नई दिल्ली. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने शुक्रवार को एक बड़ी सफलता अपने नाम की. डीआरडीओ ने स्क्रैमजेट इंजन (scramjet engine) की 1000 सेकेंड तक टेस्टिंग की जो पूरी तरह सफल (successfully) रही. इस इंजन का इस्तेमाल हाइपरसोनिक मिसाइलों (hypersonic missiles) में किया जाएगा. यह अहम टेस्टिंग ऐसे वक्त पर हुई है जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं.
हाइपरसोनिक तकनीक पर काम कर रहे कई देश
यह जमीनी परीक्षण जनवरी 2025 में 120 सेकंड के लिए किए गए पहले परीक्षण का ही एक हिस्सा है. भारत, अमेरिका, चीन और रूस सहित कई देश सक्रिय रूप से हाइपरसोनिक तकनीक पर काम कर रहे हैं.
हाइपरसोनिक मिसाइलों की रफ्तार ध्वनि की गति से भी पांच गुना ज्यादा होती है. ये 5400 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति से चलती हैं. इससे तेज और उच्च प्रभाव वाले हमले किए जा सकते हैं. स्क्रैमजेट इंजन में इग्निशन प्रणाली है जिसके जरिए ईंधन और हवा के मिश्रण में चिंगारी लगाकर इसे जलाया जाता है.
कितना खास है स्क्रैमजेट इंजन?
स्क्रैमजेट इंजन में एक फ्लेम स्टेबिलाइजेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है, जो 1.5 किमी/सेकंड से अधिक वायु गति के साथ कंबस्टर के अंदर लौ बनाए रखती है. स्क्रैमजेट में कई नई इग्निशन और फ्लेम होल्डिंग तकनीकों का भी अध्ययन किया गया है. इस परियोजना के तहत कई तरह के उपकरण तैयार किए जा रहे हैं जिसमें स्क्रैमजेट इंजन का प्रयोग किया जा रहा है.
अधिक तापमान को बर्दाश्त करने वाली कोटिंग को विकसित किया गया है जो स्टील के पिघलने से भी ज्यादा तापमान पर काम कर सकती है. इसे स्क्रैमजेट इंजन के अंदर लगाया जाता है. डीआरडीएल ने पहली बार भारत में ‘एंडोथर्मिक स्क्रैमजेट फ्यूल’ का ईजाद किया है, जो इंजन के तापमान को नियंत्रण रखने में मदद करेगा. यह इंजन का तापमान कम रखने और इग्निशन को सरल बनाने में मदद करता है.
स्क्रैमजेट इंजन के बारे में खास बातें
-यह इंजन केवल वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग करके ईंधन जलाता है.
-इंजन में हवा का प्रवाह सुपरसोनिक यानी ध्वनि की गति से अधिक रहता है.
-यह इंजन केवल रॉकेट के वायुमंडलीय फेज में उपयोग किया जा सकता है क्योंकि रॉकेट जब पृथ्वी के वायुमंडल की सीमा से बाहर निकल जाता है, तब वहां ऑक्सीजन बहुत कम या लगभग नहीं होती.
-यह इंजन लॉन्च के समय वाहन का वजन आधे से भी ज्यादा कम कर देगा, जिससे यह भारी पेलोड को कक्षा में ले जाने में सक्षम होगा.
-यह ईंधन के साथ ले जाने वाले ऑक्सीकारक की मात्रा को कम करके लॉन्च की लागत घटाने में मदद करेगा.
-इस इंजन का इस्तेमाल रॉकेट के ऊपर चढ़ने और नीचे आने दोनों समय किया जा सकता है.
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