरों के पिघलने का परिणाम है। पृथ्वी का पिघला हुआ केंद्रीय भाग इसकी गति को बढ़ा रहा है। एक अन्य वैज्ञानिक का कहना है कि भूकंपीय गतिविधियां एक अन्य संबंधित कारण हो सकती है। कुछ अभी भी इसे चैंडलर वोबेल मानते हैं। मालूम हो कि 14 महीने की अवधि के साथ पृथ्वी के घूमने की धुरी के एक अंडाकार दोलन को चैंडलर वाबेल कहा जाता है। इसके कारणों का अब तक पता नहीं लगाया गया है।

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