रमेश सर्राफ धमोरा –
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर की जयन्ती मनायी जायेगी। मगर देश में कोरोना महामारी की चल रही दूसरी लहर के कारण देश वासियों को सावधानी पूर्वक अपने-अपने घरों में रह कर ही बाबा साहेब की जयन्ती मनानी चाहिये। सार्वजनिक आयोजनों में भी मास्क पहनकर ही शामिल हों तथा दो गज की दूरी रखें। बाबासाहेब की जयन्ती पर इसबार लोगों को अपने घरों में राष्ट्र की एकता के नाम एक दीपक जलाकर संकल्प लेना चाहिये कि हम सब सच्चे मन से उनके बताये मार्ग का अनुशरण करेंगे। उनके बनाये संविधान का पालन करेंगे। ऐसा कोई काम नहीं करेगें जिससे देश के किसी कानून का उल्लघंन होता हो। चूंकि बाबा साहेब हमेशा जातिप्रथा, ऊंच-नीच की बातों के विरोधी थे इसलिये उनकी जयन्ती पर उनको श्रद्धांजलि देने का सबसे अच्छा तरीका, उनके सिद्धांतों को जीवन में अपनाने का है।
बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में एक गरीब परिवार मे हुआ था। वे भीमराव रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वीं सन्तान थे। उनका परिवार मराठी था जो महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले मे स्थित अम्बावडे नगर से सम्बंधित था। उनके बचपन का नाम रामजी सकपाल था। वे हिंदू महार जाति के थे जो अछूत कहे जाते थे। उनकी जाति के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण बचपन में उन्हें कई कष्ट उठाने पड़े।
भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव आम्बेडकर के कई सपने थे। भारत जाति-मुक्त हो, औद्योगिक राष्ट्र बने, सदैव लोकतांत्रिक बना रहे। लोग आम्बेडकर को एक दलित नेता के रूप में जानते हैं जबकि उन्होंने बचपन से ही जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया था। उन्होने जातिवाद से मुक्त आर्थिकदृष्टि से सुदृढ़ भारत का सपना देखा था मगर देश की गन्दी राजनीति ने उन्हे सर्वसमाज के नेता के बजाय दलित समाज का नेता के रूप में स्थापित कर दिया। डॉ.आम्बेडकर का एक और सपना भी था कि दलित धनवान बनें। वे हमेशा नौकरी मांगने वाले ही न बने रहें अपितु नौकरी देने वाले भी बनें।
डॉ.भीमराव आम्बेडकर का मानना था कि भारतीय महिलाओं के पिछड़ेपन की मूल वजह भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था और शिक्षा का अभाव है। शिक्षा में समानता के संदर्भ में आंबेडकर के विचार स्पष्ट थे। उनका मानना था कि यदि हम लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देने लग जाएं तो प्रगति कर सकते हैं। शिक्षा पर किसी एक ही वर्ग का अधिकार नहीं है। समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा का समान अधिकार है। नारी शिक्षा पुरुष शिक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण है। चूंकि पूरी पारिवारिक व्यवस्था की धुरी नारी है उसे नकारा नहीं जा सकता है। आम्बेडकर के प्रसिद्ध मूलमंत्र की शुरुआत ही ‘शिक्षित करो’ से होती है। इस मूलमंत्र की पालना से आज कितनी ही महिलाएं शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बन रही हैं।
बाबा साहब का मानना था कि वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा। आज महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए हमारे पास जो भी संवैधानिक सुरक्षाकवच, कानूनी प्रावधान और संस्थागत उपाय मौजूद हैं, इसका श्रेय किसी एक मनुष्य को जाता है तो वे हैं- डॉ. भीमराव आम्बेडकर। भारतीय संदर्भ में जब भी समाज में व्याप्त जाति, वर्ग और लिंग के स्तर पर व्याप्त असमानताओं और उनमें सुधार के मुद्दों पर चिंतन हो तो डॉ.आंबेडकर के विचारों और दृष्टिकोण को शामिल किए बिना बात पूरी नहीं हो सकती।
भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो आम्बेडकर संभवतः पहले अध्येता रहे हैं। जिन्होंने जातीय संरचना में महिलाओं की स्थिति को समझने की कोशिश की थी। उनके संपूर्ण विचार मंथन के दृष्टिकोण में सबसे महत्वपूर्ण मंथन का हिस्सा महिला सशक्तिकरण था। आम्बेडकर यह बात समझते थे कि स्त्रियों की स्थिति सिर्फ ऊपर से उपदेश देकर नहीं सुधरने वाली, उसके लिए कानूनी व्यवस्था करनी होगी। हिंदू कोड बिल महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है। इसी कारण आंबेडकर हिंदू कोड बिल लेकर आये थे। हिंदू कोड बिल भारतीय महिलाओं के लिए सभी मर्ज की दवा थी। पर अफसोस यह बिल संसद में पारित नहीं हो पाया और इसी कारण आम्बेडकर ने कानून मंत्री पद का इस्तीफा दे दिया था। स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ. भीमराव आम्बेडकर का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था।
जब 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी तो उसमें डॉ.आम्बेडकर को देश का पहले कानून मंत्री नियुक्त किया गया। 29 अगस्त 1947 को डॉ.आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने उनके नेतृत्व में बने संविधान को अपना लिया। अपने काम को पूरा करने के बाद डॉ.आम्बेडकर ने कहा मैं महसूस करता हूं कि भारत का संविधान साध्य है, लचीला है पर साथ ही यह इतना मजबूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों समय जोड़ कर रखने में सक्षम होगा। मैं कह सकता हूं कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य ही गलत था। आम्बेडकर ने 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लोकसभा का चुनाव लड़ा पर हार गये। मार्च 1952 में उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनित किया गया। अपनी मृत्यु तक वो उच्च सदन के सदस्य रहे।
बाबा साहेब आम्बेडकर कुल 64 विषयों में मास्टर थे। वे हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओं के जानकार थे। इसके अलावा उन्होंने लगभग 21 साल तक विश्व के सभी धर्मों की तुलनात्मक रूप से पढ़ाई की थी। डॉक्टर आम्बेडकर अकेले ऐसे भारतीय है जिनकी प्रतिमा लंदन संग्राहलय में कार्ल मार्क्स के साथ लगाई गई है। इतना ही नहीं उन्हें देश-विदेश में कई प्रतिष्ठित सम्मान भी मिले है। भीमराव आंबेडकर के पास कुल 32 डिग्रियां थी। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर के निजी पुस्तकालय राजगृह में 50,000 से भी अधिक किताबें थी। यह विश्व का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था।
डॉ.आम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने लाखों समर्थकों के साथ एक सार्वजनिक समारोह में एक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। राजनीतिक मुद्दों से परेशान आम्बेडकर का स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। 6 दिसम्बर 1956 को आम्बेडकर की नींद में ही दिल्ली स्थित उनके घर मे मृत्यु हो गई। 7 दिसम्बर को बम्बई में चैपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें उनके हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया।
आम्बेडकर के दिल्ली स्थित 26 अलीपुर रोड के उस घर में एक स्मारक स्थापित किया गया है जहां वे सांसद के रूप में रहते थे। देशभर में आम्बेडकर जयन्ती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। अनेकों सार्वजनिक संस्थानों का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है। आम्बेडकर का एक बड़ा चित्र भारतीय संसद भवन में लगाया गया है। हर वर्ष 14 अप्रैल व 6 दिसम्बर को मुम्बई स्थित उनके स्मारक पर काफी लोग उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)