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    बंटवारे के समय मुस्लिमों को महात्मा गांधी ने रोक लिया था पाकिस्तान जाने से !

  • August 02, 2023

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । महात्‍मा गांधी (Mahatma Gandhi) के लिए मेवात के मुस्‍लिमों (Muslims of Mewat) के दिल में खास जगह है. वजह यह है कि देश के बंटवारे के समय उन्‍हें पाकिस्‍तान (Pakistan) जाने से रोका था! मेवातियों के देश प्रेम को देखते हुए महात्मा गांधी 19 दिसंबर 1947 को मेवात के गांव घासेड़ा पहुंचे थे. अब यह गांव गांधी ग्राम घासेड़ा के नाम से जाना जाता है ।

    बता दें कि आजादी की लड़ाई में हजारों मेवातियों ने जान दे दी थी। ‘मेवात एक खोज’ नामक पुस्‍तक लिखने वाले इतिहासकार सिद्दीक अहमद मेव कहते हैं ‘बंटवारे के वक्‍त ऐसे हालात बन गए थे कि मेव समाज भारी संख्या में भरतपुर, आगरा, अलवर और गुड़गांव से पलायन कर रहा था’।

    यूं तो देश बंटवारे के वक्त हुई हिंसा में हजारों लोग मारे गए थे, लेकिन नूंह में हुई हिंसा को लोग देश बंटवारे के समय की हिंसा से जोड़कर देख रहे हैं। देश बंटवारे के समय जब मेवात के लोग पाकिस्तान के लिए पलायन कर रहे थे, तो महात्मा गांधी ने मेवात के गांव घसेड़ा में आकर मुस्लिमों का पाकिस्तान पलायन रोका था और कहा था कि ये तुम्हारा ही देश है।



    इसे छोड़कर कहां जाओगे, बस मेरे कहने पर रुक जाओ, तुम्हारी हर जरूरत की जिम्मेदारी मेरी… यह अपील राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 19 दिसंबर 1947 को उस वक्त की जब पूरे मेवात इलाके में रहने वाले मेव (मुस्लिम) पलायन कर पाकिस्तान की तरफ रुख कर रहे थे। इसका असर यह हुआ कि पलायन कर रहे लोगों के पांव वहीं ठहर गए।

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में मेव मुसलमानों की स्थिति पर गौर करें तो मुगलों की सत्ता स्थापित होने से से पहले जब बाबर को भारत पर पकड़ स्थापित करने के अपने पांचवें और अंतिम प्रयास में 1,00,000 पुरुषों की एक राजपूत सेना का सामना करना पड़ा तब बाबर ने हसन खान मेवाती से मदद मांगी, जो एक मेव शासक था। हसन खान ने बाबर के धर्मवादी प्रस्तावों को ठुकराने और एक हिंदू राजा, राणा संघा का पक्ष लेने का फैसला किया था।1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में 6,000 से अधिक मेवों ने अपने प्राणों की आहुति दी।

    यह स्थानीय तानाशाह के साथ झगड़ा था जिसने मेवों को समुदाय की भावना और जागृत कर दिया और मेवों को पहला प्रामाणिक नेता – चौधरी मोहम्मद यासीन खान मिला। मेव मुसलमान ‘अलवर आंदोलन’ को भी अपने स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा मानते हैं। यह ऐसी घटना थी जिसमें एक स्थानीय नेता ‘ब्रिटिश कठपुतली’ से मुकाबला करने के लिए खड़ा होता है। नूंह के मेवात इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र युवा मेव आकिब जावेद खान ने कहा कि मेव अलवर या भरतपुर के राजाओं की तरह पिठू नहीं थे। मेव न तो मुगलों के साथ थे और न ही अंग्रेजों के साथ, बल्कि आजादी की लड़ाई में मेव कौम ने अग्रणी भूमिका निभाई।

    1947 के बाद नूंह हिंसा को दूसरी बड़ी हिंसा बताया जा रहा है। इससे पहले वर्ष 1992 में कुछ इलाकों में हिंसा हुई थी, लेकिन ये हिंसा कहीं बड़ी है।नूंह हिंसा के बाद बाद वहां काफी तनाव है। मेवात के इस इलाके में धार्मिक सौहार्द के बिगड़ने की अक्सर घटनाएं सामने आती रहती हैं। सोमवार को धार्मिक जुलूस के दौरान हुए पथराव में कई लोग घायल हो गए। नूंह में धार्मिक जुलूस में हुए उपद्रव में दो होम गार्ड समेत तीन लोगों की मौत हो गई। कथित तौर पर होम गार्ड की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बाद में गुरुग्राम, फरीदाबाद जैसे इलाकों में अशांति फैल गई।
    कद काठी और पहनावे पर गौर करें तो मेव मुस्लिम मेओ फेटा (पगड़ी) और गैर-मेओ पगड़ी पहनते हैं। महिलाएं बुर्का नहीं बल्कि सिर पर हल्का घूंघट रखती हैं। वे हिंदुओं की तरह एक ही गोत्र में शादी नहीं करते। कई परिवार अभी भी बच्चों को उनके हिंदू नामों से बुलाते हैं। अमर सिंह, चांद सिंह, सोहराब सिंह मेव नाम हैं।

    मेव मुस्लिम मेवात में हमेशा से बड़ी संख्या में रहे हैं। वहीं,यह पूर्वी राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के निकटवर्ती क्षेत्र में फैले हुए हैं। इनके अस्तित्व को लेकर कई तरह के मत हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इनकी जड़ें ईरान में हैं, अन्य कहते हैं कि वे मीना जनजातियों से हैं जिन्होंने इस्लाम अपना लिया। इनकी इन क्षेत्रों में कुल 20 लाख की आबादी है।

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