उज्जैन। कोरोना की दूसरी लहर के बाद जून माह में जो शादियां हो रही हैं, उसमें बमुश्किल कुछ रिश्तेदार ही शामिल हो रहे हैं और सन्नाटे के बीच विवाह की रस्म अदा हो रही है..न कोई उत्साह और न ही कोई बाराती..जिन नए जोड़ों की शादियां हो रही हैं..उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका विवाह इस माहौल में होगा..!
हर व्यक्ति का विवाह को लेकर एक सपना होता है फिर भले ही वह लड़का हो या लड़की, भव्य रूप से शादी करने नाचने गाने और धूमधड़ाके के माहौल में विवाह होते आए हैं लेकिन अभी तो जो दूल्हे बने हैं, बेचारे वे घोड़ी भी नहीं चढ़ पा रहे हैं और न ही कोई नाच रहा है। घर में ही बने मंडप में ढोल बजता है तथा उसमें ही शगुन के रूप में उपस्थित रिश्तेदार नाच गा लेते हैं ऐसा लग रहा है कि शादी मजबूरी की रस्म अदाएगी रह गई है। जिला प्रशासन ने कोरोना की दूसरी लहर के बाद वर-वधू पक्ष से कुल मिलाकर 50 लोगों के शामिल होने की अनुमति दी है और इसी प्रोटोकाल में उज्जैन में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह हो रहे हैं। उज्जैन शहर के साथ ही तहसील महिदपुर, नागदा, खाचरौद घटिया महिदपुर रोड तराना में भी यही वातावरण है। प्रतिबंधों के कारण शादियाँ हो तो रहीं हैं लेकिन सिर्फ रस्म अदाएगी है जिन घरों में शादियां हैं उनके चेहरों का हाल बता रहा है कि वे इससे ख़ुश नहीं हैं । उल्लेखनीय है कि मई माह में जो शादियां हुई उसे मानने से जिला प्रशासन ने इंकार कर दिया था और कलेक्टर ने कहा था कि शादियों के विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र नहीं दिए जाएंगे। इस दौरान करीब 50 शादियां हुई थी, सबसे अधिक नुकसान होटल एवं मैरिज गार्डन वालों का हुआ है तथा घोड़ी वाले भी अपने घर का ही पैसा खर्च कर उनका पेट भर रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि कब पुराने दिन लौटेंगे और विवाह का जो कारोबार है, वह कब चमकेगा। उज्जैन में प्रतिवर्ष विवाह आयोजनों पर 20 करोड़ रुपए खर्च होते हैं जिससे बाजार चलता है, क्योंकि यह एक बड़ी रकम है। पिछले एक साल से विवाह कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं और इस अवधि में जितने भी कार्यक्रम हुए वे केवल गिनती के लोगों की मौजूदगी में हो पाए हैं। ऐसे में कई लोगों ने धड़ल्ले से विवाह आयोजन निपटा कर खुद को बेवजह के खर्च से बचाने का भी प्रयास किया है।
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