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    भारत के दम से डर गया ड्रैगन! ब्रह्मोस से चीन में खलबली… खौफ की ये है वजह

  • April 20, 2024

    नई दिल्ली: साउथ चाईना सी और उसके आस पास के देशों को चीन धमकाने से बाज नहीं आता है. साथ ही अपनी एक्स इकॉनोमिक ज़ोन यानी EEZ में भी क़ब्ज़ा करता रहता है. फ़िलीपींस के साथ चीन के रिश्ते 2009 के बाद से और ख़राब हो गए जब चीन ने नया नक़्शा जारी किया जिसमें साउथ चाईना सी में 9 डैश लाइन लगाकर अपना इलाक़ा बता दिया.

    इसके तहत फ़िलीपींस के द्वीपों और EEZ का हिस्सा भी आता है और चीन के हिसाब से पर क़ब्ज़ा जताने के लिए फ़िलीपींस, वियतनाम, ताइवान और मलेशिया के समुद्री क्षेत्र पर क़ब्ज़े की संकट बढ़ गया है. चूंकी चीन की नौसेना नंबर के लेहाज से आज दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है. एसे में उसे काउंटर करने के लिए भारतीय ब्रह्मोस एक अचूक हथियार से कम नही है और चीन की हिमाक़त से निपटने के लिए फ़िलीपींस ने अपनी नौसेना को और मज़बूत करना शुरू किया है.

    ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम को भेजा गया फ़िलीपींस
    चीन को रोकने के लिए फ़िलीपींस ने भारत के साथ ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम करार किया है. बता दें कि 374.96 मिलियन डॉलर में तीन मिसाइल बैटरी का करार पिछले साल 2022 में हुआ और शुक्रवार को ब्रह्मोस एंटी शिप सुपरसोनिक मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी भी हो गई. भारतीय वायुसेना के C-17 ग्लोब मास्टर ज़रिए पहली खेप फ़िलीपींस भेजी गई.

    करार के मुताबिक़ फ़िलीपींस की नौसेना को भारत ने इस श्योर बेस्ड एंटी शिप मिसाइल सिस्टम के ऑप्रेशन और मेंटेनेन्स पर ट्रेनिंग भी दी. पिछले साल 23 जनवरी से 11 फ़रवरी तक चली ट्रेनिंग में 21 फ़िलीपींस नेवी पर्सनल की ट्रेनिग पूरी हुई थी. ये ट्रेनिंग नागपुर में हुई. ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद खुद नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने फ़िलीपींस नौसेना के लोगों को मिसाइल बैज भी दिए थे. इसकी जानकारी फ़िलिपींस मरीन कोर ने इसकी जानकारी दी.


    ब्रह्मोस ख़तरनाक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल में से एक
    ये मिसाइल बैटरी फ़िलिपींस मरीन कोर के कोस्टल डिफ़ेंस रेजिमेंट ऑप्रेट करेगी. ब्रह्मोस दुनिया की सबसे ख़तरनाक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल में से एक है. इसकी मारक क्षमता 290 किलोमीटर है यानी की फ़िलीपींस के एक्सक्लूसिव इकॉनोमिक ज़ोन जो कि तट से 200 नॉटिकल मील यानी की 370 किलोमीटर तक का इलाक़ा हैं और इसके अंदर आने वाले किसी भी चीनी जंगी जहाज़ को आसानी से निशाना बना सकता है. चीन ने बड़ी तेज़ी से फ़िलीपींस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले इलाक़ों में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण करना शुरू किया और इसके अलावा वो फ़िलीपींस की नौसेना के पेट्रोलिंग पर भी अड़ंगा लगाता आया है साथ ही मछुवारों को भी खदेड़ता आया है.

    साउथ चाईना सी में चीन के डर की भारतीय वजह
    अगर चीन की घेराबंदी की बात करें तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दक्षिण चीन सागर और इसके आसपास के समुद्री इलाके में चीन के खिलाफ सुपरसोनिक ब्रह्मोस चक्रव्यूह तैयार हो रहा है. दरअसल फ़िलीपींस को ब्रह्मोस मिलने शुरू हो चुके है इसके अलावा ब्रह्मोस मिसाइल में कई और देशों ने भी रूचि दिखाई है. जिसमें इंडोनेशिया, थाइलैंड सहित कई देशों है जिनके साथ बातचीत अभी एडवांस स्टेड में चल रही है. पिछले साल ही भारतीय वायुसेना की एक ब्रह्मोस लैंड वर्जन की एक मिसाइल गलती से पाकिस्तान की तरफ़ फ़ायर हो गई थी और 100 किलोमीटर पाकिस्तान के अंदर जाकर गिरी लेकिन पाकिस्तान के रडार उसे ट्रेक तक नहीं कर पाए थे.

    ब्रह्मोस की बढ़ाई जा रही है रेंज
    भारत ने भी ब्रह्मोस की रेज को बढ़ाने के लिए काम करना शुरू कर दिया है. और वो तब संभव हुआ जब भारत ने 2016 भारत मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल रिजीम का सदस्य बना था. ये एक एसी संस्था है जो कि लांग रेंज मिसाइल या लांग रेंज ड्रोन के प्रसार को कंट्रोल करती है. अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के तहत कोई भी देश 300 किलोमीटर से ज़्यादा मार करने वाली मिसाइल को दूसरे देश को नहीं बेच सकता. भारत और रूस ने जब साझा डेवलपमेंट करते हुए ब्रह्मोस बनाया था तो इसकी मारक क्षमता 290 किलोमीटर ही थी लेकिन जैसे ही 2016 में MTCR का सदस्य बना तो भारत के लिये ब्रह्मोस की रेंज को बढ़ाने के रास्ते खुल गए और रूस अब आधिकारिक तौर पर ब्रह्मोस की रेंज को बढ़ाने के लिए भारत की मदद कर सकता है.

    उसी के कारण ब्रह्मोस की रेंज को 290 किलोमीटर से आगे बढ़ाने का काम जारी है और इसे 400 से 600 किलोमीटर मारक क्षमता देने के लिए भारतीय वैज्ञानिक जुटी हुई है. हाल ही में भारतीय वायुसेना ने सुखोई लड़ाकू विमान से ब्रह्मोस एक्सटेंडेड रेंज का सफल परिक्षण किया था जिसकी मारक क्षमता 400 किलोमीटर से ज़्यादा थी. दुनिया की सबसे ख़तरनाक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल सिस्टम अगर चीन उन देशों की सेना में शामिल हो जाता है जिनकी समुद्री सीमा से होते हुए चीनी एनर्जी ट्रेड आगे बढ़ता है तो ये चीन के लिए किसी दम घोंटने वाली स्थिति से कम नहीं होगा.

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