नई दिल्ली। बीयर (Beer) दुनिया के सबसे पसंदीदा पेय पदार्थों (beverages) में से एक है. बता दें कि दुनिया के सबसे पुराने पेय पदार्थों में पानी(Water), चाय(Tea) के बाद तीसरे स्थान पर बीयर ही है. एक पुराने आंकड़े के अनुसार दुनियाभर में हर साल 43,52,65,50,00,000 बीयर की कैन (beer can) गटक ली जाती हैं. आज के इस दौर में यदि पब में पार्टी का मूड हो या फिर दोस्तों के बीच जश्न का माहौल, बीयर ही ऐसी चीज है जो सभी जगहों पर मौजूद होती है.
लेकिन बीयर की बोतलों को खाली करने वाले लोगों ने गौर किया होगा कि उनको दी जाने वाली बोतल या तो हरे रंग की होती है या फिर ब्राउन रंग की. आपने कभी इन दो रंगों के अलावा किसी और कलर के बोतल में बीयर देखी है क्या? लेकिन आज भी अधिकतर पीने वाले लोगों को इसका कारण नहीं पता होता कि बीयर की बोतलें इन्हीं दो रंगों में क्यों आती हैं.
अधिकतर लोगों को बस बीयर को गटकने भर से मतलब होता है उसके आगे पीछे के कारणों पर वे नजर नहीं डालते हैं. चलिए ऐसे में आपको बताते हैं कि इसका कारण क्या है. बताया जाता है कि इंसान प्राचीन मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता के समय से ही बीयर का इस्तेमाल कर रहे हैं. माना जाता है कि हजारों साल पहले बीयर की पहली कंपनी प्राचीन मिस्र में खुली थी. तब बीयर की पैकिंग ट्रांसपेरेंट बोतलों में होती थी. फिर पाया गया कि सफेद बोतल में पैक करने से बीयर का एसिड को सूर्य की किरणों से निकलने वाली अल्ट्रा वॉयलेट रेज (पराबैंगनी किरणों) खराब कर रही हैं. इसकी वजह से बीयर में बदबू आने लगती थी और लोग नहीं पीते थे. बीयर बनाने वालों ने इस समस्या को सुलझाने के लिए एक प्लान तैयार किया. इसके तहत बीयर के लिए भूरे रंग की परत चढ़ी बोतलें चुनी गईं. ये तरकीब काम कर गई. इस रंग के बोतलों में बंद बीयर खराब नहीं हुई, क्योंकि सूरज की किरणों का असर भूरे रंग की बोतलों पर नहीं हुआ. दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के दौरान भूरे रंग की बोतलों का अकाल पड़ गया. इस रंग की बोतलें नहीं मिल रही थीं. ऐसे में बीयर निर्माताओं को एक ऐसा रंग चुनना था, जिस पर सूरज की किरण का बुरा असर न पड़े. तब हरे रंग को भूरे रंग की जगह चुना गया. इसके बाद से बीयर हरे रंग की बोतलों में भरकर आने लगी.