– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
सत्याग्रह शब्द का व्यापक निहितार्थ है। इसमें सत्य है। प्रत्येक परिस्थिति में उस पर डटे रहने का आग्रह है। इसमें राजनीति के आदर्श और सिद्धांत का समावेश है। महात्मा गांधी ने इसे अपने अहिंसक संग्राम का अस्त्र बनाया था। जिस प्रकरण अस्त्र- शस्त्र संचलन के लिए निर्धारित प्रशिक्षण और योग्यता अनिवार्य होती है उसी प्रकार सत्याग्रह रूपी अस्त्र के संचालन का अधिकार हर किसी को नहीं हो सकता। इसके लिए महात्मा गांधी की तरह सत्य के प्रति आग्रह का भाव होना चाहिए। ईमानदारी के मार्ग का अनुसरण करने वाले ही सत्याग्रह के अधिकारी हो सकते है। इसमें साधन के साथ-साथ साध्य की पवित्रता होनी चाहिए।
महात्मा गाँधी देश को आजाद कराने के लिए सत्याग्रह करते थे। उनका य़ह साध्य पवित्र था। य़ह सही है कि वर्तमान कांग्रेस पार्टी का महात्मा गांधी या उनके सत्याग्रह से कोई लेना-देना नहीं है। य़ह सोनिया राहुल और प्रियंका गांधी की पार्टी है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड घोटाले के आरोपी हैं। ईडी उनसे पूछ ताछ कर रही है। इस प्रक्रिया में उनको सहयोग करना चाहिए। यदि वह निर्दोष हैं तो उन्हें परेशान होने की आवश्यकता ही नहीं है।
इसके विरोध में कांग्रेस पार्टी सत्याग्रह कर रही है। इसको सत्याग्रह का नाम देना हास्यास्पद है। कांग्रेस पार्टी इस आदर्शवादी शब्द को बदनाम कर रही है। वह अपने शासनकाल को याद करे। तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी घंटों सवाल पूछे जाते थे। लेकिन भाजपा ने कभी इसके विरोध में सत्याग्रह नहीं किया। नरेन्द्र मोदी ने भी पूरा सहयोग किया था। अंततः वह निर्दोष साबित हुए। नेशनल हेराल्ड मसले पर गंभीर प्रश्न है। इनका जवाब तो सोनिया और राहुल गांधी को ही देना होगा। इसके विरोध में सत्याग्रह से पार्टी की छवि को ही नुकसान हो रहा है।
सत्याग्रह करने वालों को इस डील के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उनके विरोध का कोई मतलब भी नहीं है। उनको इस प्रकरण से कोई आर्थिक लाभ भी नहीं मिला होगा। फिर वह किसी अन्य दोष में अपरोक्ष सहभागी क्यों बन रहे हैं। 1930 में जवाहर लाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड अखबार की नींव रखी थी। इंदिरा गांधी के समय जब कांग्रेस में विभाजन हुआ तो इसका स्वामित्व इंदिरा कांग्रेस को मिला। नेशनल हेराल्ड को कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता है। आर्थिक हालात के चलते 2008 में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया था। एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड, नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने 2011 इसकी 90 करोड़ रुपये की देनदारियों को अपने जिम्मे ले लिया था। इस हैसियत से पार्टी ने इसे 90 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था। इसके बाद पांच लाख रुपये से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल की 38-38 प्रतिशत हिस्सेदारी रखी गई। शेष 24 प्रतिशत हिस्सेदारी कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के पास रही।
कुछ वर्ष पहले एक याचिका में कहा था कि नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग खाली करने का आदेश विवादास्पद उदेश्य, बदनीयत और पूर्वाग्रह से ग्रस्त था। इससे जवाहरलाल नेहरू की विरासत समाप्त करने का प्रयास किया गया है। हाईकोर्ट ने इन सभी आरोपों को नकार दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि एजेएल के 99 प्रतिशत शेयर हासिल करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई, वह संदिग्ध है। एजेएल को यंग इंडिया ने हाईजैक किया और इसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व सोनिया गांधी सबसे बड़े भागीदार हैं। एजेएल को दो सप्ताह में इमारत खाली करनी होगी, नहीं तो अगली कार्रवाई की जाएगी।
पूरा मामला किसी रोचक पटकथा जैसा है। नेशनल हेराल्ड की तत्कालीन डायरेक्टर्स सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और मोतीलाल वोरा ने इस अखबार को यंग इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को बेचने का निर्णय लिया था। यंग इंडिया के डायरेक्टर्स सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, ऑस्कर फेर्नाडीज़ और मोतीलाल वोरा थे। इस डील को फाइनल करने के लिए 90 करोड़ का कर्ज़ चुकाने के मकसद से यंग इंडिया ने कांग्रेस पार्टी से कर्ज माँगा। इसके लिये कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग बुलाई जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और कांग्रेस पार्टी के महासचिव शामिल हुए। ये सभी वही महानुभाव थे। पार्टी किसकी है, यह बताने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस पार्टी को कर्ज देना स्वीकार करना ही था। कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने इसे पास कर दिया। यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा ने इसे ले लिया और आगे नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा को ही दे दिया।
