सावन का महीना (month of sawan) हिन्दुओं के लिए बहुत धार्मिक माना जाता है। पूरे माह भगवान शंकर (Lord Shankar) की अराधाना में लोग लीन रहते हैं। भगवान शिव (Lord Shiva) का प्रिय महीना सावन 14 जुलाई से शुरू हो गया है। पंचांग के अनुसार सावन का महीना शुभ मुहूर्त (auspicious time) में आरंभ हुआ है। जिस कारण इस बार के सावन का महत्व और बढ़ गया है।
ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त श्रद्धा और भक्तिभाव से भोलेनाथ और माता पार्वती की विधि पूर्वक उपासना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वहीं सावन माह का पहला सोमवार 18 जुलाई को है। वहीं सावन महीने में खानपान को लेकर भी खास सावधानी बरती जाती है।
सावन का महीना हिन्दुओं के लिए बहुत धार्मिक माना जाता है। पूरे महिने भगवान शंकर की अराधाना में लोग लीन रहते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि भक्ति करने के लिए आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहें। और जहां स्वास्थ्य की बात आती है सबसे बहले मुद्दा उठता है खान-पान का। सावन मुख्य रूप से मानसून का समय होता है। ऐसे में खाने-पीने की चीजों को बहुत सोच-विचार कर खाना चाहिए।
सावन में दही नहीं खाना चाहिए। आयुर्वेद में बारिश में दही खाने की मनाही होती है। सावन में दही का सेवन करने से सर्दी, जुकाम और गले से संबंधित बीमारियां हो सकती है। इसलिए सावन के दौरान खासतौर पर रात को दही नहीं खाना चाहिए।
पत्तेदार साग और सब्जियां-
आयुर्वेद में कहा गया है कि श्रावण मास में वात की वृद्धि होती है । सावन माह में पत्तेदार साग और सब्जियां जैसे- पालक, मूली, गोभी खाने से परहेज करना चाहिए। दरअसल मॉनसून की वजह से इनमें कीड़े लग जाते हैं जिसे खाने से आप बीमार पड़ सकते हैं।
सावन-भादो में इन चीजों से करें परहेज
आयुर्वेद की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में, ‘ऋतुचार्य’ में आहार और जीवन शैली के नियमों का उल्लेख मिलता है। यह नियम 4 मौसमों पर आधारित होते हैं। इसके अनुसार, श्रावण और भादो महीनों में शरीर में वात उतेजित होने लगता है और पित्त कार्य बढ़ने लगता है। जिसके वजह से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होने लगती है। इसलिए इन महीनों उन सभी चीजों का खाने से परहेज करने की सलाह दी जाती है जिसमें वात व पित प्रकृति की अधिकता होती है।
भादो के दौरान दही से परहेज करने के संदर्भ में, आयुर्वेद का मानना है कि भादो के महीने में दही और इससे बनने वाली किसी भी चीज को खाने से बचना चाहिए क्योंकि यही वह समय होता है जब शरीर में पित बढ़ता है। ऐसे में यह चीजें शरीर में तीनों दोषों के संतुलन का बिगाड़ देती है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो जाती है।
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