– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को गत दिवस एक पत्रकार-परिषद बुलानी पड़ी। क्या आपने कभी सुना है कि किसी राज्यपाल ने कभी पत्रकार-परिषद आयोजित की? राज्यपाल को पत्रकार-परिषद आयोजित करनी पड़ी है, यही तथ्य यह सिद्ध कर रहा है कि उस प्रदेश की सरकार कोई ऐसा काम कर रही है, जो आपत्तिजनक है और उसका पता उस प्रदेश की जनता को चलना चाहिए।
केरल की सरकार कौन-कौन से काम करने पर अड़ी हुई है। उसका पहला काम तो यही है कि वह अपने विश्वविद्यालयों में अपने मनपसंद के उपकुलपति नियुक्त करने पर आमादा है। मुख्यमंत्री के साथ काम कर रहे एक भारी-भरकम नौकरशाह की पत्नी को चयन समिति ने एक विश्वविद्यालय का उपकुलपति चयन कर लिया। चार अन्य उम्मीदवार, जो उससे भी अधिक योग्य और अनुभवी थे, उन्हें रद्द करके इंटरव्यू में उस महिला को पहला स्थान दे दिया गया। इसी प्रकार कई अन्य विश्वविद्यालयों में उपकुलपति पद के उम्मीदवारों की योग्यता के मानदंडों में सबसे बड़ा मानदंड यह माना जाता है कि वह सत्तारूढ़ पार्टी, माकपा, के कितना नजदीक है। इसके अलावा पार्टी कामरेडों को नौकरशाही में भरवाया जा रहा है। उन्हें मंत्रियों और अफसरों का पीए या ओएसडी आदि बनाकर नियुक्ति दे दी जाती है ताकि दो साल की नौकरी के बाद वे जीवन भर पेंशन पाते रहें।
पार्टी काॅमरेडों को अपराधों की सजा न मिले, इसलिए उन्हें सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर भी बिठाया जा रहा है। जैसे मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने के.के. रागेश को अपने निजी स्टाफ में नियुक्ति दे दी है ताकि पुलिस उसे गिरफ्तार न कर सके। इस व्यक्ति ने 2019 में कन्नूर में आयोजित हिस्ट्री कांग्रेस के अधिवेशन में राज्यपाल आरिफ खान के विरुद्ध अत्यंत आपत्तिजनक व्यवहार किया था। उस अधिवेशन में राज्यपाल के भाषण में हंगामा मचानेवालों और उनके सुरक्षाकर्मियों के साथ मार-पीट करनेवाले दोषियों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। राज्यपाल को पूर्णरूपेण शक्तिहीन बनाने के लिए केरल विधानसभा में दो विधेयक भी पारित कर लिए गए हैं। एक तो उप कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार उपराज्यपाल से छीन लिया गया है और दूसरा लोकपाल के भ्रष्टाचार-विरोधी अधिकारों को कमजोर कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने राज्यपाल के खिलाफ अभियान चलाया हुआ है लेकिन क्या वे यह नहीं जानते कि राज्यपाल के हस्ताक्षर के बिना वे दोनों विधेयक कानून नहीं बन सकते। उन्हें पता होना चाहिए कि राज्यपालों को अपनी प्रांतीय सरकारों पर जितने अधिकार प्राप्त हैं, उतने राष्ट्रपति को अपनी केंद्र सरकार पर भी नहीं हैं। आरिफ खान को डराना आसान नहीं है। जो व्यक्ति प्रधानमंत्री राजीव गांधी को टक्कर दे सकता है, वह क्या किसी मुख्यमंत्री से डर जाएगा?
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
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