नई दिल्ली। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है. इस बार पितृ पक्ष(Pitru Paksha) की शुरुआत 10 सितंबर से हो रही है और 25 सितंबर तक चलेगें. इस दौरान पितरों (ancestors) के निमित्त पिंडदान, तर्पण और धर्म-कर्म आदि किया जाता है. मान्यता है कि ये 15 दिन पितर धरती पर अपने वंशजों के बीच रहते हैं. उनके द्वारा किए गए पिंडदान, तर्पण (Pind Daan, Tarpan) आदि से उनकी आत्मा तृप्त होती है और इससे प्रसन्न होकर वे वंशजों को आशीर्वाद (Blessings) देकर अपने लोक वापस लौट जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार पितरों की मृत्युतिथि के आधार पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से पिंडदान पितरों तक सीधा पहुंच जाता है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है. और वंशजों पर कृपा बनी रहती है. इस दौरान पितर कई रूपों में घर पर दर्शन देते हैं. पितृ पक्ष में मनुष्य से लेकर पक्षी तक के रूप में पितर घर पर आते हैं. ऐसे में गलती से भी उनका अपमान न करें. ऐसा करने से उनकी आत्मा दुखी होगी और वे नाराज (Unhappy) होकर वापस लौट जाएंगे.
गरीब-
श्राद्ध के दिनों में गरीबों को खाना खिलाने की परंपरा है. पितृ पक्ष के दौरान अगर आपके दरवाजे कोई भी गरीब आता है, तो उसे कभी भी भूखा या खाली पेट न लौटाएं. कहते हैं कि पितर आपके पास किसी भी रूप में आ सकते हैं. ऐसे में घर के बाहर आए गरीब को अच्छे से भोजन कराएं. साथ ही, कुछ दान-दक्षिणा देकर विदा करें.
कुत्ता-गाय-बिल्ली-
शास्त्रों में कुत्ते को यम का दूत माना गया है. पितृपक्ष के दौरान पंचबली भोग के दौरान गाय और कुत्ते के भोग भी निकाला जाता है. ऐसे में इन दिनों में कुत्ते का घर आना अच्छा माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अगर कुत्ता कभी रास्ते में दिख जाए, तो इसे कभी भी मारकर नहीं भगाना चाहिए. कुत्ते को कुछ खाने के देने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. वहीं, ऐसा भी कहा जाता है कि गाय की सेवा आदि करने से भी पितर प्रसन्न होते हैं. इसके साथ ही, बिल्लियों को भी दूध आदि पिलाना चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)
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