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    रविवार के दिन कर लें ये काम, किस्मत बदलते नहीं लगेगी देर

  • July 09, 2022

    नई दिल्ली: हिंदू धर्म में सूर्य पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है. साथ ही, करियर में सफलता मिलती है. सूर्य देव कलयुग में एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो व्यक्ति को साक्षात दर्शन देते हैं. वहीं, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य को तेज, आत्मविश्वास, स्वास्थ्य, मान-सम्मान आदि का कारक माना गया है. ऐसे में नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा कर ने से व्यक्ति को इन सभी चीजों की प्राप्ति होती है. रविवार के दिन सूर्य चालीसा पाठ का जाप विशेष लाभदायी रहता है. जानें.

    श्री सूर्य चालीसा
    दोहा
    कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
    पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।


    चौपाई
    जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
    भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
    विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
    अंबरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
    सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
    अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
    मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
    उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

    मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
    सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
    आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
    द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
    चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
    नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
    सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
    बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

    उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
    छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
    अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
    सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
    भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
    ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
    कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
    पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।


    युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
    बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
    जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
    विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
    सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
    ‘अस’ जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
    दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
    अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

    ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
    मंद सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
    धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
    भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
    परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
    अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
    भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
    यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
    अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

    दोहा
    भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
    सुख संपत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।

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