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    चेक अनादरण में हुई सजा से डॉक्टर बंडी दंपति को राहत

  • January 22, 2024

    अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को अपीलीय न्यायालय ने बदला

    इंदौर। चेक अनादरण में हुई सजा से शहर के ख्यात चिकित्सक डॉ. अनिल बंडी, उनकी पत्नी डॉ. राधिका बंडी निवासी लाड़ कालोनी को राहत मिली है। इनकी ओर से दायर क्रिमिनल अपील स्वीकार करते हुए अपीलीय न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय को त्रुटिपूर्ण मानते हुए अपास्त कर दिया।


    मामला इस प्रकार है कि विकल्प मूंदड़ा निवासी साकेत नगर से आपसी पारिवारिक संबंधों के आधार डॉ. राधिका और डॉ. अनिल ने क्रमश: 50 और 25 लाख रुपए उधार लिए थे, जिसके एवज में दिए गए चेक अनादृरित होने पर दो अलग-अलग केस लगाए। न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने डॉ. राधिका बंडी को परक्रम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 में दोषी पाते हुए 23 जुलाई 2023 को छह माह के सश्रम कारावास और 55 लाख 96 हजार 618 रुपए प्रतिकर के रूप में निर्णय दिनांक से अदायगी तक 9 प्रतिशत की दर से अदा करने के आदेश दिए। इसी तरह डॉ. अनिल बंडी को छह माह के सश्रम कारावास और 27 लाख 11 हजार 700 रुपए प्रतिकर के रूप में निर्णय दिनांक से अदायगी तक 9 प्रतिशत की दर से अदा करने के आदेश दिए। इस निर्णय के विरुद्ध दोनों की ओर से अलग-अलग क्रिमिनल अपील दायर की गईं। इनमें बताया गया कि चेक अनादरण के पूर्व टुकड़ों में इनके द्वारा क्रमश: लगभग 15 और 7 लाख से अधिक रुपए मूंदड़ा को लौटाए गए, जिसका कोई उल्लेख नहीं करते हुए पूरी राशि के चेक बैंक में लगा दिए गए। यदि यह राशि मूंदड़ा ने ब्याज पेटे मानी तो उक्त धारा में यह केस नहीं बनता, क्योंकि उनके पास ब्याज के व्यवसाय का लाइसेंस नहीं है और मूल राशि में जमा माना जाए तो बकाया राशि इतनी है ही नहीं, जितने के चेक लगा दिए, तब भी केस नहीं बनता। अत: अधीनस्थ न्यायालय ने उक्त निर्णय में त्रुटि की है।

    कोर्ट ने यह माना
    सभी के तर्कों को सुनने और उपलब्ध तथ्यों के आधार पर प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश संजयकुमार गुप्ता की कोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेखित किया कि इस संबंध में न्याय दृष्टांत दशरथ विक्रमभाई पटेल विरुद्ध हितेश महेंद्रभाई पटेल एवं अन्य (2023) में प्रतिपादित न्याय सिद्धांत के अनुसार यदि कोई चेक इस पृष्ठांकन के बिना पूर्ण प्रतिफल राशि के लिए प्रस्तुत कर दिया जाता है कि उसमें से कुछ राशि का परिवादी द्वारा भुगतान प्राप्त कर लिया गया है, तब ऐसी स्थिति में धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम के अंतर्गत कोई आपराधिक दायित्व नहीं बनता है। अत: उपरोक्त विवेचना से यही निष्कर्ष निकलता है कि विचारण न्यायालय द्वारा अपीलार्थी को दोषसिद्ध एवं दंडादिष्ट करने में त्रुटि कारित किया जाना परिलक्षित होता है। अत: प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है तथा विचारण न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि संबंधी निष्कर्ष एवं दंडाज्ञा अपास्त किए जाते हैं तथा इन्हें धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम के अपराध में दोषमुक्त किया जाता है।

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