नई दिल्ली. एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बीजेपी (BJP) भारी बहुमत (majority) से जीतती हुई नजर आ रही है. भारतीय जनता पार्टी को 67 से 72 सीटें मिलने का अनुमान है. एग्जिट के पोल के आंकड़े बताते हैं कि विपक्षी गठबंधन समाजवादी पार्टी. कांग्रेस (Samajwadi Party. Congress) और टीएमसी (TMC) मिलकर करीब 8 से 12 सीट जीत सकते हैं. जबकि बहुजन समाज पार्टी (BSP) के ज्यादा से ज्यादा एक सीट जीतने का अनुमान है.
अभी तीन दिन पहले ही राहुल गांधी के साथ वाराणसी पहुंचे अखिलेश यादव यहां तक कह रहे थे कि वे ‘क्यूटो’ (वाराणसी पर तंज) भी जीत रहे हैं. उन्होंने कहा था जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर है. यूपी का चुनाव ऐसा चुनाव हो गया है कि भाजपा क्यूटो भी हारने जा रही है. तो क्या वास्तव में इंडिया ब्लॉक जनता की नब्ज नहीं समझ सका. आइए देखते हैं कि वो कौन से कारण रहे, जिसके चलते समाजवादी पार्टी का ये हाल हो गया.
मुख्तार अंसारी की मौत पर मातमपुर्सी में जाना
अखिलेश यादव ने अपनी शुरूआती दौर की राजनीति में माफिया नेताओं से निश्चित दूरी मेंटेन करनी शुरू की थी. एक समय ऐसा भी था कि जब मुख्तार परिवार को उन्होंने पार्टी में घुसने से मना कर दिया था. उस दौर में मुख्तार अंसारी की पूर्वी यूपी में तूती बोलती थी. कई सीटों पर उसका प्रभाव था. जब उसका दौर था तब तो अखिलेश ने मुख्तार से दूरी बना ली. और जब मुख्तार का प्रभाव योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में चूर-चूर हो गया था और खुद भी मुख्तार इस दुनिया में नहीं बचा तब अखिलेश उसके घर न केवल मातामपुर्सी में पहुंचे बल्कि उसके भाई अफजाल अंसारी पर भी दांव लगाया.जनता में संदेश ये गया कि एक तरफ योगी आदित्यनाथ प्रदेश से माफियाराज को खत्म करने में लगे थे दूसरी तरफ अखिलेश ऐसे लोगों को प्रश्रय दे रहे हैं. यही नहीं मुख्तार की मौत पर समाजवादी पार्टी की आईटी सेल ने उसे शहीद बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
राम मंदिर मुद्दे की गहराई समझ नहीं सके
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि उत्तर प्रदेश में राम मंदिर का मुद्दा बहुत बड़ा था. इसे अंडर करंट कह सकते हैं. जो दिख तो नहीं रहा था पर बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने में उसका बहुत बड़ा हाथ था. राम मंदिर उद्घाटन में न जाकर उन्होंने खुद को हिंदुओं से अलग एक पार्टी बना लिया था. उद्घाटन के पहले कई बार उनके बयानों से ऐसा लगा था कि वो राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा में जा सकते हैं. पर वो नहीं गए. अखिलेश उस समय भी सजग नहीं हुए जब उनकी ही पार्टी के विधायकों ने विधानसभा में राम मंदिर उद्घाटन के धन्यवाद प्रस्ताव में अपनी पार्टी से हटकर सरकार के समर्थन में वोटिंग किया था.
बीएसपी को साथ न लेना महंगा पड़ गया
बहुजन समाज पार्टी अपने गिरे गिरे से हालत में भी 13 फीसदी वोट हासिल कर ही लेती है. इंडिया ब्लॉक में बीएसपी को न लेने की उनकी जिद सिवाय अपरिपक्वता और कुछ नहीं था. शुरूआत में ही अगर अखिलेश ने बीएसपी को इंडिया गुट में न शामिल करने की जिद नहीं पकड़ी होती तो हो सकता था कि मायावती भी गठबंधन में शामिल हुईं होतीं. बहुजन समाज पार्टी के भी साथ आने से बीजेपी और कमजोर होती. पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वी यूपी तक की कई ऐसी सीटें थीं, जहां बीजेपी इंडिया गठबंधन के साथ होती तो परिणाम कुछ और होता.
संयुक्त रैलियां बहुत देर से और बहुत कम हुईं
राहुल गांधी और अखिलेश यादव साथ तो आ गए पर आम जनता के सामने दिखाई नहीं दिए. एक तो बहुत दिनों तक समझौता नहीं हुआ. दूसरे जब समझौता और सीट शेयरिंग पर सहमति बन गई तो भी जनता के सामने एक साथ आने में बहुत देर कर दी. पहले चरण के चुनाव के पहले दोनों एक साथ केवल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस ही कर सके थे. एक साथ रैली या सभा करने में बहुत देर कर दी. इतना ही नहीं, दोनों नेताओं की संयुक्त रैली और सभाएं भी इतनी कम मात्रा में हुईं कि आम जनता को यह पता नहीं चला होगा कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक साथ चुनाव लड़ रही हैं.
सहयोगियों की बेवफाई
चाहे जो कारण हो, अखिलेश यादव के साथी ऐन मौके पर उनका साथ छोड़ते गए. आरएलडी के जयंत चौधरी पहले ही सपा से नाता तोड़ चुके थे. लेकिन जिनके लिए अखिलेश ने बहुत कुछ किया, वे नजदीकी लोग भी उनको जरूरत के समय छोड़ गए. अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल को उन्होंने अपनी पार्टी के सिंबल पर विधायक बनाया पर राज्यसभा चुनावों के समय छोटी सी बात पर नाराज होकर साथ छोड़ गईं.
स्वामी प्रसाद मौर्य को तवज्जो देने के बावजूद ऐन चुनाव के मौके पर उन्होंने साथ छोड़ दिया. जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य के चलते कई बार अखिलेश को अपनी पार्टी के वरिष्ट लोगों से पंगा लेना पड़ा. इतना ही नहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य के चलते पार्टी में सवर्ण हिंदुओं की नाराजगी भी उन्हें झेलनी पड़ी. इसके पहले ओमप्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान ने साथ छोड़ा ही था. राज्यसभा चुनाव में मनोज पांडेय, राकेश सिंह, पूजा पाल, गायत्री प्रजापति की पत्नी समेत कई विधायकों से भी उनकी दूरी बन गई
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved