टोक्यो। दूसरे देशों के इलाकों पर नजर गड़ाए चीन (China) को जापान (Japan) ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। जापान (Japan) ने अपने जलक्षेत्र के नजदीक गश्त कर रही चीनी नौसैनिक पनडुब्बी और विध्वंसक पोत (Chinese naval submarine and destroyer) को पिछले दिनों भागने पर मजबूर कर दिया।
जापानी रक्षा मंत्रालय ने रविवार को बताया, नौसेना ने शुक्रवार सुबह देश के दक्षिणी कागोशिमा प्रान्त के हिस्से अमामी ओशिमा द्वीप के पास एक चीनी पनडुब्बी की पहचान की। साथ ही पास के इलाके में एक चीनी विध्वंसक पोत भी गश्त लगाते हुए देखा गया। इस पर जापानी नौसेना के युद्धपोतों और समुद्री गश्ती फाइटर जेटों को भेजा गया। इसके बाद चीनी पनडुब्बी और पोत इलाके से निकल गए।
द्वीप पर है विवाद
चीन और जापान में पूर्वी चीन सागर में स्थित द्वीपों को लेकर आपस में विवाद है। इन्हें जापान में सेनकाकु और चीन में डियाओस के नाम से जाना जाता है। इन द्वीपों का प्रशासन 1972 से जापान के पास है। वहीं, चीन का दावा है कि ये द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
पिछले साल भी खदेड़ी थी चीनी पनडुब्बी
पिछले साल जून में भी जापानी नौसैनिक बलों ने चीन की एक पनडुब्बी को खदेड़ा था। दरअसल, उस समय जापानी विध्वंसक युद्धपोत कागा ने दक्षिणी जापान में ओकिनावा द्वीप के पास 24 समुद्री मील के भीतर एक चीनी पनडुब्बी का पता लगाया था, जिसके बाद हरकत में आई जापानी नौसेना ने अपने पेट्रोलिंग एयरक्राफ्ट की मदद से चीनी पनडुब्बी को अपने जलक्षेत्र से बाहर खदेड़ दिया था। पिछले हफ्ते भी चीनी सरकार के कई जहाज इस द्वीप के नजदीक पहुंच गए थे जिसके बाद टकराव की आशंका भी बढ़ गई थी।
ड्रैगन से तनाव के बीच जापान-वियतनाम में रक्षा समझौता
जापान अब वियतनाम को रक्षा उपकरण और तकनीक मुहैया करवा सकेगा। इसके लिए शनिवार को दोनों देशों ने समझौता किया। खास बात है कि यह समझौता चीन के बढ़ते सैन्य तनाव के बीच किया गया। वियतनाम 11वां ऐसा देश है, जिससे जापान ने सैन्य समझौता किया।
इस दौरान जापान ने चीन का नाम लिए बगैर कहा कि दक्षिण व पूर्वी चीन सागर में किसी एक देश की और से जबरन अपनी गतिविधियां बढ़ाने या तनाव पैदा करने का विरोध किया जाएगा।
जापान के रक्षा मंत्री नोबुओ किशी के अनुसार इस समझौते के बाद दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास से भी अपने रक्षा संबंधों को प्रगाढ़ बनाएंगे और सैन्य नौकाओं के आदान-प्रदान पर बात होगी। दोनों देश क्षेत्र में समुद्री और वायु मार्गों को स्वतंत्र रखने पर जोर देंगे।
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