प्योंगयांग। उत्तर कोरिया (North Korea) का सनकी तानाशाह किम जोंग उन महाविनाशक मिसाइलें और परमाणु बम बनाने के बाद अब किलर डॉल्फिन (Dolphins ) की सेना बनाने में जुट गया है। उत्तर कोरिया अब अमेरिका की तर्ज पर डॉल्फिन मछलियों को बारुदी सुरंगों को नष्ट करने और दुश्मन के गोताखोरों को मार गिराने क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सैटेलाइट से मिली तस्वीरों के आधार पर विशेषज्ञों ने कहा है कि उत्तर कोरिया अपनी नौसेना के लिए डॉल्फिन सेना तैयार कर रहा है। इन डॉल्फिन को नांपो नेवल बेस पर देखा गया है।
यूनाईटेड स्टेट नेवल इंस्टीट्यूट को मिली तस्वीरों के आधार पर कहा जा रहा है कि उत्तर कोरिया का नेवल मरीन मैमल प्रोग्राम अक्टूबर 2015 में शुरू हुआ था। डॉल्फिन को प्रशिक्षण देने के अड्डे को पहली बार एक शिपयार्ड के भूरे रंग के पानी में देखा गया था। यही पर कोयला चढ़ाया जाता है। इसके पास में ही युद्धपोत भी थे। अक्टूबर 2016 में एक और प्रशिक्षण ठिकाना नांपो में सामने आया। माना जा रहा है कि इस स्थान पर डॉल्फिन को पैदा किया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉल्फिन सेना बनाने का कार्यक्रम किम जोंग उन के नेवी को आधुनिक बनाने की योजना का हिस्सा है।
अमेरिका की नौसेना डॉल्फिन मछलियों को जंग लड़ने का प्रशिक्षण देने में महारत रखती है। ये मछलियां बारुदी सुरंगों की पहचान करने और तारपीडो की पहचान करने में सक्षम हैं। इन मछलियों के जरिए दुश्मन के गोताखोरों की पहचान करके उन पर हमला किया जा सकता है। अमेरिका ने अपने नेवल बेस सैन डियागों में लंबे समय से डॉल्फिन मछलियों और सी लॉयन को प्रशिक्षण दे रहा है। इन्हें वियतनाम और फारस की खाड़ी में तैनात भी किया गया है। अभी तक केवल रूस ही इस क्षेत्र में अमेरिका को टक्कर दे पाया है। रूस ने आर्कटिक और काला सागर में बेलुगा व्हेल मछलियों, डॉल्फिन और सील को तैनात कर रखा है।
सैटलाइट तस्वीरों के मुताबिक उत्तर कोरिया की ओर से बनाया गया बाड़ा डॉल्फिन मछलियों के लिए है। इसे उत्तर कोरिया के मछली पकड़ने के फॉर्म के पास बनाया गया है। उत्तर कोरिया अपनी राजधानी प्योंगयांग में भी डॉल्फिन मछलियों को प्रशिक्षण देता है। बता दें कि रूस दुनिया की सबसे बुद्धिमान मछलियों में शुमार डॉल्फिन के सहारे युद्ध जीतने में लग गया है। रूस ने गृहयुद्ध से जूझ रहे सीरिया में अपनी पनडुब्बियों के साथ प्रशिक्षित डॉल्फिन मछलियों को भी तैनात किया है। रूस की नौसेना ने अमेरिका के जवाब में 1990 के दशक में मरीन मैमल प्रॉजेक्ट शुरू किया था। रूस के इस प्रॉजेक्ट ने उस समय दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा जब बेलुगा नाम व्हेल मछली अप्रैल 2019 में नार्वे पहुंची। इस व्हेल मछली को हवल्दीमीर नाम दिया गया था। यह व्हेल मछली रूस की नौसेना के ट्रेनिंग प्रोग्राम से बचकर निकली थी।
उधर, रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इन डॉल्फिन को ऐसे ट्रेंड किया गया है कि वे समुद्र की सतह पर गिरी किसी चीज को ढूढ़ निकाल लाती हैं। साथ ही खुफिया मिशन को अंजाम दे सकती हैं। सीरिया में तैनात डॉल्फिन को क्रीमिया के पास काला सागर में स्थित सेवास्तोपोल अड्डे से भेजा गया है। यह भी संभावना है कि ये सील भी हो सकते है लेकिन ज्यादा संभावना डॉल्फिन की है। रूसी नौसेना का एक और मरीन मैमल प्रोग्राम आर्कटिक क्षेत्र में चल रहा है। बेलुगा व्हेल मछलियां डॉल्फिन की तुलना में बड़ी और धीमी रफ्तार से चलती हैं। लेकिन ये मछलियां आर्कटिक के बर्फीले पानी में ज्यादा कारगर हैं। घातक सील किसी भी गोताखोर के हमले का करारा जवाब देने में सक्षम हैं।
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