इन्दौर। इंदौर में डॉग्स के लिए काम करने वाली संस्थाओं के पास पिछले दो महीनों में कई ऐसे मामले देखने में आए हैं, जिसमें लोग अपने पालतू डॉग्स को किसी और को अडॉप्ट करने के लिए गुहार लगवा रहे हैं। पिछले दो महीनों में ऐसे मामले पिछले सालों की तुलना में एकाएक 60 फीसदी तक बढ़े है, जिसे संस्थाएं भी चौंकाने वाला आंकड़ा बता रही है। संस्थाएं और पेट्स शॉप वाले इसके पीछे कई कारण बताते हंै।
शहर में तेजी से बढ़ते फ्लैट के चलन के कारण जगह और उन्हें घुमाने के लिए देने वाले समय में कमी के चलते कुछ लोग ऐसे नस्लों से दूरी बना रहे हैं, जिन्हें समय के साथ ही खाना पचाने के लिए ज्यादा घूमने और एक्टिविटी की जरूरत होती है। इसके पीछे का दूसरा बड़ा कारण ये भी है कि कई आसपास और कॉलोनी के लोग डॉग्स के होने को लेकर आपत्ति लेते है। तीसरा, लेकिन छोटा कारण ये भी है कि बड़े और बूढ़े होते इन डॉग्स की देखभाल से लोग बचना चाहते हैं। हालांकि, कई डॉग्स प्रेमी ऐसे भी है, जो हर हालात में अपने डॉग्स को साथ रखते हैं और उनकी देखभाल भी करते है।
झाबुआ-सांरगपुर तक से आ रहे फोन
पीपल्स फॉर एनिमल से जुड़ी और स्ट्रीट डॉग्स के लिए सालों से काम कर रही प्रियांशु जैन बताती हंै कि पिछले दो महीने में अपने डॉग्स को अडॉप्ट करवाने के मामले 60 फीसदी तक बढ़े हैं। हर दिन इंदौर शहर के अलावा हमें आसपास में राऊ, पीथमपुर के साथ ही झाबुआ और सारंगपुर जैसे क्षेत्र से भी फोन आ रहे हैं कि हम अपने डॉग को अब किसी को देना चाहते हैं, जो इसकी प्रॉपर देखभाल कर सके। इसमें डोगो अर्गेटिनो, रॉटविलर, जर्मन शेफर्ड, अमेरिकन बुली और सेंट अनॉर्ड जैसी नस्लें शामिल हैं। प्रियांशु बताती हंै कि कई बार बड़ी समस्या आ जाती है, क्योंकि ये एडल्ट होते हैं और नई जगह में घुलने-मिलने में वक्त लगा देते हैं। फिर भी कोशिश रहती है कि कोई इन्हें अडॉप्ट कर लें। कई लोग इसके लिए आगे आ रहे हैं। नए माहौल में ढालने और घुलने-मिलने के लिए फिर इन डॉग्स की ट्रेनिंग भी करवाई जा रही है।
मिनी ब्रीड्स का चलन बढ़ा
शहर में इन दिनों मिनी ब्रीड को लेकर चलन बढ़ रहा है। ये घरों में आसानी से कम जगह में पल जाते हैं और आसानी से संभल भी जाते हैं। पेट शॉप्स के मालिकों और पेट फूड सेल से जुड़े लोगों का कहना है कि इंदौर शहर की बात करें, तो पिछले कुछ सालों में ब्रेडेन का 50 फीसदी, सेंट बनार्ड का 60 से 70 फीसदी चलन कम हुआ है। इतना ही नहीं, इंदौर शहर में इंग्लिश मेस्टिफ नस्ल भी लगभग ना के बराबर हो गई है। इसका एक कारण पेट फूड के दामों में 25 फीसदी की बढ़ोतरी होना भी है।
सडक़ों पर ही स्ट्रीट डॉग पालने का चलन भी बढ़ा
पिछले कई साल में देखने में आया है कि स्ट्रीट डॉग्स के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा है। कई तो घरों में इन्हें पाल रहे है तो कई सडक़ों पर इन्हें खाना, पानी और दवाइयां पहुंचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे है। इनके लिए काम करने वाली संस्थाओं के अलावा कई लोग निजी लोग ये सेवा काम अपनी मर्जी से कर रहे हैं और देर रात सडक़ों पर हजारों किलो की मात्रा में खाना तैयार करके इनके लिए ले जा रहे है। बीमार स्ट्रीट डॉग्स की सेवा के लिए भी संस्थाएं हमेशा तत्पर रहती है।
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