झालावाड़ । पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Former Chief Minister Vasundhara Raje) ने कहा कि क्या जनता को प्यास नहीं लगती ? (Does the Public not feel Thirsty?) सिर्फ़ अफसरों को ही लगती है ? (Only the Officers feel Thirsty?)
झालावाड़ की तपती दोपहर में जब आम जनता पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रही थी, तब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रशासन की उदासीनता पर ऐसा प्रहार किया कि सत्ता गलियारों में हलचल मच गई। रायपुर कस्बे में अफसरों की चुप्पी और लोगों की चीखती प्यास के बीच वसुंधरा का गुस्सा फूट पड़ा—”क्या जनता को प्यास नहीं लगती? सिर्फ़ अफसरों को ही लगती है?” यह सिर्फ़ एक बयान नहीं था, बल्कि चुनावी साल की पटकथा का एक तेज़ संवाद भी था, जो यह जताने के लिए काफी है कि विपक्ष अब मैदान में उतर आया है।
42 हजार करोड़ की जल जीवन मिशन योजना का हवाला देते हुए वसुंधरा ने सीधे तौर पर अफसरशाही को कटघरे में खड़ा किया। सवाल यह नहीं कि पैसा आया या नहीं—सवाल यह है कि जो आया, वह जमीन तक क्यों नहीं पहुंचा? उन्होंने अफसरों से हिसाब-किताब मांगते हुए चेतावनी दे डाली—”यह तो अप्रैल है, जून-जुलाई में क्या होगा?” राजे की इस तीखी टिप्पणी को केवल प्रशासनिक नाराज़गी के तौर पर देखना गलत होगा। यह आने वाले चुनावों से पहले जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति भी है। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी मौके को भांपते हुए सरकार को घेरने में देर नहीं की—”जब पूर्व सीएम मजबूर हैं, तो आम आदमी की क्या हालत होगी?”
पीएचईडी प्रोजेक्ट के एसई दीपक झा ने भले ही काम में सुधार और जल्द काम पूरा होने का भरोसा दिलाया, लेकिन राजे के सवालों का कोई ठोस जवाब वे नहीं दे सके। जनता की उम्मीदें और अधिकारियों की चुप्पी के बीच एक खालीपन साफ दिखा—जो इस वक्त सत्ता विरोधी लहर के लिए खाद-पानी जैसा है। पानी का संकट इस राज्य में हर साल एक नया राजनीतिक मुद्दा बनकर सामने आता है, लेकिन इस बार यह सिर्फ किल्लत नहीं—बल्कि चुनावी सियासत का टर्निंग पॉइंट भी बन सकता है। क्योंकि जब कोई पूर्व सीएम खुद फील्ड में उतरकर अफसरों को लताड़ने लगे, तो साफ है कि राजनीतिक तापमान भी अब बढ़ने वाला है।
उधर, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने जवाब में लिखा कि पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया जी का यह ट्वीट भाजपा सरकार की सच्चाई उजागर करने के लिए काफी है। कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी कि पूर्व मुख्यमंत्री को अपनी पार्टी की सरकार के बावजूद पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपनी बात मीडिया एवं सोशल मीडिया के माध्यम से कहनी पड़ रही है। जब भाजपा की ही पूर्व मुख्यमंत्री इस सरकार के अधिकारियों के सामने इतनी मजबूर हैं तो आमजन की स्थिति समझी जा सकती है।
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