उज्जैन। गर्मी में सभी प्रकार के रोगों से बचने का एकमात्र साधन पीने का पानी है। पीने के पानी उज्जैन शहर में इस बार तो किल्लत नहीं है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति काफी बिगड़ गई है यहां 5 दिन में एक बार पीने का पानी मिल पा रहा है। इस बार गर्मी का कहर अप्रैल माह से ही शुरू हो गया था और मई माह में पारा 43 डिग्री के आसपास घूम रहा है। अत्यधिक गर्मी के चलते धरती का पानी सूखने लगा है। बात शहर की बात की जाए तो शहर की प्यास बुझाने वाला गंभीर डेम अभी तो भरा हुआ है। वर्तमान में डेम में 672 एमसीएफटी पानी है और प्रतिदिन गर्मी के मौसम में नो एमसीएफटी के आसपास डेम से पानी कम हो रहा है, यदि इस हिसाब से भी मान लिया जाए तो 65 दिन में 585 एमसीएफटी पानी शहर को लगेगा और वर्तमान में 672 एमसीएफटी पानी संग्रहित है।
इसमें से सौ एमसीएफटी डेड स्टोरेज का बचा लिया जाए तो 572 एमसीएफटी पानी 15 जुलाई तक चल जाएगा और आमतौर पर 15 जुलाई तक मध्य प्रदेश में मानसून आ जाता है, इसलिए शहर में फिलहाल जल संकट की स्थिति नहीं है वहीं ग्रामीण क्षेत्र की बात की जाए तो यहां स्थिति काफी खराब है। उज्जैन शहर से लगी तहसील घटिया में ही 5 दिन छोड़कर वहां के वासियों को पेयजल मिल पा रहा है वहीं आसपास के ग्रामीण क्षेत्र सोडंग, जलवा, कालू हेड़ा सहित 20 गांव की स्थिति काफी खराब है। यहां पानी कहीं-कहीं तो 1 सप्ताह में एक बार मिल रहा है। घटिया तहसील में जिस बोरवेल से पूरे घटिया में पीने का पानी प्रदाय किया जाता था। वह बोरवेल अब बंद हो चुका है। ऐसे में ग्रामीण पीएचई वहां निजी बोरवेल का सहारा लेकर क्षेत्रवासियों को जल वितरण कर रही है। वहीं छोटे गांव में जहां हैंडपंप अभी चल रहे हैं वहां सिंगल फेस मोटर चला कर ग्रामीणजनों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। घटिया में भूजल स्तर 600 फीट से नीचे तक गिर चुका है। पीएचसी के इंजीनियरों ने बताया कि अभी कुछ दिनों पूर्व घटिया में पेयजल स्थिति सुधारने के उद्देश्य से दो बोरवेल 600 फीट तक करवाए गए लेकिन उनमें पानी नहीं मिला। मतलब स्थिति साफ है कि घटिया क्षेत्र में पानी की किल्लत काफी बड़ी है। इसी प्रकार अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थिति खराब है और मानसून आने में अभी पूरा डेढ़ महीना बाकी है। डेढ़ महीने तक ग्रामीण क्षेत्र की जनता को जल संकट का सामना करना पड़ेगा।
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