आज के इस आधुनिक वातावरण में बीमारियों का तो सीजन सा चल रहा हैै एक तो कोरोना का कहर, उस पर भी दिवाली के बाद का प्रदूषण, निश्चित ही हर इंसान को ऐसे में ज्यादा सजग रहने की जरूरत है। वैसे तो एनजीटी ने कई शहरों में पटाखों पर बैन लगा रखा था, फिर उन जगहों पर जहां अनुमति के साथ पटाखों के जलाने से प्रदूषण हुआ, या फिर उन जगह जहां पटाखों के अलावा भी दीवाली पर प्रदूषण हुआ, लोगों को सेहत संबंधी खड़ी हो सकती हैं। ऐसे में सबके लिए ये जानना जरूरी है कि पॉल्यूशन से कैसे बचें और खुद को कैसे बचाएं।
अन्य सावधानियां
– मुंह पर कपड़ा बांधकर निकलें।
– बाहर का कुछ भी खाने से बचें।
– दूषित पानी न पीएं।
– घर में घर से बाहर कहीं भी स्मोकिंग करने से बचें।
– अगर आप गाड़ी, बाइक या अन्य किसी वाहन से ट्रैवल कर रहें हैं तो रेड लाइट होने पर उसे बंद कर दें। उसे चलता हुआ न रखें। इससे भी एयर पॉल्यूशन कम होगा।
– घर में कारपेट हैं तो उसे हटा दें। उसमें भी बहुत डस्ट होती है।
– अपने गैस-स्टोवी की ठीक से जांच करें और घर में सही तरह से वैटिलेशन करवाएं।
– जूते घर के बाहर ही उतारें।
– एयर फेशनर्स का कम से कम इस्तेमाल करें।
– बेडशीट्स को हर सप्ताह गर्म पानी से धोएं।
– सुनिश्चित कर लें बाथरूम और किचन में एग्जॉस्ट फैन ठीक से काम करें।
– घर के आसपास अधिक से अधिक प्लांट्स लगाएं।
दिल का दौरा पड़ने का भी रहता है डर
एक रिसर्च के मुताबिक, प्रदूषण अथेरोस्क्लेरॉसिस (धमनियों का कड़ा होना) की प्रक्रिया को तेज करता है, जो दिल के दौरे का कारण बनता है। ज्यादा प्रदूषण वाले इलाकों में रहने वाले लोगों की धमनियां कम प्रदूषण वाले इलाकों में रहने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा कड़ी होती है।
प्रदूषण से किडनी रोग
एक अन्य स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि वायु प्रदूषण से किडनी रोग में बढ़ावा होता है, जो किडनी फेल का प्रमुख कारण है।
बच्चों और किशोरों को हो सकती है ये परेशानी
एक रिसर्च के मुताबिक, पॉल्यूशन के कारण बच्चों और किशोरों में गठिया या इससे जुड़े रोग हो सकते हैं जिसमें दर्द, सूजन, लूपस आदि हो सकते हैं। सिस्टेमिक लूपस अर्थेमेटोसस (एसएलई) या लूपस शरीर के किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचा सकता है। ये शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है जैसे किडनी, दिल और मस्तिष्क आदि। रिसर्च के मुताबिक, पॉल्यूशन की वजह से ही लूपस रोग होता है। रिसर्च में ये भी कहा गया कि एयर पॉल्यूशन के कारण न सिर्फ पुराने फेफड़ों के रोग, हृदय रोग, हृदय के कैंसर में बढ़ोत्तरी होती है, बल्कि यह बचपन में ही गठिया रोग होने की संभावना को भी बढ़ाता है।
नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी व सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं इन्हें किसी प्रोफेशनल डॉक्टर की सलाह के तौर पर न समझें। कोई भी बीमारी या संक्रमण होने की स्थिति में डॉक्टर को जरूर दिखायें।
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