नई दिल्ली। भारत(India) से तुर्की और मिस्र भेजी गई गेहूं की खेप के ठुकराए जाने का मामला लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. तुर्की ने भारत के गेहूं में रूबेला वायरस (rubella virus) होने की शिकायत की थी. इसके बाद गेहूं की इस खेप के इजरायल (Israel) के बंदरगाह पर भी फंसे होने की रिपोर्ट आई. इस गेहूं को तुर्की (Turkey) भेजने वाली कंपनी आईटीसी के एग्रोबिजनेस विभाग (Agrobusiness Department) के सीईओ बयान आया है, जिसमें उन्होंने गेहूं के खराब होने की खबरों से इनकार किया है.
कंपनी के एग्रोबिजनेस विभाग के सीईओ रजनीकांत राय ने कहा कि उन्होंने गेहूं की जो खेप तुर्की भेजी थी, वह क्वालिटी के मानकों पर खरी उतरती है. उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि 55,000 टन गेहूं की यह खेप डच की एक कंपनी ईटीजी कमोडिटीज को बेची गई थी. इस डच कंपनी ने गेहूं के क्वालिटी टेस्ट के लिए एक स्विस कंपनी एसजीएस को चुना था.
भारत के गेहूं में रूबेला वायरस एक अफवाह
राय ने कहा, आईटीसी ने क्वालिटी गेहूं की डिलीवरी की थी और इस खेप को मई के मध्य में रवाना किया गया था. हमें बाद में पता चला कि ईटीजी ने यह खेप तुर्की के एक खरीदार को बेच दी थी. मई के आखिर में हमें पता चला कि तुर्की ने इस खेप को ठुकरा दिया. आईटीसी और ईटीजी दोनों को इस डील के लिए भुगतान किया जा चुका है.
राय ने कहा, खेप कभी मिस्र भेजी ही नहीं गई. अब यह खेप इजरायल के बंदरगाह पर अनलोड होने का इंतजार कर रही है. राय के इस बयान से यह संकेत मिलता है कि इस खेप का नया खरीदार मिल गया है.
तुर्की को भेजा गेहूं उत्तम क्वालिटी का था
एक अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी ट्रेडिंग(international commodity trading) कंपनी के अधिकारी ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, इसके पीछे व्यावसायिक या भूराजनीतिक (जियो पॉलिटकल) कारण हो सकते हैं. गेहूं की गुणवत्ता का मुद्दा उठाने से लगता है कि वैश्विक अनाज सप्लायर के तौर पर भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश की जा रही है.
एक ट्रेड एनालिस्ट एस. चंद्रशेखरन ने एक इंटरव्यू में कहा कि यूरोप के कुछ मुट्ठीभर ट्रेडर्स मध्यपूर्व और अफ्रीका के बाजारों के गेहूं व्यापार को नियंत्रित करते हैं.
उन्होंने कहा कि भारत (India) के गेहूं में रूबेला वायरस होना एक मिथक है, जिसे तुर्की ने गढ़ा है.
राय के मुताबिक, आईटीसी ने 2021-2022 में लगभग 18 लाख टन गेहूं निर्यात किया था. कंपनी ने इस साल मई में 13 लाख टन गेहूं निर्यात किया था.
उन्होंने कहा, लेकिन किसी भी खेप में समस्या की शिकायत नहीं आई. तुर्की को जो गेहूं भेजा गया था, वह उत्तम क्वालिटी का था. यह मध्य प्रदेश का गेहूं था, जिसमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 14 फीसदी है.
भारत ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर बैन लगा दिया था, जिसके बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना का सामना करना पड़ा. भारत ने यह कदम घरेलू स्तर पर खाद्य कीमतों में इजाफा करने के उद्देश्य से किया था.
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक, मई में अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें सालाना आधार पर 56 फीसदी से अधिक थी.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से वैश्विक स्तर पर खाद्य कीमतें बढ़ी हैं.
तुर्की की गेहूं बाजार पर नियंत्रण की कोशिश
भारत विश्व में गेहूं के व्यापार का महत्वपूर्ण भागीदार रहा है. मौजूदा गेहूं संकट भारत के लिए एक अवसर की तरह सामने आया है.
उन्होंने कहा, तुर्की दरअसल यूक्रेन के ओडेसा बंदरगाह पर फंसे गेहूं की खेप को हासिल करना चाहता है. ऐसा कर तुर्की वैश्विक गेहूं बाजार पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है.
अगर यूक्रेन, रूस और तुर्की के बीच चल रही बातचीत सफल हो जाती है तो बड़ी मात्रा में यूक्रेन में फंसा गेहूं नियंत्रित तरीके से वैश्विक बाजारों तक पहुंचेगा.
उन्होंने कहा, इसलिए तुर्की भारत के गेहूं को ठुकरा रहा है.
भारत के गेहूं को ठुकरा कर वह बाजार को संकेत देने की कोशिश कर रहा है कि जल्द ही बड़ी मात्रा में गेहूं की सप्लाई होने वाली है और तुर्की इसका ट्रांसपोर्टेशन करेगा.
उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में भारत शायद शक्तिशाली ट्रेड लॉबी और वैश्विक जियो पॉलिटिक्स का शिकार बन सकता है.
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