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कमर दर्द को भूलकर भी न करें इग्‍नोर, इस गंभीर बीमारी का हो सकता है इशारा

December 29, 2024

आजकल दौड़ती -भागती जिंदगी में कमर दर्द आम समस्या है लेकिन कमर दर्द को हल्के में लेना आपके लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है। इसलिए कमर दर्द के कारणों और इसके उपाय को समझना बहुत आवश्यक है। हमारी स्पाइनल (रीढ़) का कॉलम एक दूसरे पर खड़ी हड्डियों से बना होता है। ऊपर से नीचे तक हमारे सर्वाइकल स्पाइन में कुल सात हड्डियां होती हैं। जबकि थोरैसिक स्पाइन में 12 हड्डियां होती हैं और लुम्बर स्पाइन में पांच हड्डियां होती हैं। इसके बाद नीचे की तरफ सैक्रम और कॉक्सिक्स (coccyx) होती हैं। इन हड्डियों के बीच में कुशन जैसी एक मुलायम चीज होती है जिसे डिस्क कहते हैं। ये डिस्क वॉकिंग, लिफ्टिंग और ट्विस्टिंग जैसी डेली एक्टिविटीज के दौरान हड्डियों को आपस में टकराने से रोकती हैं। डिस्क रीढ़ की हड्डियों (bones) को किसी प्रकार के झटके या दबाव से बचाती है।

रीढ़ में हर डिस्क के दो भाग होते हैं-
एक नरम, भीतरी हिस्सा और दूसरा, कठोर आउटर रिंग। अक्सर इंजरी या वीकनेस की वजह से डिस्क का भीतरी हिस्सा आउटर रिंग से बाहर निकल जाता है। मेडिकल भाषा में इसे स्लिप डिस्क कहा जाता है। ये बहुत ज्यादा दर्द और बेचैनी का कारण बन सकता है। हालत गंभीर होने पर आपको स्लिप डिस्क की रिपेयर के लिए सर्जरी भी करवानी पड़ सकती है।

कहां हो सकता है स्लिप डिस्क-
डॉक्टर्स कहते हैं कि स्पाइन में आपको गर्दन से लेकर लोवर बैक में किसी भी जगह स्लिप डिस्क हो सकता है। हालांकि, स्लिप डिस्क में लोवर बैक को सबसे कॉमन एरिया माना जाता है। स्पाइनल कॉलम नसों और रक्त वाहिकाओं का एक जटिल नेटवर्क होता है। ऐसा होने पर हमारी नसों और रीढ़ के आस-पास की मांसपेशियों (Muscles) पर ज्यादा दबाव पड़ सकता है।

स्लिप डिस्क के लक्षण-
आमतौर पर स्लिप डिस्क होने पर शरीर के एक हिस्से में दर्द और सुन्नपन महसूस हो सकता है। ये दर्द आपके हाथ और पैर की तरफ भी फैल सकता है। यह दर्द अक्सर रात में या बॉडी की जरा सी मूवमेंट के साथ बढ़ सकता है। आपको उठते-बैठते दर्द महसूस होगा। मांसपेशियों कमजोर पड़ने लगेंगी। इफेक्टेड एरिया में झनझनाहट, दर्द और जलन भी महसूस हो सकती है।



स्लिप डिस्क के कारण-
स्लिप डिस्क की दिक्कत उस वक्त होती है जब रीढ़ का आउटर रिंग कमजोर पड़ जाए या उसके फटने पर भीतरी हिस्सा बाहर निकल जाए। बढ़ती उम्र के साथ अक्सर ऐसा होता है। इसके अलावा, अचानक मुड़ने, घूमने या किसी चीज को उठाते वक्त भी स्लिप डिस्क हो सकता है। कई बार किसी भारी चीज को उठाते वक्त हमारी लोवर बैक में मोच आ जाती है जिसकी वजह से स्लिप डिस्क हो जाता है। अगर आप ज्यादा वजन उठाने का कोई काम करते हैं तो इसका खतरा ज्यादा है।

इसके अलावा, मोटापे से पीड़ित लोगों में भी स्लिप डिस्क का जोखिम ज्यादा रहता है। डॉक्टर्स कहते हैं कि कमजोर मांसपेशियां और सुस्त लाइफस्टाइल भी कमर में स्लिप डिस्क के लिए जिम्मेदार हो सकता है। जैसे-जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है, स्लिप डिस्क का खतरा भी बढ़ता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ डिस्क अपने प्रोटेक्टिव वॉटर कंटेंट को खोने लगती है। परिणामस्वरूप, डिस्क बड़ी आसानी से अपनी जगह से खिसक सकती है। महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में ये दिक्कत ज्यादा देखने को मिलती है।

स्लिप डिस्क का कैसे पता लगाएं-
स्लिप डिस्क में सबसे पहले डॉक्टर शरीर की जांच करते हैं। वे आपके दर्द और बेचैनी की वजह को जानने की कोशिश करेंगे। वे आपकी नसों के फंक्शन और मांसपेशियों को समझने का प्रयास करेंगे। वे देखते हैं कि इफेक्टेड एरिया में किस जगह छूने से आपको दर्द होता है। इसके अलावा, डॉक्टर एक्स-रे, सीटी स्कैन्स (CT scans), एमआरआई स्कैन्स और डिस्कोग्राम्स के जरिए भी स्लिप डिस्क का पता लगा सकते हैं।

स्लिप डिस्क के खतरे-
स्लिप डिस्क आपकी नर्व्स को हमेशा के लिए डैमेज कर सकता है। कुछ मामलों में स्लिप डिस्क हमारी लोवर बैक और पैरों में मौजूद कॉडा इक्विना नर्व के लिए दिक्कत खड़ी कर सकता है। ऐसा होने पर आप आंत और ब्लैडर से नियंत्रण खो सकते हैं। इससे सैडल एनेस्थीसिया (saddle anesthesia) नाम का एक लॉन्ग टर्म कॉम्प्लीकेशन (complication) भी हो सकता है। ये बहुत ज्यादा गंभीर भी हो सकता है, इसलिए डॉक्टर से इसकी जांच जरूर करवाएं।

क्या है इलाज-
परंपरावादी चिकित्सक पद्धति से लेकर सर्जरी तक स्लिप डिस्क का इलाज संभव है। इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी की बेचैनी का स्तर क्या है और डिस्क अपनी जगह से कितनी दूर स्लिप हुई है। कुछ लोगों को एक्सरसाइज प्रोग्राम के जरिए भी स्लिप डिस्क के दर्द से राहत पा सकते हैं। इसके लिए फीजियोथैरापिस्ट सही एक्सरसाइज की सलाह दे सकता है।

रेगुलर करें ये एक्सरसाइज-
स्लिप डिस्क का जोखिम कम करने के लिए कुछ एक्सरसाइज (excercise) रेगुलर कर सकते हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि मोडिफाइड कोबरा, ब्रिज और प्लैंक जैसी एक्सरसाइज में इससे फायदा होता है। दूसरा, जिम में वेट ट्रेनिंग करते वक्त कंधे या कमर से ऊपर बहुत ज्यादा वजन नहीं उठाना चाहिए।

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