नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री (Former Prime minister) मनमोहन सिंह (Manmohan singh) आज 90 साल के हो गए। 26 सितंबर, 1932 को अविभाजित भारत (Undivided india) के पंजाब प्रांत (Punjab state) के गांव (Village) ‘गाह’ में उनका जन्म (Birth) हुआ था। इस मौके पर उन्होंने अपने आठ पेज के बायोडाटा (Biodata) में अपने राजनीतिक सफर (Political Journey) के बारे में बताया है। इसमें अच्छे अर्थशास्त्री (Economist) के तौर पर देश की तरक्की (Progress) में योगदान (Contribution) देकर लोगों के मन में बसने (Settle in mind) और प्रधानमंत्री के रूप में मोहने वाले (Tempting) कार्यों के बारे में बताया है।
वह 2004 से 2014 के बीच देश के प्रधानमंत्री रहे। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने से पहले डॉ. सिंह 1971 में उस समय भारत सरकार में आए जब उन्हें वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया। इसके बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने। मनमोहन सिंह ने 1991 से 1996 के बीच पांच साल तक केंद्रीय वित्त मंत्री रहे। इस दौर में आर्थिक सुधारों में सराहनीय भूमिका निभाई।
डॉ. सिंह 1991 से भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के सदस्य, 1998 और 2004 के बीच विपक्ष के नेता रहे। डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनावों के बाद 22 मई को प्रधान मंत्री पद की शपथ ली और 22 मई 2009 को दूसरे कार्यकाल के लिए पद की शपथ ली। वह लगातार दस साल तक प्रधानमंत्री रहे।
इन पुरस्कारों से किया जा चुका है सम्मानित
मनमोहन सिंह को भारत दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण (1987), जवाहरलाल नेहरू बर्थ सेंटेनरी अवॉर्ड ऑफ द इंडियन साइंस कांग्रेस (1995), वर्ष के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवॉर्ड (1993 और 1994), वर्ष के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के लिए यूरो मनी अवॉर्ड (1993), कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का एडम स्मिथ पुरस्कार (1956), और कैम्ब्रिज में सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट कार्य-निष्पादन हेतु राइट्स प्राइज़ (1955) शामिल हैं। डॉ. सिंह को कैम्ब्रिज और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटीज सहित कई विश्वविद्यालयों की ओर से मानद उपाधियां प्रदान की गई हैं।
मनमोहन सिंह की यह तस्वीर देख सबने किया सलाम
इसी साल जुलाई के महीने में राष्ट्रपति चुनाव में अपना वोट डालने मनमोहन सिंह पहुंचे। मनमोहन सिंह वोटिंग के लिए संसद में वीलचेयर पर आए और उनकी यह तस्वीर दिल छूने वाली थी। यह लोकतांत्रकि व्यवस्था में उनके वश्विास का आईना था और उन्होंने दिखाया कि वह संसदीय प्रक्रिया में कितना यकीन रखते हैं। अपने मत को वह किसी भी हाल में बेकार नहीं कर सकते हैं। यह उन लाखों-लाख लोगों के लिए सबक है जो वोट डालने को सिर्फ रस्मी मानते हैं या फिर मतदान करने जाते ही नहीं हैं। मनमोहन सिंह यह जानते हुए कि पहले ही सत्तारूढ़ बीजेपी की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का पलड़ा विपक्ष के कैंडिडेट यशवंत सिन्हा से कहीं भारी है। पूर्व प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के दोनों उम्मीदवारों की हार-जीत की संभावना को नजरअंदाज कर सिर्फ वही किया जो उन्?हें करना चाहिए। अपनी जिम्मेदारी को उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया। उनके इस कदम की काफी चर्चा रही।
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