– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के पायलट प्रोजेक्ट के तहत राजस्थान में आयोजित पहली ई-लोक अदालत इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि कोरोना के इस दौर में खुली लोक अदालत लगाना जोखिम भरा होने के कारण लगभग असंभव था। दूसरी ओर न्यायालयों का काम भी लंबे समय से बाधित है। इसके साथ ही न्यायिक प्रकरणों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में ई-लोक अदालत सराहनीय पहल मानी जानी चाहिए।
भले पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर लोक अदालत आयोजित की गई हो पर पहली ई-लोक अदालत के परिणाम उत्साहजनक होने के साथ आगे की राह प्रशस्त करने वाले हैं। राजस्थान में आयोजित ई-लोक अदालत में 350 बैंच स्थापित कर 66 हजार 367 मामले रखे गए। इसमें करीब 50 प्रतिशत मामलों का निस्तारण हो सका। हालांकि इसमें सरकारी पहल भी शामिल है, जिसमें राज्य सरकार ने करीब 8 हजार मामलों को इस लोक अदालत में वापस लिया। पीड़ितों के पक्ष में 2 अरब 36 करोड़ रुपए से अधिक के अवार्ड पारित किए गए। इस ई-लोक अदालत का महत्व इसलिए हो जाता है कि कोरोना काल में ई-लोक अदालत एक प्रयोग के तौर पर आयोजित की गई। राजस्थान के सुदूर इलाके जैसलमेर, बाड़मेर आदि इलाकों में इंटरनेट की समस्या के बावजूद जो परिणाम प्राप्त हुए, वे उत्साहजनक हैं।
अदालतों में लंबे समय से अटके आपसी समझौते से निपटाने योग्य वादों को निपटाने के लिए लोक अदालत के कंसेप्ट को अब बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। लोक अदालत में आपसी समझाइश से मामलों का निस्तारण कर न्यायालयों में वर्षों से लंबित विचाराधीन मामलों को आसानी से निपटाया जा सकता है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय की पहल पर अब लोक अदालतों का आयोजन होने लगा और उसके सकारात्मक परिणाम भी मिलने लगे हैं। पर कोरोना के कारण पिछले कई माह से लोक अदालतों का आयोजन भी प्रभावित हो रहा था।
2020 के आठ माह कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं और निकट भविष्य में हालात सामान्य होते नहीं दिखाई देते। जिस तरह से कोरोना लॉकडाउन के कारण सोशल डिस्टेंस व हेल्थ प्रोटोकाल की पालना अनिवार्य हो गई है और जिस तरह से कोरोना संक्रमण का लगातार फैलाव हो रहा है, न्यायालयों में नियमित सुनवाई लगभग असंभव दिखाई दे रही है। कोरोना संक्रमण के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। हालात लगातार चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं, वहीं देश की सबसे बड़ी अदालत हो या राज्यों के उच्च न्यायालय, वेबिनार या वीडियो कॉफ्रेसिंग के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रकरणों की सुनवाई कर रहे हैं। ऐसे में इस तरह की ई-लोक अदालत राज्यों के विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा भी समय-समय पर आयोजित की जाती रहे तो अदालतों में लंबित करोड़ों प्रकरणों में से लाखों प्रकरणों का निस्तारण हो सकता है और इससे न्यायालयों का बोझ भी कम हो सकता है। अकेले राजस्थान में ही आयोजित ई अदालत में एक दिन में 33 हजार से अधिक प्रकरणों का निस्तार किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं माना जा सकता।
केन्द्र सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में बताया कि देश की अदालतों में साढ़े तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित चल रहे हैं। नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के आंकड़ों के अनुसार देश की अधीनस्थ अदालतों में 3 करोड़ 12 लाख से अधिक प्रकरण विचाराधीन चल रहे हैं। इनमें 3 लाख 86 हजार मुकदमे तो 20-30 साल पुराने हैं। यही कारण है कि पिछले साल देश की सर्वोच्च अदालत ने केन्द्र सरकार से उच्च न्यायालयों में 93 और अधीनस्थ न्यायालयों में 2773 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत करने का पत्र लिखकर पद सृजन करने का आग्रह किया है।
आज देशभर के न्यायालयों में मुकदमों का अंबार है। इसमें दो राय नहीं कि न्याय मिलने में समय कितना भी लगे पर लोगों का देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास है। न्यायालयों में बकाया प्रकरणों में से लाखों की संख्या में ऐसे प्रकरण हैं जिन्हें आपसी समझाइश से निपटाया जा सकता है। बहुत से मामले केवल उन धाराओं में हैं जिनमें एक सुनवाई में दण्ड स्वरूप जुर्माना लगाकर निपटाए जा सकते हैं। जब इस तरह के प्रकरण ई-लोक अदालत में आएंगे तो बार-बार की तारीखों और न्यायालयों के चक्कर काटने के स्थान पर एक ही बार में निपटाए जा सकेंगे।
कोरोना महामारी का असर लंबे समय तक रहने वाला है। ऐसे में ई-लोक अदालतों का आयोजन बेहतर विकल्प है। देश की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायाधीश एनवी रमन्ना ई-लोक अदालत के परिणामों से इतने उत्साहित नजर आए कि वर्चुअल समापन समारोह में राजस्थान की परंपरा के अनुसार खमा घनी के संबोधन के साथ अपना उद्बोधन दिया। आशा की जानी चाहिए कि ई-लोक अदालतों के आयोजन के माध्यम से यह मुहिम और अधिक तेजी से बढ़ेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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