सोनिया, राहुल, ऑस्कर और वोरा साहब ने फिर एक बैठक बुलाई। यह तय किया गया कि नेशनल हेराल्ड ने आज़ादी की लड़ाई में बहुत सेवा की है, इसलिए उसके ऊपर 90 करोड़ के कर्ज़ को माफ़ कर दिया जाता है। 78 प्रतिशत शेयर सोनिया व राहुल और शेष शेयर ऑस्कर व वोरा के रहे हैं, इन्हीं लोगों को पांच हजार करोड़ रुपये की संपत्ति मिल गई। इसमें ग्यारह मंजिल की बिल्डिंग बहादुरशाह जफ़र मार्ग दिल्ली में है। इससे साठ लाख महीना किराया मिलता रहा है।
जाहिर है कि यह मामला दिलचस्प और लगभग पूरी तरह से स्पष्ट है। नेशनल हेराल्ड से जुड़े मामले में राहुल गांधी से पूछताछ चल रही है। कांग्रेस इस प्रकार प्रदर्शन कर रही है, जैसे राहुल राष्ट्र की महान सेवा करने निकल रहे हैं। वह पार्टी नेताओं से मुलाकात कर ईडी दफ्तर की ओर रवाना होते हैं। अशोक गहलोत, पी. चिदंबरम सहित अनेक दिग्गज सत्याग्रह का संदेश दे रहे हैं। चिदंबरम और उनके पुत्र इस परेशानी को समझते हैं। उनकी खुद की व्यथा भी प्रकट हो रही है। चिदंबरम को न्याय याद आ रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस कानून के गलत इस्तेमाल का विरोध कर रही है। ईडी को बताना चाहिए कि राहुल का निर्धारित अपराध क्या है। इसका ईडी कोई जवाब नहीं दे रहा।
चिदम्बरम सच्चाई स्वीकार नहीं करना चाहते। इस प्रकरण में राहुल गांधी, सोनिया गांधी प्रमुख रूप से शामिल है। सम्बन्धित प्रश्नों के जवाब इनको देने पड़ेंगे। दिल्ली में कांग्रेस के कथित सत्याग्रह को देखते हुए राहुल के यात्रा मार्ग पर धारा 144 लगाई जा रही है, जिसे लेकर कांग्रेस के कई नेता नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। नेताओं का आरोप है कि कांग्रेस के लोगों को पार्टी मुख्यालय तक नहीं आने दिया जा रहा है। राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में ईडी तलब कर रही है।
यह सच्चाई सामने आनी चाहिए कि किस प्रकार इस अखबार की सम्पत्ति पांच हजार करोड़ रुपये तक पहुँच गई। फिर किस प्रकार य़ह अखबार सन 2000 में चला गया और इस पर 90 करोड़ का कर्जा हो गया। फिर क्यों नेशनल हेराल्ड के तत्कालीन डायरेक्टर्स सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और मोतीलाल वोरा ने इसे यंग इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को बेचने का निर्णय लिया था। जबकि ‘यंग इंडिया’ के डायरेक्टर्स भी सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, ऑस्कर फर्नाडीज़ और मोतीलाल वोरा ही थे। डील यह थी कि यंग इंडिया नेशनल हेराल्ड के नब्बे करोड़ के कर्ज़ को चुकाएगी। बदले में पांच करोड़ रुपए की अचल संपत्ति यंग इंडिया को मिलेगी। इस डील को फाइनल करने के लिए ‘नेशनल हेराल्ड’ के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा ने यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा से बात की। वह दोनों ही कंपनियों के डायरेक्टर्स थे। तो ऐसा करना जरूरी था।
नब्बे करोड़ रुपये कर्ज चुकाने के लिए ‘यंग इंडिया’ ने कांग्रेस पार्टी से कर्ज माँगा। इस प्रस्ताव पर विचार हेतु सोनिया गांधी, राहुल गांधी ऑस्कर फर्नांडिस और मोतीलाल वोरा की मीटिंग बुलाई गई। कर्ज प्रस्ताव पर निर्णय का अधिकार इन्हीं दिग्गजों को था। इन्होंने गंभीरता से विचार किया। कर्ज देना स्वीकार कर लिया। तत्कालीन कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने सहर्ष स्वीकृत प्रदान कर दी। फिर ‘यंग इंडिया’ के डायरेक्टर के रूप में मोतीलाल वोरा ने यह धनराशि ग्रहण की। अब कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग और बुलाई जिसमें सोनिया, राहुल, ऑस्कर और वोरा साहब सम्मिलित हुए। बैठकों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। फिर उन्हीं दिग्गजों की बैठक हुई। इसमें आजादी की लड़ाई में नेशनल हेराल्ड के योगदान की सराहना की गई। इसको देखते हुए उसके नब्बे करोड़ के कर्ज़ को माफ़ करने का निर्णय किया गया। इस तरह यंग इंडिया को पांच हजार करोड़ रुपये की संपत्ति मिल गई।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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