इन्दौर। रेसीडेंसी क्षेत्र के दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया में अग्निबाण अखबार की खबर का असर ऐसा हुआ कि दस्तावेजों का बांध टूट पड़ा। जहां पुराने अधिकार पत्रों और दस्तावेजों की मांग लम्बे समय से अधिकारियों द्वारा की जा रही थी, वही अब अखबार की कटिंग और 1930 के दस्तावेज लेकर रहवासी अधिकारियों तक पहुंच रहे हैं। राजगढ़, रतलाम और पिपलौदा कोठी के 1930 के दस्तावेज कल लगाए शिविर में सामने आए हैं। हालांकि रहवासी पूर्व में भी दस्तावेज उपलब्ध कराने का दावा कर रहे हैं।
ब्रिटिशकाल से सरकारी मद में दर्ज रेसीडेंसी कोठी क्षेत्र की भू्मि का लम्बे समय के बाद पहली बार सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा है। राजस्व के खसरे में अब यह जमीन किसकी होगी, यह दर्ज किया जाना है, जिसके लिए सर्वेक्षण ड्रोन मैपिंग, नक्शा निर्माण जैसी प्रक्रियाएं की जा चुकी हैं। इस क्षेत्र की भूमि के स्वामित्व को लेकर दस्तावेजों का परीक्षण पिछले एक साल से लगातार जारी है, लेकिन कई बार निर्देश जारी करने के बावजूद भी रहवासी अपने दस्तावेज का परीक्षण नहीं करा रहे थे। प्रशासन ने जैसे ही इसे 1959 के दस्तावेजों के आधार पर सरकारी घोषित करने की तैयारी की, जिसकी खबर अग्निबाण अखबार ने प्रमुखता से प्रकाशित की। उसके बाद भारी तादाद में रहवासियों द्वारा दस्तावेज मुहैया कराए जाने लगे हैं।
कल रेसीडेंसी क्षेत्र में अलग अलग कोठियों के लिए अलग-अलग तहसीलदारों के निर्देशन में दस्तावेजों के प्रमाणीकरण का शिविर लगाया गया। रतलाम, राजगढ़ व पिपलौदा कोठी को लेकर अपर कलेक्टर ज्योति शर्मा ने जानकारी दी है कि इन सभी क्षेत्र के रहवासियों ने 1930 के दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं। हालांकि पिपलौदा कोठी के दस्तावेज पूर्व में ही सामने आ गए थे। उक्त क्षेत्र के रहवासी सुमित सूरी के अनुसार पूर्व अपर कलेक्टर सपना लोवंशी द्वारा चलाई गई प्रक्रिया में भी उनके द्वारा यह प्रमाण प्रस्तुत किए गए थे। अब पुन: सारे दस्तावेजों की चेन प्रशासन को उपलब्ध करा दी गई है। उनके अनुसार यह जमीन रतलाम महाराज से कीमती परिवार को दी गई थी और ठउनके द्वारा ही बिक्री की गई है। जिसके प्रमाण मौजूद है। इसी तरह से अन्य क्षेत्रों के दस्तावेज भी सामने आए हैं।
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